एक साथ सड़क पर क्यों उतरते हैं प्रदेश भर के किन्नर? बताया जाता है कि राजा भोज के शासन काल में भोपाल में जब सूखा पड़ा तो अकाल से मुक्ति पाने के लिए ज्योतिषाचार्य ने राजा भोज से किन्नरों से भुजरिया ( Celebrating Bhujaria celebrations ) कराने का आग्रह किया। कहा जाता है कि तब से ही यह परंपरा भोपाल में चली आ रही है।
राखी के दो दिन बाद मनाया जाता है भुजरिया पर्व भुजरिया पर्व ( bhujaria ) राखी ( Raksha Bandhan ) के दो दिन बाद मनाया जाता है। इस पर्व की तैयारी राखी से लगभग 12 दिन पहले से ही की जाने लगती है। इस दौरान गेहूं के दानों को छोटे-छोटे पात्रों में अंदर मिट्टी में अंकुरित होने के लिए रख दिया जाता है।
बुधवाड़ा किन्नर घराने से शुरू होता कारवां यह कारवां भोपाल शहर के बुधवाड़ा किन्नर घराने से शुरू होता है और शहर के तालाब के पास मंदिर तक चलता है। इस दौरान किन्नरों की टोलियां मंगल गीतों पर झूमते हुए चलती हैं।
भुजरिया लेना शुभ मानते हैं लोग साल में एक बार होने वाले इस त्यौहार पर खुद को आकर्षक दिखाने के लिए किन्नर कपड़े और प्रसाधन पर जमकर पैसे खर्च करती हैं। किन्नरों के आशीर्वाद की मान्यता होने के कारण लोग भुजरिया ( bhujaria perv ) लेना शुभ मानते हैं। इस पर्व में शामिल होने के लिए मध्य प्रदेश के अलावा राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों के किन्नर भोपाल पहंचे हैं।