देशभर में कोरोना कहर बरपा रहा है। इस महामारी के बीच में देश के लोगों में राजनीतिक जिज्ञासा का केंद्र पश्चिम बंगाल चुनाव है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चल रहा भाजपा का विराट चुनाव अभियान किस अंजाम तक पहुंचेगा, यह तो चुनाव के नतीजे बताएंगे। लेकिन इस सबके बीच बंगाल में भाजपा के नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं तक में एक ही सुगबुगाहट और संदेश है कि उनके पास यहां खोने को कुछ नहीं है और पाने को पूरा बंगाल है। 2016 के विधानसभा चुनाव में मात्र तीन सीटें जीतने के बावजूद भाजपा ने बंगाल में भारी दस्तक दी है। चुनाव के पांच चरण के मतदान हो चुके हैं। 180 सीटों के लिए मतदान के बाद अब 114 सीटों पर तीन चरण में चुनाव होने हैं। भाजपा के आत्मविश्वास को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के इस बयान से देखा जा सकता है कि इन 180 सीटों में 122 सीटें जीतेंगे। दिल्ली, झारखंड में भी ऐसे दावे किए गए थे। पर इन दावों पर बंगाल में दबी जुबान लोग विश्वास कर रहे हैं। इस पर सीएम ममता बनर्जी और तृणमूल युवा कांग्रेस अध्यक्ष सांसद अभिषेक बनर्जी का पलटवार भी भारी है।
पहले चुनाव के बाद न दीपक जला, न ठीक से कमल खिला-
बंगाल में भाजपा के पास खोने को कुछ भी नहीं है क्योंकि पहले विधानसभा चुनाव को छोड़ दें तो पश्चिम बंगाल में जनसंघ न कभी अपने दीपक को ठीक से जला सका, न भाजपा अपने कमल को खिला सकी। पहले चुनाव में 9 सीटें जीतने वाली जनसंघ का यहां 1957 के दूसरे चुनाव में खाता भी नहीं खुला था। इसके बाद यहां का मुकाबला कांग्रेस और वाम दलों के बीच ही सिमटा रहा। 2011 के चुनाव में जब ममता ने वाम मोर्चा को उखाड़ फेंका था, तब भी यहां भाजपा का खाता नहीं खुला था। पिछले विधानसभा चुनाव में जरूर भाजपा ने 10 फीसदी वोट लेकर 3 सीटें जीती थीं। 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने 18 सीटें जीतकर सभी को चौंका दिया था।
छठे चरण में 43 सीटों पर होगा मतदान-
राज्य में सोमवार को छठे चरण के मतदान का चुनाव प्रचार थम गया। २२ अप्रेल को इस चरण में चार जिलों की 43 सीटों पर मतदान होना है। इनमें नदिया की 9, उत्तर 24 परगना की 17, पूर्व बर्दवान की 8 और उत्तर दिनाजपुर की 9 सीटों पर मतदान होगा। इनमें सुरक्षा के भारी बंदोबस्त किए गए हैं। यहां करीब 783 अद्र्धसैनिक बलों की कंपनियां तैनात की गई हैं।
‘सोनार बांग्ला’ की बात-
अंग्रेजों के बंगाल विभाजन के समय एकीकरण का माहौल बनाने में गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर के लिखे गीत ‘आमार शोनार बांग्ला’ का प्रमुख योगदान था। पाकिस्तान से मुक्त होने के बाद बांग्लादेश ने इसकी कुछ पंक्तियों को राष्ट्रगान के रूप में अपनाया। अब भाजपा ने चुनाव की पंच लाइन ही ‘सोनार बांग्ला’ रख दी है। यहां की चुनावी हवाओं में अब सबसे बड़ा विमर्श यही है कि भाजपा आ भी सकती है। नहीं भी आई तो तृणमूल का वह दबदबा नहीं रहेगा, जो अब तक था। बंगाल प्रवास के साथ ही एयरपोर्ट से लेकर दो दिन में नापी गई दर्जनों बाजारों और सड़कों की दूरी के दौरान यह चर्चा आम थी। यहां आकर कालीघाट पर काली मां के दर्शन किए। मंदिर से जीविका चलाने वाले राजेंद्र भट्टाचार्य का कहना था कि अब कुछ भी हो सकता है। उन्होंने दबी जुबान से कहा कि बंगाल में बदलाव की दस्तक सुनाई दे रही है। वहीं पूजा सामग्री विक्रेता उदय पाल ने कहा, भाजपा और तृणमूल में कड़ी टक्कर है। कोलकाता में हर जगह ऐसी ही चर्चा है। दम दम निवासी फर्नीचर व्यवसासी राहुल कुमार कहते हैं, वह तृणमूल समर्थक हैं। पर इस बार चिंता हो रही है कि भाजपा कहीं भारी न पड़ जाए। आम बंगाली मान रहा है कि भाजपा बड़ा उलटफेर करेगी।