कई द्वीपों के लिए बढ़ा खतरा ‘ऐपिटाइट फॉर डिस्ट्रक्शन’ नाम की रिपोर्ट के मुताबिक पशु उत्पादों के उपभोग के बढ़ने से अब बड़ी मात्रा में भूमि का इस्तेमाल फसल के लिए किया जा रहा है। इससे ऐमजॉन, कॉन्गो बेसिन और हिमालय जैसे द्वीप इलाकों को भी खतरा बढ़ गया है, जहां जल और अन्य संसाधन पहले से ही बहुत ज्यादा दबाव झेल रहे हैं। WWF की रिपोर्ट के मुताबिक, पशु उत्पादों का बहुत ज्यादा इस्तेमाल धरती पर जैव विविधता में 60 प्रतिशत गिरावट का जिम्मेदार है। इतना ही नहीं अकेले यूके की इंडस्ट्री 33 प्रजातियों की विलुप्ति के लिए जिम्मेदार है। WWF के फूड पॉलिसी मैनेजर डंकन विलियमसन ने कहा कि ‘दुनिया भर में लोग जरूरत से ज्याद पशुओं से मिलने वाला प्रोटीन ले रहे हैं। जिसका वन्यजीवन पर खतरनाक असर पड़ रहा है।’
मीट खाने से जल और भूमि पर गहरा असर विलियमसन की माने तो ‘हमें पता है कि बहुत से लोग इस बारे में जागरूक हैं कि मांस आधारित भोजन का जल और भूमि पर असर पड़ता है और यह ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की वजह भी बनता है लेकिन कुछ ही लोगों को इन पशुओं को चारा मुहैया करवाने के लिए फसल उगाने की जमीन की जरूरत की वजह से पड़ने वाले बड़े प्रभावों के बार में पता है।’
2050 तक सोया का उत्पाद 80 फीसदी बढ़ेगी रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2010 तक सोया का उत्पादन इतनी बड़ी मात्रा में होता था कि ब्रिटिश लाइवस्टॉक (पशु) इंडस्ट्री को यॉर्कशर शहर जितने बड़े क्षेत्र में पशुओं को खिलाने के लिए सोया उत्पादन करने की जरूरत थी। मीट के उपभोग बढ़ने की वजह से सोया का उत्पादन भी साल 2050 तक 80 फीसदी बढ़ने की उम्मीद है।
WWF ने दी चेतावनी डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने चेतावनी दी कि मांस कम पौष्टिक वाली चीजें हो गई है।WWF का दावा है कि 1970 के दशक में एक चिकन में पाए जाने वाले ओमेगा -3 फैटी एसिड की मात्रा हासिल करने के लिए आज छह गुना ज्यादा चिकन खाने की जरूरत है।