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फाल्गुन अमावस्या कब, यहां जानें इस दिन स्नान-दान का महत्व और पूजा विधि

ज्योतिषाचार्य पं. अमर अभिमन्यु डब्बावाला के मुताबिक जो लोग इस दिन व्रत रखना चाहते हैं, वे व्रत भी रख सकते हैं। इस दिन व्रत करने से व्यक्ति के अच्छे कर्म में वृद्धि होगी जिससे उसके जीवन में खुशहाली आएगी।

Feb 13, 2023 / 06:35 pm

Sanjana Kumar

हिन्दू पंचांग के मुताबिक फाल्गुन माह साल का अंतिम माह होता है। इसीलिए इस माह में मंत्र जप और तप का विशेष महत्व माना गया है। इस साल फाल्गुन अमावस्या 20 फरवरी 2023 को मनाई जाएगी। ज्योतिषाचार्य पं. अमर अभिमन्यु डब्बावाला के मुताबिक जो लोग इस दिन व्रत रखना चाहते हैं, वे व्रत भी रख सकते हैं। इस दिन व्रत करने से व्यक्ति के अच्छे कर्म में वृद्धि होगी जिससे उसके जीवन में खुशहाली आएगी। फाल्गुन अमावस्या के दिन भगवान शिव की पूजा का विधान है। यह अकाल मृत्यु, भय, पीड़ा और बीमारी से बचाती है। इस दिन पूजा और व्रत जीवन की कठिनाइयों और जटिलताओं से छुटकारा पाने में मदद करता है। हिन्दू शास्त्रों में इस व्रत को अश्वत्थ प्रदक्षिणा व्रत कहा गया है। इस दिन शिवजी के साथ ही पीपल के वृक्ष की पूजा, शनिदेव की भी पूजा करने का विधान है। इस लेख में जानें फाल्गुन अमावस्या कब है, इस दिन का महत्व और स्नान-दान का विशेष मुहूर्त…

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फाल्गुन अमावस्या 2023 तिथि और योग
कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि आरंभ- 19 फरवरी, रविवार शाम 4 बजकर 18 मिनट से।
कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि सम्पन्न- 20 फरवरी, दोपहर, 12 बजकर 35 मिनट तक।
उदयातिथि के आधार पर फाल्गुन अमावस्या 20 फरवरी को मनाई जाएगी। सोमवार होने के कारण यह सोमवती अमावस्या मानी जाएगी।

 

परिघ योग में फाल्गुन अमावस्या
फाल्गुन अमावस्या के दिन यानी 20 फरवरी को सुबह से ही परिघ योग बन रहा है। यह योग सुबह 11 बजकर 3 मिनट तक रहेगा। उसके बाद से शिव योग प्रारंभ हो जाएगा। परिघ योग में शनि का प्रभाव ज्यादा होता है। दरअसल यह शनि से शासित योग है। इस योग में आप शत्रुओं के खिलाफ कोई कार्य करते हैं, तो आपको सफलता मिलती है। ध्यान दें कि परिघ योग में कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए।

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यहां जानें फाल्गुन अमावस्या का महत्व
अमावस्या तिथि के दिन भगवान विष्णु की पूजा और भगवद कथा का पाठ करना लाभकारी माना जाता है। इस दिन किए गए दान और पुण्य कर्मों का कभी न खत्म होने वाला फल मिलता है। इस दिन पूजा और व्रत करना परिवार और संतान के सुख के लिए बेहद लाभकारी माना गया है। यदि परिवार का कोई सदस्य या कोई व्यक्ति पितृ दोष से पीडि़त है या किसी की कुंडली में यह दोष है, तो इस दिन विशेष पूजा और व्रत करने से ऐसे दोषों से मुक्ति मिल जाती है।

 

स्नान-दान का महत्व
फाल्गुन अमावस्या पर स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व माना गया है। इस दिन मौन धारण करना भी बहुत शुभ माना जाता है। देव ऋषि व्यास के मुताबिक मौन धारण करना, ध्यान करना और स्नान करना, जब यह सब एक साथ किया जाता है तो इसे सहस्त्र गौ दान के बराबर माना गया है। पवित्र जल में गोता लगाना, विशेष रूप से कुरुक्षेत्र के ब्रह्म सरोवर में, बेहद शुभ फलदायी माना गया है। जो महिलाएं सोमवती अमावस्या का व्रत करती हैं उन्हें भी इसकी कथा सुननी चाहिए। शास्त्रों के अनुसार भीष्म ने इस दिन का महत्व युधिष्ठिर को समझाया था। भीष्म ने कहा ‘जो व्यक्ति इस दिन पवित्र नदी में स्नान करता है, उसे सभी दुखों से मुक्ति मिल जाती है।’ यह भी माना जाता है कि इस दिन स्नान करने से श्रद्धालु के पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और उनका आशीर्वाद मिलता है।

 

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फाल्गुन अमावस्या पर पीपल की पूजा
फाल्गुन अमावस्या पर पीपल के पेड़ की पूजा करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है। मान्यता है कि पीपल के पेड़ में त्रिदेवों का वास होता है। इसलिए इस दिन पीपल की जड़ में जल और दूध चढ़ाना चाहिए। इसके बाद फूल, अक्षत, चंदन आदि से पूजा करनी चाहिए। पीपल के पेड़ की 108 परिक्रमा धागे से करनी चाहिए। इसके बाद पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाना चाहिए। इसके बाद सामथ्र्य के अनुसार दान करना चाहिए। इन नियमों का पालन करने से पितृ दोष, गृह दोष और शनि दोष के अशुभ प्रभाव दूर होते हैं और घर-परिवार में शांति बनी रहती है।


यहां जानें पूजा विधि
– अमावस्या के दिन गंगा स्नान करें, यदि संभव न हो तो जातक नहाने के पानी में गंगाजल की 2-3 बूंदें मिलाकर उस पानी से नहाएं।
– स्नान के बाद सूर्य देव को अघ्र्य दें और सूर्य मंत्र का जाप करें।
– इसके बाद भगवान गणेश की पूजा करें और भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा करें।
– यदि आप व्रत रखना चाहते हैं तो व्रत का संकल्प लें और यदि नहीं तो सामान्य पूजा की जा सकती है।
– भगवान विष्णु को पीले फूल अर्पित करें।
– देवताओं को केसर, चंदन आदि का भोग लगाएं।
– घी का दीपक जलाएं। इत्र और तिलक लगाएं।
– इसके बाद धूप-दीप जलाकर आरती करें।
– फिर हो सके तो परिक्रमा करनी चाहिए। उसके बाद नैवेद्य अर्पित करें।
– प्रसाद के रूप में चरणामृत और लड्डू या गुड़ का भोग लगाएं।
– अपने पूर्वजों को याद करें और उनके नाम से खाने का सामान या फल बांटें।
– इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं।
– उन्हें पितरों के नाम से दान दें।
– शाम को दीपक जलाएं और पूजा जरूर करें।

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