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Guru Gobind Singh Jayanti: गुरु गोबिंद सिंह जयंती पर जानें उनसे जुड़ी खास बातें

सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह की जयंती 29 दिसंबर को है। इस दिन सिख समाज कई तरह के आयोजन करेगा। इस बीच बताते हैं गुरु गोबिंद सिंह से जुड़ी खास बातें जिन्हें आपको जानना चाहिए।

Dec 23, 2022 / 05:03 pm

shailendra tiwari

गुरु गोबिंद सिंह जयंती पर खास बातें

भोपाल. नानकशाही कैलेंडर के मुताबिक सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह की जयंती पौष शुक्ल सप्तमी को प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है। यह तिथि 29 दिसंबर को पड़ रही है। इस दिन सिख समुदाय उत्सव मनाता है, देश भर में कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। आइये जानते हैं गुरु गोबिंद सिंह से जुड़ी खास बातें….

जन्मः गुरु गोबिंद सिंह का जन्म पौष शुक्ल सप्तमी 1723 विक्रमी (1666 ई.) को पटना में हुआ था। इनके पिता का नाम तेग बहादुर और माता का नाम गुजरी है। गुरु गोबिंद के जन्म के वक्त गुरु तेग बहादुर बंगाल में थे, उनके कहने पर बालक का नाम गोविंद राय रखा गया।
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खालसा पंथः भारतीय जीवन मूल्यों की रक्षा और समाज को नए सिरे से तैयार करने के लिए गुरु गोबिंद सिंह ने 1699 में बैसाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना की थी। उन्होंने पंच प्यारों को अमृतपान कराकर खालसा पंथ बनाया, खुद भी उनके हाथ से अमृत पान किया। उन्होंने खालसा पंथ के अनुयायियों को पंच ककार केश, कड़ा, कंघा, कृपाण, कच्छा धारण करने को कहा।

व्यक्तित्वः गुरु गोबिंद सिंह का व्यक्तित्व अलौकिक था। उन्होंने आनंदपुर का सुख, माता पिता की छांव और बच्चों का मोह छोड़कर धर्म रक्षा का मार्ग चुना। उन्होंने दमन, अन्याय, अधर्म के खिलाफ लड़ाई लड़ी। गुरु तेग बहादुर के बलिदान के बाद 11 नवंबर 1675 को नौ साल की उम्र में गुरु गोबिंद सिंह सिखों के दसवें गुरु बने। ये कई भाषाओं के जानकार थे, उन्होंने दशम ग्रंथ समेत कई ग्रंथों की भी रचना की थी।

गुरु गोबिंद सिंह ने लोगों को सीख दी कि युद्ध सैनिकों की संख्या से नहीं जीते जाते, बल्कि हौसले और इच्छाशक्ति से जीतता है। उन्होंने बताया कि जो उसूलों के लिए लड़ता है, वो धर्म योद्धा होता है। वाद्य यंत्र दिलरूबा के आविष्कार का श्रेय उन्हीं को है। उनके दरबार में 52 कवि थे। श्री पांवटा साहिब गुरुद्वारे का सिखों के लिए विशेष महत्व है, क्योंकि यहां गुरु गोबिंद सिंह ने चार साल बिताए थे।
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गुरु गोबिंद सिंह की सीखः गुरु गोबिंद सिंह ने धरम दी किरत करनी यानी ईमानदारी पूर्वक आजीविका चलाने और कम करन विच दरीदार नहीं करना यानी काम को लेकर कोताही न बरतने की सीख दी। उन्होंने सामाजिक बुराइयों पर भी प्रहार किया। कहा कि धन, जवानी, कुल, जात दा अभिमान नै करना यानी धन, जवान, जाति आदि पर घमंड नहीं करना चाहिए।
आखिरी समय में उन्होंने सिखों से गुरु ग्रंथ साहिब को ही गुरु का दर्जा देने की अपील की और गुरु परंपरा को खत्म कर दिया। उन्होंने स्वयं भी गुरु ग्रंथ साहिब को माथा टेका। सन 1708 में वे नांदेड़ साहिब में दिव्य ज्योति में विलीन हो गए।

मान्यताः पांवटा साबिह गुरुद्वारे के पास और यमुना नदी किनारे दशम ग्रंथ की रचना के वक्त यमुना नदी से बहुत शोर होता था। इस पर गुरु गोबिंद सिंह ने प्रार्थना की तो यमुना ने शोर करना बंद कर दिया।

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