दरअसल, 15 जनवरी 2019 को थेरेसा मे सरकार को उस समय बड़ा झटका लगा था जब उसे संसद में ब्रेक्जिट प्लान को लेकर हार का सामना करना पड़ा था। अभी भी यूके सरकार के पास 28 मार्च तक अंतिम फैसला लेने का समय है। इस बीच उसे अपने संसद का भरोसा हालिस करने के साथ यूरोपियन यूनियन को भी प्लान बी के लिए राजी करना होगा। डील की कुछ शर्तो की वजह से ब्रिटिश संसद ब्रेड डील के पक्ष में नहीं है। इसलिए संसद ने डील से उन शर्तों को हटाने के लिए ब्रिटिश पीएम को यूरोपियन यूनियन को राजी करने को कहा है।
इस संकट से पार पाने के लिए 21 मार्च को ईयू के शिखर सम्मलेन में थेरेसा में यूरोपीय यूनियन के नेताओं से मिलेंगी जहां उनके उत्साही सहयोगी योजनाओं को अंतिम रूप देंगे। अगर प्लान बी पर सहमति बनती है तो ठीक नहीं तो 29 मार्च को यह तय हो जाएगा कि यूके ईयू के साथ बेक्जिट डील करने जा रहा या नहीं ।
आपको बता दें कि 29 मार्च, 2019 को ब्रिटेन को ईयू से अलग होना है। अगर उससे पहले ब्रेक्जिट मसौदा ब्रिटिश संसद में पास नहीं होता तो भी ब्रिटेन ईयू से अलग हो जाएगा। यह स्थिति ही ‘नो-डील’ ब्रेक्जिट कहलाएगी। अगर पास हो जाता है तो यह डील विद डील कहलाएगी। नो-डील ब्रेक्जिट की स्थिति में ब्रिटेन बिना किसी समझौते के एक झटके में ईयू से अलग होगा जिस वजह से दोनों के भविष्य के संबंधों को लेकर कुछ भी तय नहीं हो सकेगा। जानकारों की मानें तो यह स्थिति ब्रिटेन के लिए किसी बड़ी आपदा से कम नहीं होगी।
जानकारों का कहना है कि नो-डील ब्रेक्जिट के जरिए अलग होने पर ब्रिटेन ईयू की कस्टम यूनियन और एकल बाजार प्रणाली से भी बाहर हो जाएगा। इससे दोनों के बीच उत्पाद, पूंजी, लोग और सेवाओं के मुक्त आवागमन पर रोक लग जाएगी। ऐसी स्थिति में ब्रिटेन को व्यापार के लिए विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के नियमों का पालन करना होगा। इन नियमों के तहत ईयू से ब्रिटेन आने वाले उत्पादों पर शुल्क लगना शुरू हो जाएगा जिससे ब्रिटेन के बाजार में कीमतों में भारी इजाफा होगा। वहां के लोगों को भारी महंगाई का सामना करना पड़ेगा।
नो डील की स्थिति में ब्रिटेन में निर्मित कई उत्पादों को यूरोपीय संघ द्वारा नए प्राधिकरण और प्रमाणन की बात कहकर खारिज भी किया जा सकता है। इन आशंकाओं को देखते हुए अधिकांश कंपनियां ब्रिटेन छोड़ने का मन बना चुकी हैं। एक सर्वे के मुताबिक हर पांच में से एक कंपनी ने अपना सामान समेटना भी शुरू कर दिया है और अधिकांश कंपनियों ने कुछ महीनों के लिए अपने कई कारखाने बंद करने की भी घोषणा कर दी है।
नो डील की स्थिति में सबसे बड़ा खामियाजा ब्रिटेन के नागरिकों को भुगतना पड़ेगा। एक सर्वेक्षण के मुताबिक इससे सात लाख से ज्यादा लोगों को बेरोजगारी की मार झेलनी पड़ेगी।
नो डील का अप्रत्यक्ष प्रभाव ईयू के उन सदस्य देशों का भी होगा जो बड़ी मात्रा में ब्रिटेन से माल आयात करते हैं। यही हाल आयरलैंड गणराज्य जैसे ईयू सदस्य देशों का भी होगा जो रोजमर्रा की जरूरतों के लिए काफी हद तक ब्रिटेन पर निर्भर हैं।
ब्रिटिश मीडिया के मुताबिक इससे उन अलगाववादियों को फिर हवा मिल सकती है, जो उत्तरी आयरलैंड को ब्रिटेन से अलग कर आयरलैंड गणराज्य में विलय करवाने की मंशा पाले हुए हैं। कुछ साल पहले ही शांति स्थापित करने और अलगाववाद की स्थिति को खत्म करने के लिए ब्रिटेन और आयरलैंड गणराज्य ने अपने बीच सीमा न बनाने का निर्णय लिया था।