छठ महापर्व पूजा का आरंभ कार्तिक मास के शुक्ल की चतुर्थी तिथि से होता है, एवं शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को इसका समापन होता है। इस त्यौहार को देश ही नहीं प्रवासी भारतीय भी हर्षोल्लास के साथ समान रूप से मनाते हैं। छठ पूजा गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर के किनारे पानी में खड़े होकर की जाती है, एवं सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है।
छठ पूजा
छठ पूजा चार दिनों तक चलने वाला अत्यंत कठिन और महत्वपूर्ण महापर्व होता है, अंतिम दिन सप्तमी तिथि को सूर्य को अर्घ्य देकर ही व्रत उपवास छोड़ा जाता है। जो श्रद्धालु छठ का व्रत करते हैं वे पानी भी ग्रहण नहीं करते निराहार और निर्जला उपवास रखते हैं। बिहार और उत्तर प्रदेश के पूर्वी इलाकों में छठ पर्व पूर्ण श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। छठ पर्व में लोग फल, गन्ना, डाली और सूप आदि का प्रयोग करते हैं।
– छठ पूजा के पहले दिन- नहाय खाय दिवस।
– दूसरे दिन- लोहंडा और खारना के रूप में बनाया जाता है। इस दिन सूर्योउदय से सूर्यास्त तक निर्जला उपवास रखा जाता है। शाम के समय सूर्य भगवान को भोजन देने के बाद ही उपवास खोला जाता है।
– छठ पूजा के तीसरे मुख्य दिन के रूप में बिना पानी के उपवास रखा जाता है, जो पूरी रात जारी रहता है और अगले अंतिम दिन सूर्योदय के बाद विशेष पूजा अर्चना की जाती है।
2 नवंबर रविवार को पूजा का शुभ मुहूर्त
– सुबह 6 बजकर 43 मिनट पर सूर्योदय एवं शाम को 6 बजे सूर्यास्त होगा।
– छठ महापर्व के चौथे और अंतिम दिन, उगते हुये सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, जिसे उषा अर्घ्य कहा जाता है। सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही 36 घंटे से चल रहे लंबे उपवास को तोड़ा जाता है।
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