श्रीदेवी ‘चालबाज’ में एक जगह कहती हैं- ‘मैं मर्दों की बनाई इस दुनिया में अपनी शर्तों पर जीती हूं।’ उसी तरह उषा खन्ना ने हुनर के दम पर अपनी शर्तों के हिसाब से पुरुष संगीतकारों की भीड़ में अलग मुकाम बनाया। मुमकिन है, नई पीढ़ी उषा खन्ना के नाम से अनजान हो, लेकिन उनकी धुनों वाले गाने यह पीढ़ी भी गुनगुनाती है। चाहे वह धीमे सुरों वाला रूमानी ‘तू इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है’ (आप तो ऐसे न थे) हो या दर्द में भीगा ‘तेरी गलियों में न रखेंगे कदम’ (हवस) या बारिश के बाद महकती मिट्टी-सा सोंधा-सोंधा ‘बरखा रानी जरा जमके बरसो’ (सबक) या फिर चुलबुला ‘शायद मेरी शादी का ख्याल दिल में आया है’ (सौतन)। यह उषा खन्ना की ही खूबी थी कि येसुदास की आवाज में उन्होंने एक तरफ ‘मधुबन खुशबू देता है’ (साजन बिना सुहागन) जैसा पुनीत पावन गीत रचा, तो उन्हीं की आवाज में छेड़छाड़ वाले ‘दिल के टुकड़े-टुकड़े करके मुस्कुरा कर चल दिए’ (दादा) को ऐसी शीतल धुन दी, जो इस किस्म के दूसरे गीतों में कम ही महसूस होती है।
अपनी पहली फिल्म ‘दिल देके देखो’ (1959) में नौ बेहद लोकप्रिय गीच रचकर उन्होंने जैसे मुनादी कर दी थी कि फिल्म संगीत में उनकी धुनों का जादू काफी दूर और देर तक चलने वाला है। उन्होंने कई गीत भी गाए। संगीतकार कल्याणजी-आनंदजी के लिए उन्होंने ‘पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले’ (जॉनी मेरा नाम) में किशोर कुमार के साथ कुछ पंक्तियां गुनगुनाई थीं। मोहम्मद रफी के साथ उनकी आवाज वाला ‘शाम देखो ढल रही है’ (अनजान है कोई) खासा लोकप्रिय रहा। उनके गैर-फिल्मी एलबम ‘मौसम’ की एक गजल ‘दूर रहकर तो हरेक शख्स भला लगता है/ कोई नजदीक से देखे तो पता लगता है’ भी काफी पसंद की गई।
अपने फिल्मकार पति सावन कुमार की ज्यादातर फिल्मों का संगीत उषा खन्ना ने दिया। यह जुगलबंदी बाद में तलाक के साथ टूट गई। उषा खन्ना के संगीत के सफर को याद करते हुए ‘निशान’ (1965) का गीत बरबस याद आ जाता है- ‘धूप खिल गई रात में/ या बिजली गिरी बरसात में/ हाय तबस्सुम तेरा।’ उनकी धुनें भी कभी मन में नरम धूप की तरह खिलती हैं, तो कभी बारिश की ठंडी फुहारों की तरह बरसती हैं।
उनकी धुनों में विविधता के साथ ऐसी सहजता है कि जब आप ‘हम तुमसे जुदा होके’ (एक लुटेरा), ‘छोड़ो कल की बातें कल की बात पुरानी’ (हम हिन्दुस्तानी), ‘अपने लिए जिए तो क्या जिए’ (बादल),’मैंने रखा है मोहब्बत अपने अफसाने का नाम’ (शबनम), ‘चांद को क्या मालूम’ (लाल बंगला), ‘अजनबी कौन हो तुम’ (स्वीकार किया मैंने), ‘तू जो कहे तो राधा बनूं मैं’ (लैला) या ‘जिंदगी प्यार का गीत है’ (सौतन) सुनते हैं तो साथ-साथ गुनगुनाने लगते हैं। दुनिया को बेहिसाब सुरीला बनाने वालीं उषा खन्ना 7 अक्टूबर को 79 साल की हो जाएंगी। वे कई साल से फिल्मों से दूर हैं, लेकिन उनके सैकड़ों गाने संगीतप्रेमियों के दिलों के आस-पास हैं।