फिल्म ‘चंडीगढ़ करे आशिकी’ देश के 2500 और विदेश के 500 स्क्रीन्स पर एक साथ रिलीज हुई है। बता दें कि दबंग खान और अहान शेट्टी की फिल्मों ने भी पहले दिन इससे ज्यादा की कमाई की थी। फिल्म तड़प औऱ अंतिम को टक्कर देने में यह फिल्म फिलहाल पीछे ही नजर आ रही है। हालांकि आपको बता दें कि आयुष्मान की फिल्म अंधाधुन की पहले दिन की कमाई ने मेकर्स को परेशान कर दिया था, बावजूद इसके उस फिल्म ने ताबड़तोड़ कमाई की थी।
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हालांकि फिल्म ‘चंडीगढ़ करे आशिकी’ के निर्माताओं ने अपनी आस को छोड़ा नहीं है क्योंकि उनके सामने कम बजट वाली अंधाधुन का जीता जागता उदाहरण सामने है। हालांकि ऐसा कहा जा रहा है कि आयुष्मान खुराना को जानबूझकर ऐसे कार्यक्रमों से दूर रखा गया जहां उनसे फिल्म के विषय को लेकर सवाल पूछे जा सकते थे, लेकिन इस बात में कोई संशय नहीं कि अगर इस फिल्म के विषय को लेकर इसकी रिलीज से पहले खुलकर बहस होती तो फिल्म को इसको फायदा ही मिलता।
हालांकि फिल्म ‘चंडीगढ़ करे आशिकी’ के निर्माताओं ने अपनी आस को छोड़ा नहीं है क्योंकि उनके सामने कम बजट वाली अंधाधुन का जीता जागता उदाहरण सामने है। हालांकि ऐसा कहा जा रहा है कि आयुष्मान खुराना को जानबूझकर ऐसे कार्यक्रमों से दूर रखा गया जहां उनसे फिल्म के विषय को लेकर सवाल पूछे जा सकते थे, लेकिन इस बात में कोई संशय नहीं कि अगर इस फिल्म के विषय को लेकर इसकी रिलीज से पहले खुलकर बहस होती तो फिल्म को इसको फायदा ही मिलता।
फिल्म की रिलीज से पहले की मार्केटिंग इस फिल्म की नाकामी की बड़ी वजह दिख रही है। शायद यही सब कारण हैं कि इस फिल्म की पहले दिन की कमाई सिर्फ 3.75 करोड़ रुपये ही रह गई। चंडीगढ़ करे आशिकी नार्मल फिल्मों से हटकर बात करती दिखाई देती है। दरअसल फिल्म बेहद ही संवेदनशील मुद्दे पर बनी है और वह मुद्दा है एलजीबीटी कम्यूनिटी का मुद्दा।
यह भी पढेंः दिलीप कुमार के इश्क में प्रेमिकी ने खा ली थी नींद की गोलियां, सगाई छोड़ भाग गए थे Actor दरअसल इस फिल्म में आयुष्मान खुराना चंढ़ेडीगढ़ में बॉडी बिल्डर-वेटलिफ्टर है। वह अपने जिम की चेन खोलना चाहता है लेकिन इसके लिए उसे चैंपियन बनना होगा। इसी दौरान जुंबा क्लासेस लेने के लिए वाणी कपूर की एंट्री हो जाती है और फिर हर दूसरी फिल्म की तरह हीरो उसके प्यार में डूब जाता है। प्यार सीधे फिजिकल होता है और जब बात जिंदगी में सीरियस होने की चलती है तो मानवी उसे बताती है कि वह पैदाइशी लड़का थी। बस यही से शुरू होती है असल जिंदगी में पैदा होने जैसी दिक्कत। पूरी कहानी फिर इस बेहद संवेदनशील मुद्दे के इर्द-गिर्द दौड़ती रहती है।