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Folk Song Fag: होली पर गाए जाने वाले फेमस फाग और गीत, आइये जानते हैं इनकी परंपरा

Famous Folk Song Fag वैसे तो भारत में हर महीने और ऋतु के लिए तमाम लोक गीत गाए जाते हैं, लेकिन इनमें फाग का विशेष महत्व है। फाल्गुन महीने में गाए जाने वाले फाग के लाखों दीवाने हैं। आइये जानते हैं कि क्या है फाग और होली पर गाए जाने वाले कुछ प्रसिद्ध फाग गीत..

Mar 25, 2024 / 05:22 pm

Pravin Pandey

होली पर गाए जाने वाले फेमस फाग

फाग एक लोक गीत है। परंपरा के अनुसार यह हिंदी कैलेंडर के फाल्गुन महीने में गाया जाता है। यह मूल रूप से उत्तर प्रदेश का लोक गीत है। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश से सटे इलाकों में भी यह गाया जाता है। यह अवधी, ब्रज, बुंदेलखंडी और भोजपुरी बोलियों में गाए जाते मिलते हैं। इसका विषय प्रायः होली, प्रकृति की सुंदरता, सीताराम और राधाकृष्ण का प्रेम होता है। इसे स्त्री और पुरुष दोनों गाते हैं। इसे शास्त्रीय और उपशास्त्रीय संगीत के रूप में भी गाया जाता है।

यूपी के गांव देहातों में फाल्गुन महीने (जिस महीने में होली पड़ती है) में फाग गाए जाने की परंपरा है। इसमें एक मंडली शाम को खेती किसानी के काम से निपटकर एक जगह जुटती है और बारी-बारी से सभी के घर जाकर फाग के गीत गाती है और नाचती-गाती है। इस समय ढोलक, मंजीरा बजाकर त्यौहार का आनंद लिया जाता है। यह क्रम फाल्गुन पूर्णिमा यानी होली तक चलता रहता है। इस दिन फगुआरों की टोली लोगों संग अबीर-गुलाल खेलकर उत्सव भी मनाती है फाग के भी कई प्रकार हैं इनमें से देवताओं को प्रशन्न करने के लिए धमार फाग गाया जाता है। इसके बाद चैत्र का महीना शुरु होने पर चैता गाया जाता है। यहां पढ़ते हैं कुछ फाग और होली गीत
गौरी संग लिए शिवशंकर खेलें फाग
केकर भीगे हो लाली चुनरिया?
केकर भीगे हो लाली चुनरिया?
केकरा भीगे ल सिर पाग?
केकरा भीगे ल सिर पाग?
गौरी संग लिए शिवशंकर खेलें फाग
गौरी संग लिए शिवशंकर खेलें फाग
सिया जी के भीगे हो लाली चुनरिया
सिया जी के भीगे हो लाली चुनरिया
राम जी के भीगे सिर पाग (पगड़ी)
राम जी के भीगे सिर पाग
गौरी संग लिए शिवशंकर खेलें फाग
गौरी संग लिए शिवशंकर खेलें फाग
अरे गौरा जी के भीगे हो लाली चुनरिया
अरे गौरा जी के भीगे हो लाली चुनरिया
भोले जी के भीगे सिर पाग
भोले जी के भीगे ल सिर पाग
गौरी संग लिए शिवशंकर खेलें फाग
गौरी संग लिए शिवशंकर खेलें फाग
अरे, होली खेलै रघुबीरा
अवध में होली खेलै रघुबीरा
अरे, होली खेलै रघुबीरा
अरे, होली खेलै रघुबीरा
अवध में होली खेलै रघुबीरा
होली खेलै रघुबीरा अ
वध में होली खेलै रघुबीरा
केकरे हाथे कनक पिचकारी?
केकरे हाथे कनक पिचकारी?
कनक पिचकारी कनक पिचकारी?
केकरे हाथे अबीरा?
अरे, केकरे हाथे अबीरा?
अवध में होली खेलै रघुबीरा
अरे, होली खेलै रघुबीरा
अवध में होली खेलै रघुबीरा
राम के हाथे कनक पिचकारी
सीता के हाथे कनक पिचकारी
कनक पिचकारी कनक पिचकारी
कनक पिचकारी कनक पिचकारी
राम के हाथे अबीरा
अरे, राम के हाथे अबीरा
अवध में होली खेलै रघुबीरा
अरे, होली खेलै रघुबीरा
अवध में होली खेलै रघुबीरा
(सीता जी के अयोध्या आने पर गाया जाने वाला फाग)
अरे, गोरिया करी के सिंगार
अंगना में पीसे लीं हरदिया
होए, गोरिया करी के सिंगार
अंगना में पीसे लीं हरदिया
ओ अंगना में पीसे लीं हरदिया
ओ अंगना में पीसे लीं हरदिया
गोरिया करी के सिंगार
अंगना में पीसे लीं हरदिया
अरे, जनकपुर के हवे सिल सिलबटिया
जनकपुर के हवे सिल सिलबटिया
अरे, अवध के हरदी पुरान
अवध के हरदी पुरान
गौरी संग लिए शिवशंकर खेलें फाग
गौरी संग लिए शिवशंकर खेलें फाग
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कै मन प्यारे ने रंग बनायो
सो के मन के सर धोली
नर्मदा रंग से भरी होली खेलेंगे श्री भगवान.

