यूरोप

Nobel Prize 2018: अफ्रीकी देश कॉन्गो के डॉ. डेनिस और इराक की नादिया को शांति का नोबेल

इन्हें दिसंबर में होने वाले समारोह में सम्मानित किया जाएगा।

Oct 05, 2018 / 03:24 pm

Shweta Singh

नादिया

स्टॉकहोम। दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित नोबेल शांति पुरस्कार की घोषणा शुक्रवार को कर दी गई। इस साल यह सम्मान कॉन्गो के डॉक्टर डेनिस मुकवेज और इराक की नादिया मुराद को दिया जाएगा। इन्हें इस वर्ष 10 दिसंबर में होने वाले समारोह में सम्मानित किया जाएगा। पुरस्कार समिति ने दोनों शांति दूतों को युद्ध और सशस्त्र संघर्ष के दौरान यौन हिंसा का शिकार होने वाली लड़कियों और महिलाओं के लिए उल्लेखनीय कार्य के लिए इस सम्मान के लिए चुना है।

पुरस्कार समिति के अनुसार पेशे से फिजिशियन डेनिस मुक्वेज ने अपना पूरा जीवन युद्ध के दौरान यौन हिंसा की शिकार हुई पीड़ितों की सेवा में लगा दिया। डॉ. मुक्वेज और उनकी टीम अब तक कांगो के बुकाबू स्थित अपने अस्पताल में हजारों पीड़ितों का इलाज कर चुकी है। डॉ. मुक्वेज ने 2008 में इस अस्पताल की स्थापना की थी। एक अनुमान के मुताबिक कॉन्गो में लंबे समय तक चले गृहयुदध के दौरान साठ लाख से ज्यादा नागरिक प्रभावित हुए थे। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुके डॉ.मुक्वेज का कहना है कि न्याय पाना सभी का हक है।

खुद युद्ध पीड़िता पर संघर्ष की मिसाल
डॉ.मुक्वेज के साथ नोबेल साझा करने वाली नादिया खुद यौन अपराध की पीड़ित रही हैं। इराक में गृहयुद्ध के दौरान उन्हें आंतकी संगठन आइएस की बर्बरता का शिकार होना पड़ा। आतंकियों ने नादिया सहित 3000 लड़कियों को अगवा कर लिया और महीनों उनका यौन शोषण किया। इनमें से ज्यादातर लड़कियां इराक की अल्पसंख्यक समुदाय यजीदी की थीं। नादिया खुद भी इसी समुदाय से हैं, जो आइएस आतंकियों के निशाने पर रहता है। दरअसल आइएस आतंकी रणनीति के तहत इस समुदाय की लड़कियों को निशाना बनाते थे। उन्होंने याज़ीदी और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ लड़ाई में यौनहिंसा को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया। इराक के सिंजर जिले के ओचो गांव की नादिया को आतंकियों ने 2014 में अगवा किया था। तीन महीने उनके कैद में रहने के बाद आखिरकार नादिया किसी तरह बचकर भाग निकलीं। यहां से निकलने के बाद उन्होंने आतंकियों की कैद में महिलाओं से होने वाली क्रूरता और पीड़ितों के लिए आवाज उठाई। उनका काम ऐसा था कि मात्र 23 साल की उम्र संयुक्त राष्ट्र ने 2016 में उन्हें मानव तस्करी के खिलाफ पहला गुडविल एंबेसडर नियुक्त किया था।

मलाला युसुफजई नोबेल शांति पुरस्कार की सबसे कम उम्र की विजेता

मलाला युसुफजई नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित होने वाले सबसे कम उम्र की महिला हैं। यही नहीं नोबेल के सभी श्रेणी के विजाताओं में मलाला ही सबसे कम उम्र की विजेता हैं। उन्हें 2014 में शांति के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उनके साथ ही उस वर्ष भारत के कैलाश सत्यार्थी को भी इस पुरस्कार से नवाजा गया था। इन दोनों को बच्चों और युवाओं के दमन के खिलाफ और सभी के शिक्षा के अधिकार के लिए संघर्ष करने के लिए संयुक्त रूप से शांति का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया था। बता दें कि अब तक दो भारतीयों को ये सम्मान दिया जा चुका है। कैलाश सत्यार्थी से पहले ये अवार्ड पाने वाली पहली भारतीय मदर टेरेसा थीं। इसके अलावा जब दलाई लामा को ये सम्मान दिया गया तो पुरस्कार समिति ने दावा किया कि ये उनकी तरफ से महात्मा गांधी जी को सच्ची श्रद्धांजलि है।

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अन्य श्रेणियों में इनको मिला सम्मान

इससे पहले सोमवार को अमरीका के जेम्स पी एलिसन और जापान के तासुकु होंजो को संयुक्त रूप से चिकित्सा के क्षेत्र का नोबेल पुरस्कार देने की घोषणा हुई थी। इन्हें यह सम्मान कैंसर के इलाज में इनकी बड़ी खोज के लिए दिया गया है। आठ अक्टूबर को अर्थशास्त्र के नोबेल विजेता का नाम घोषित होगा। नोबेल के 70 साल के इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है जब साहित्य के श्रेणी में नोबेल नहीं दिया जाएगा। दरअसल विवाद के बाद इस श्रेणी का पुरस्कार न देने की फैसला हुआ है। बुधवार को अमरीकी वैज्ञानिक फ्रांसिस एच अर्नाल्ड, जार्ज पी स्मिथ और ब्रिटिश शोधकर्ता सर ग्रेगरी विंटर को बुधवार को रसायनशास्त्र का नोबेल पुरस्कार देने का ऐलान किया गया है। इसके साथ ही रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने लेजर भौतिकी पर खोज के लिए अमरीका के आर्थर एश्किन (96), फ्रांस के गेरार्ड मोरो (74) और कनाडा की डोना स्ट्रिकलैंड (59) के नाम का ऐलान किया।

अब तक दिए जा चुके हैं नोबेल शांति के 98 पुरस्कार

नोबेल पुरस्कार देने की शुरुआत 1901 में हुई थी। यह पुरस्कार शांति, साहित्य, भौतिक, रसायन, चिकित्सा विज्ञान और अर्थशास्त्र के क्षेत्र में दिया जाता है। तब से अब नोबेल शांति के 98 पुरस्कार दिए जा चुके हैं। 1901 से अब तक 19 बार ऐसा हुआ जब यह पुरस्कार नहीं दिया गया। बता दें कि यह नोबेल पुरस्कार सिर्फ जीवित लोगों को ही दिया जाता है। लेकिन तीन वैज्ञानिक ऐसे हैं जिन्हें मरणोपरांत पुरस्कार दिया गया है।

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