बॉलीवुड मेें अपने संजीदा अभिनय के लिए मशहूर अभिनेता बलराज साहनी की आज पुण्यतिथि है, जिन्हें आज भी फिल्म जगत में एक ऐसे अभिनेता के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने भावात्मक अभिनय से लगभग चार दशक तक सिने प्रेमियों का भरपूर मनोरंजन किया था। बलराज साहनी के उत्कृष्ठ अभिनय से सजी .दो बीघा जमीन, वक्त, काबुलीवाला, एक फूल दो माली और गर्म हवा जैसी दिलों को छू लेने वाली फिल्मों आज भी सिने प्रेमियों के दिलों जगत बनाए हुए हैं।
महात्मा गांधी के साथ भी किया काम
पाकिस्तान के रावलपिंडी की मिडिल क्लास फेमिली के घर मई 1913 में में बलराज साहिनी का जन्म हुआ था। इनका दूसरा नाम युधिष्ठर साहनी था, जिनका रूझान बचपन से ही अपने पिता के पेशे की ओर न होकर अभिनय की ओर था। लाहौर के मशहूर गवर्नमेंट कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य में स्नाकोत्तर की शिक्षा पूरी करने के बाद बलराज साहनी रावलपिंडी लौट गये और पिता के व्यापार में उनका हाथ बटाने लगे। वर्ष 1930 अंत मे बलराज साहनी और उनकी पत्नी दमयंती रावलपिंडी को छोड़ गुरु देव रवीन्द्र नाथ टैगोर के शांति निकेतन पहुंचें जहां बलराज साहनी अंग्रेजी के शिक्षक के रूप मे नियुक्त हुए।
वर्ष 1938 मे बलराज साहनी ने महात्मा गांधी के साथ भी काम किया। इसके एक वर्ष के पश्चात महात्मा गांधी के सहयोग से बलराज साहनी को बीबीसी के हिन्दी के उदघोषक के रूप में इग्लैंड में नियुक्त किया गया। लगभग पांच वर्ष के इग्लैंड प्रवास के बाद वह 1943 में भारत लौट आए और फिल्म जगत में शुमार हो गए। साल 1951 मे जिया सरहदी की फिल्म हमलोग के जरिए बतौर अभिनेता वह अपनी पहचान बनाने में सफल हुए।
आज भी लोगों की जुबान पर है ऐ मेरी जोहरा जबीं…के बोल
साल 1965 में प्रदर्शित फिल्म वक्त में बलराज साहनी के कई नए रूप देखने को मिले, जिसमें उन्होंने लाला केदार नाथ के किरदार को जीवंत कर दिया। फिल्म में उन पर फिल्माया गाना .ऐ मेरी जोहरा जबीं तुझे मालूम नही .सिनेमा के दर्शक आज भी नही भूल पाये है। निर्देशक एम.एस.सथ्यू की 1973 में प्रदर्शित गर्म हवा बलराज साहनी की मौत से पहले उनकी महान फिल्मो में से सबसे अधिक सफल फिल्म थी।
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उत्तर भारत के मुसलमानों के पाकिस्तान पलायन की पृष्ठभूमि पर बनी इस फिल्म में वह एक केन्द्रीय भूमिका में रहे। इस फिल्म में उन्होंने जूता बनाने बनाने वाले एक बूढे मुस्लिम कारीगर की भूमिका अदा की। उस कारीगर को यह फैसला लेना था कि वह हिन्दुस्तान में रहे अथवा नवनिर्मित पकिस्तान में पलायन कर जाये। अगर दो बीघा जमीन को छोड़ दें तो बलराज साहनी के फिल्मी कैरियर की सबसे अधिक बेहतरीन अदाकारी वाली फिल्म गर्म हवा ही थी। अपने संजीदा अभिनय से दर्शको को भावविभोर करने वाले महान कलाकार बलराज साहनी 13 अप्रैल 1973 को इस दुनिया को अलविदा कह गए।
एक्टिंग ही नहीं लिखने में माहिर थे साहिनी
दो बीघा जमीन शुरुआत के समय निर्देशक बिमल राय साहिनी के बारे में सोचते थे कि शायद ही बलराज इस फिल्म में रिक्शावाले के किरदार को अच्छी तरह से निभा सकें। इसका कारण यह था कि वास्तविक जिंदगी में बलराज साहनी बहुत पढे लिखे इंसान थे, जिन्हें रील लाइफ में रिक्शा मैन का किरदार शायद पसंद न आए लेकिन उन्होंने बिमल राय की सोच को गलत साबित करते हुए फिल्म में अपने किरदार के साथ बखूबी न्याय किया। रिक्शावाले को फिल्मी पर्दे पर साकार करने के लिए साहनी ने कोलकाता की सड़कों पर 15 दिनों तक खुद रिक्शा चलाया। गौरतलब है कि फिल्म दो बीघा जमीन को आज भी भारतीय फिल्म इतिहास की सर्वश्रेष्ठ कलात्मक फिल्मों में शुमार किया जाता है।
अंतराष्ट्रीय स्तर पर प्राप्त की ख्याति
इस फिल्म को अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी काफी सराहा गया एवं कांस फिल्म महोत्सव के दौरान इसे अंतराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला। वर्ष 1961 में प्रदर्शित फिल्म काबुलीवाला में भी बलराज साहनी ने अपने संजीदा अभिनय से दर्शकों को भावविभोर किया। उनका मानना था कि पर्दे पर किसी भी किरदार को साकार करने से पहले उस किरदार के बारे में पूरी जानकारी हासिल की जानी चाहिये। इसीलिए वह मुंबई मे एक काबुलीवाले के घर में लगभग एक महीना तक रहे। बहुमुखी प्रतिभा के धनी बलराज साहनी अभिनय के साथ-साथ लिखने में भी काफी रूचि रखते थे।
1960 में अपने पाकिस्तानी दौरे के बाद उन्होंने मेरा पाकिस्तानी सफरनामा और 1969 में तत्कालीन सोवियत संघ के दौरे के बाद मेरा रूसी सफरनामा किताब भी लिखी। इसके अलावा उन्होंने .मेरी फिल्मी आत्मकथा. किताब के माध्यम से लोगों को अपने बारे में बताया। देवानंद द्वारा निर्मित फिल्म .बाजी. की पटकथा भी बलराज साहनी ने लिखी। 1957 मे प्रदर्शित फिल्म .लाल बत्ती का निर्देशन भी किया।
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