नौ रंग प्यारे ने रंग बनायो
सो दस मन के सर धोली
नर्मदा रंग से भरी होली खेलेंगे श्री भगवान.
भर पिचकारी चंदा सूरज पे डारी
सो रंग गए नौ लख तारे
नर्मदा रंग से भरी होली खेलेंगे श्री भगवान.

भर पिचकारी महल पे डारी
सो रंग गए महल अटारी
नर्मदा रंग से भरी होली खेलेंगे श्री भगवान.
उड़त गुलाल लाल भये बादल
भर पिचकारी मेरो सन्मुख डारी
सो रंग गई रेशम साड़ी
नर्मदा रंग से भरी होली खेलेंगे श्री भगवान.

राधा लाड़ करें गिरधर पै!
रुपें न अपने घर पै!
उरझे में सुरझें ना नैना, पी के पीताम्बर पै॥
कोए बात मौं फार सामने, कै नई सकत जबर पै॥
‘ईसुर’ जात मोह के बस में, सत्ती चड़ सरवर पै॥
अर्थः राधा जी गिरधर कृष्ण से बहुत प्रेम करती हैं। वे अपने घर में नहीं टिकतीं। उनके नेत्र प्रियतम कृष्ण के पीतांबर से ऐसे उलझे हैं कि सुलझाए नहीं सुलझते। बड़े लोगों की बात मुँह खोल कर सबके सामने कोई नहीं कह सकता। अरे ईसुरी! मोह के फंदे में फंसी नारी प्रियतम पर सती हो जाती है।
डारी रूप नयन गर फांसी!
दै काजर विस्वासी!
कोरन कोर डोर काजर की मन मोहन के आँसी॥
मनमथ कौ अनुहार त्याग कें, भूल गई हरि हाँसी॥
बैठे जाय ख़ास महलन में, ऊँची लेत उसासी॥
‘ईसुर’ श्री बृखभान लाड़ली, बैठी बनी रमा सी॥
अर्थः आंखों में कटीला काजल लगाकर सौन्दर्य ने आंखों को गले की फांसी बना रखा है। मनमोहन कृष्ण को आंखों की कोरों में लगी यह काजल की धार बेहाल किए देती है। कामदेव की अनुहार वाले कृष्ण हंसना−बोलना भूल बैठे हैं। वे निज मंदिर में बैठे उसांसें ले रहे हैं। अरे ईसुरी! वृषभानु-नंदिनी लक्ष्मी-सी अनिंद्य सुंदरी बनी बैठी हैं।

