मां ब्रह्मचारिणी को माता पार्वती का ही अविवाहित रूप माना जाता है। ब्रह्मचारिणी संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ, ब्रह्म के समान आचरण करने वाली है। इन्हें कठोर तपस्या करने के कारण तपश्चारिणी भी कहा जाता है।
इनकी उपासना के संबंध में माना जाता है कि इससे मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। साथ ही जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता।
नवरात्र के दूसरे दिन यानि मां ब्रह्मचारिणी की पूजा के दिन उन कन्याओं का पूजन किया जाता है कि जिनका विवाह ( Marriage ) तो तय हो गया है, लेकिन अभी तक शादी नहीं हुई है। ऐसे में इस दिन इन्हें अपने घर बुलाकर पूजन के पश्चात भोजन कराने के पश्चात वस्त्र, पात्र आदि भेंट किए जाते हैं।
माता ब्रह्मचारिणी की पूजा का महत्व Brahmcharini Puja importance
मान्यता के अनुसार मां ब्रह्मचारिणी Brahmcharini का स्मरण करने से (Brahmcharini Puja Ka Mahatva) व्यक्ति में तप, त्याग, सदाचार, वैराग्य और संयम में वृद्धि blessings होती है।
वहीं प्राचीन मान्यताओं के मुताबिक देवी के इस स्वरुप की जो साधक विधि-विधान से अर्चना करता है उसकी कुंडलिनी शक्ति जाग्रत हो जाती है। तप और साधना के तत्वों को सीखना ही माता ब्रह्मचारिणी के स्वरूप की पूजा का मुख्य उद्देश्य है।
ज्योतिष के अनुसार जिस प्रकार 7वें दिन की देवी काल रात्रि शनि ग्रह को नियंत्रित करती है उसी प्रकाद दूसरे दिन की देवी ब्रह्मचारिणी मंगल ग्रह को नियंत्रित करती हैं। माना जाता है कि ऐसे में इस दिन देवी के पूजन से मंगल ग्रह (Mars) के दुष्प्रभाव प्रभाव कम होते हैं।
मां ब्रह्मचारिणी की आराधना की विधि: brahmacharini puja vidhi
– मां ब्रह्चारिणी की पूजा ( poojan vidhi ) नवरात्र के दूसरे दिन की जाती है। इस दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर नित्य क्रिया के स्नानादि के पश्चात हाथों में सफेद पुष्प लेकर सच्चे मन से मां के नाम का देवी मां की मूर्ति या चित्र के सामने स्मरण करें और घी का दीपक जलाकर मां की मूर्ति का पंचामृत से अभिषेक करें।
– इसके बाद मातारानी को कुमकुम सिंदूर लगाकर मां के समक्ष मंत्र का उच्चारण करें।
‘इधाना कदपद्माभ्याममक्षमालाक कमण्डलु
देवी प्रसिदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्त्मा।।’
– फिर वह प्रसाद जो आपने बनाया है ( Puja Path ) वह मां को अर्पण करें और प्रसाद के पश्चात आचमन और फिर पान, सुपारी भेंट कर देवी मां की प्रदक्षिणा करें। कलश देवता की पूजा के उपरांत इसी प्रकार नवग्रह, दशदिक्पाल, नगर देवता, ग्राम देवता, की पूजा करें। इनकी पूजा के बाद माता ब्रह्मचारिणी की पूजा करें।
– ध्यान रहे कि मां ब्रह्मचारिणी को इस दिन मिश्री, चीनी और पंचामृत का भोग अवश्य चढ़ाना चाहिए।
मां से मिलने वाला आशीर्वाद : लंबी आयु व सौभाग्य का वरदान Signals देतीं हैं।
माता ब्रह्मचारिणी का स्वरूप
माता ब्रह्मचारिणी श्वेत वस्त्र में सुशोभित हैं, उनके दाहिने हाथ में जप माला और बायें हाथ में कमण्डल है। देवी का स्वरूप अत्यंत तेज़ और ज्योतिर्मय है। साथ ही देवी प्रेेम स्वरूप भी हैं।
पौराणिक मान्यताएं : Mythological story
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवी पार्वती ने भगवान शिव ( Shiv-parvati-marriage ) से विवाह करने की इच्छा व्यक्त की, जिसके बाद उनके माता-पिता उन्हें हतोत्साहित करने की कोशिश करने लगे। हालांकि इन सबके बावजूद देवी ने भगवान कामदेव से मदद की गुहार लगाई।
ऐसा कहा जाता है कि कामदेव ने शिव पर कामवासना का तीर छोड़ा और उस तीर ने शिव ( Lord Shiva ) की ध्यानावस्था में खलल उत्पन्न कर दिया, जिससे भगवान शंकर आगबबूला हो गए और उन्होंने कामदेव को भस्म कर दिया। लेकिन यह बात यहीं खत्म् नहीं हुई और इसके बाद देवी पार्वती ने शिव की तरह जीना आरंभ कर दिया।
देवी पहाड़ पर गईं और वहां उन्होंने कई वर्षों तक घोर तपस्या की, जिसके कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी नाम दिया गया। इस कठोर तपस्या से देवी ने भगवान शंकर ( Bhagwan Shiv ) का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। इसके बाद भगवान शिव अपना रूप बदलकर पार्वती के पास गए और अपनी यानि शिव की ही बुराई की, लेकिन देवी ने उनकी एक न सुनी। अंत में शिव जी ने उन्हें अपनाया और विवाह किया।