परशुराम जयंती की कथा
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, शुक्ल पक्ष के दौरान तीसरे दिन (तृतीया) को परशुराम जयंती वैशाख महीने जो कभी अप्रैल या कभी मई के महीने में आता है। शास्त्रों और हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान परशुराम के जन्म से संबंधित दो प्रसंग मिलते हैं। हरिवंश पुराण के अनुसार, कार्तवीर्य अर्जुन नाम का एक राजा था जो महिष्मती नागरी पर शासन करता था। राजा कार्तवीर्य और उसके कई अन्य सहयोगी क्षत्रिय राजा मित्र विनाशकारी कार्यों में लिप्त थे और वें बिना कारण ही निर्बलों पर अत्याचार करते थे।
उनके अनाचार और अत्याचार जिससे अन्य जीवों के लिए जीवन जीना कठिन हो गया। इस सबसे बहुत दुखी होकर माता पृथ्वी ने भगवान विष्णु से पृथ्वी और जीवित प्राणियों को क्षत्रियों की क्रूरता से रक्षा के लिए सहायता मांगी। माता पृथ्वी की मदद करने के लिए, भगवान विष्णु ने परशुराम के रूप में देवी रेणुका और ऋषि जमदग्नि के पुत्र के रूप में अवतार लिया। भगवान परशुराम ने कार्तवीर्य अर्जुन तथा सभी अनाचारी क्षत्रिय राजाओं अपने फरसे से वध कर माता पृथ्वी को उनकी हिंसा और क्रूरता से मुक्त कराया।
ऐसे करें भगवान परशुराम की पूजा
अन्य हिंदू पर्व त्यौहारों के समान ही परशुराम जयंती के दिन सूर्योदय से पहले पवित्र तीर्थों में या फिर घर में गंगाजल मिले जल से स्नान करना अति शुभ माना जाता है। स्नान के बाद पूजा में धुले हुए श्वेत वस्त्र ही पहनना चाहिए। पूजा में भगवान विष्णु एवं पशुराम जी को चंदन, तुलसी के पत्ते, कुमकुम, अगरबत्ती, फूल और मिठाई चढ़ाकर पूजन करना चाहिए। कहा जाता है कि परशुराम जयंती के दिन व्रत रखने से श्रेष्ठ और कुल उद्धारक पुत्र की प्राप्ति होती है। इस दिन के उपवास में केवल दूध का ही सेवन करना चाहिए।
पर्व पूजा शुभ मुहूर्त
– परशुराम जयंती पर्व रविवार 26 अप्रैल 2020
– तृतीया तिथि का आरंभ शनिवार 25 अप्रैल को सुबह 11 बजकर 51 पर हो जाएगा
– तृतीया तिथि का समापन रविवार को दोपहर 1 बजकर 22 पर होगा।
– अतः अक्षय तृतीया पर्व पूजन रविवार 26 अप्रैल को सूर्यादय से लेकर दोपहर 1 बजे तक किया जा सकता है।
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