मीरा के मनभावन माधव, रूक्मा राज किए संग कान्हा,
होली रंग रंगा बरसाना, पग-पग राधा पग-पग कान्हा।
नीला,पीला, हरा, गुलाबी, सतरंगी अंबर होली का,
आओ मिलकर खुशियां बांटें, कष्टों की जल जाए होलिका।

जिनकी सजनी छूट गई है, हर होली उनकी बदरंगी,
जिनकी सजनी रूठ गई है, होली उन बिछुड़ों की संगी।
पग-पग नफरत, पग-पग विषधर,
आस्तीन नहीं है जिनकी, उनको भी डस लेते विषधर,
आओ मिलकर प्रेमरंग से, सबके मन का जहर बुझाए
अमृत भर दें नख से शिख तक, हर चेहरे पर रंगत लाएं,
कष्ट मिटाएं मानवता का, आओ गीत फाग के गाएं
मिलजुल कर हर चौराहे, रंगों का यह पर्व मनाएं॥

कहीं पे राधा,कहीं पे मीरा, कहीं पे रूक्मा मिलती है,
होली की है छटा निराली, हमको हर घर मिले हैं कान्हा,
मीरा के मनभावन माधव, रूक्मा राज किए संग कान्हा,
होली रंग रंगा बरसाना, पग-पग राधा पग-पग कान्हा।

कब होही मिलन मोर राधा के संग
अरे भर के रखे हौ पिचकारी मा रंग
कब होही मिलन मोर राधा के संग

अरे अपन अपन गोपी संग होरी खेले ग्वाला
तोला तोर बुलावत हे ये मुरली वाला
ये मुरली वाला हो ये मुरली वाला
तोला तोर बुलावत हे ये मुरली वाला
आना झन कर ना तंग आना झन कर ना तंग
आना झन कर ना तंग आना झन कर ना तंग
अरे भर के रखे हौ पिचकारी मा रंग
कब होही मिलन मोर राधा के संग
अरे ललिता बिसाखा संग अइस जब राधा
पुछेव ओला कहसे ओ दिखत हावौ सादा
दिखत हावौ सादा ओ दिखत हावौ सादा
पुछेव ओला कइसे ओ दिखत हावौ सादा
करहु तोर संग उतलन करहु तोर संग उतलन
करहु तोर संग उतलन करहु तोर संग उतलन
अरे भर के रखे हौ पिचकारी मा रंग
कब होही मिलन मोर राधा के संग
अरे दुनो झन खेलबो ओ होरी आज जम के
तोर मोर जोड़ी हे जनम जनम के
जनम जनम के वो जनम जनम के
तोर मोर जोड़ी हे जनम जनम के
रंग डारेव अंग अंग रंग डारेव अंग अंग
रंग डारेव अंग अंग रंग डारेव अंग अंग
येदे भर के मारेव मै पिचकारी के रंग
येदे होगे मिलन मोर राधा के संग
अब होगे मिलन मोर राधा के संग
अरे भर के मारेव मै पिचकारी के रंग
येदे होगे मिलन मोर राधा के संग
मां खेलैं मसाने में होरी,
दिगंबर खेलैं मसाने में होरी,
भूत पिशाच बटोरी,
दिगंबर खेलैं लखि सुन्दर फागुनी छटा की,
मन से रंग गुलाल हटा के ये,
चिता भस्म भरि झोरी,
दिगंबर खेलैं, नाचत गावत डमरू धारी,
छोड़ें सर्प गरल पिचकारी,
पीटैं प्रेत थपोरी, दिगंबर खेलैं मसाने में होरी..
भूतनाथ की मंगल होरी,
देखि सिहायें बिरज की छोरीय,
धन-धन नाथ अघोरी,
दिगंबर खेलैं मसाने में होरी..
चिता की भस्म से खेली जाती है होली

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