पश्चिमी उत्तर प्रदेश को लेकर दिग्गज में गंभीरता इसी बात से झलकती है कि खुद सीएम योगी इन दिनों पश्चिमी यूपी के दौरों पर निकले हुए हैं। वहीं आगामी 29 सितंबर को कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी मेरठ से चुनावी जनसभा का आगाज करने जा रही है तो वहीं रालोद के नए मुखिया अपने परंपरागत वोटबैंक जाटों को साधने के लिए कभी बागपत तो कभी मुजफ्फरनगर में सियासत का दांव पेंच भिड़ा रहे हैं।
बता दे कि गत पांच सितंबर को मुजफ़्फ़रनगर में ‘किसान महापंचायत’ के आयोजन के बाद से राजनैतिक परिस्थितियां तेज़ी से बदल रही हैं। इस महापंचायत में किसान नेताओं ने खुलकर बीजेपी की आलोचना की थी। इसके बाद से बीजेपी चुनाव के दौरान जाट बहुल इलाक़ों में होने वाले संभावित नुक़सान की भरपाई करने का रास्ता तलाश रही है। इसी सिलसिले में योगी आदित्यनाथ बुधवार से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बिजनौर, शामली और दादरी का दौरा कर चुके हैं।
ऐसा माना जा रहा है कि भाजपा के प्रति जाटों की नाराज़गी से पैदा हुई चुनौती का सामना गुर्जर समुदाय के सहारे करने की कोशिश कर रही है। वहीं भाजपा के प्रति जाटो और किसानों की नाराजगी को दूसरे दल भुनाना चाहते हैं। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव भी पश्चिमी उप्र की करीब 120 सीटों पर अपना नफा-नुकसान देख रहे हैं।
जिसने साधा पश्चिम पूरी यूपी उसकी बता दे कि पिछले चुनाव में भाजपा ने पश्चिमी उप्र के गढ मेरठ से अपनी चुनावी रैलियों का श्रीगणेश किया था। जिसके बाद भाजपा के लिए प्रदेश के अन्य जिलों के लिए राहें आसान होती चली गई। बता दे कि प्रदेश में चुनाव के दौरान वोटों का पहला दौर इसी पश्चिमी उप्र के जिलों से शुरू होता है। इसी कारण हर दल की चाह होती है कि वोटिंग के पहले दौर से ही पार्टी के लिए ऐसा माहौल बने जिससे आगे सभी दौर आसान होते चले जाए। भाजपा ने इसको भलीभांति समझा और पिछले कई चुनावों से पश्चिमी में अपना मजबूत जनाधार बनाया जो कि वोट बैंक में तब्दील हुआ। सत्तारूढ भाजपा की इस रणनीति को अन्य दल अब समझे तो वे भी भाजपा की राह पर चल पड़े हैं। देखना है कि इन दलों को भाजपा के इस फार्मूले से कितना लाभ मिलता है।