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वोट डालना मौलिक अधिकार या कर्तव्य, क्या है कोर्ट की नई व्याख्या?

Voting Is Fundamental Right Or Duty: यह बहस हमेशा चलती रहती है कि भारत में वोट डालना मौलिक अधिकार है या कर्तव्य। इस बारे में मणिपुर हाईकोर्ट ने टिप्पणी की है। आइए यहां इस बारे में विस्तार से समझने की कोशिश करते हैं…

Oct 28, 2023 / 08:30 pm

Shaitan Prajapat

Voting Is Fundamental Right Or Duty

Voting Is Fundamental Right Or Duty

मजबूत लोकतंत्र के लिए जरूरी है कि सभी मतदाताओं को अपने मताधिकार का प्रयोग जरूर करना चाहिए। मतदान की ताकत हमें हमारे संविधान से मिलती है और यह सभी भारतीय नागरिक का संवैधानिक अधिकार है। सभी को मतदान जरूर करना चाहिए। मणिपुर हाईकोर्ट ने एक अहम आदेश में कहा है कि कहा कि चुनाव में वोट डालने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत मतदाताओं के भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का ही एक हिस्सा है। कोर्ट ने चुनावी उम्मीदवार के आपराधिक इतिहास के बारे में जानने के मतदाता के अधिकार के संदर्भ में एक फैसले में यह टिप्पणी की।


जस्टिस एमवी मुरलीधरन ने कही ये बात

हाल ही कलकत्ता हाईकोर्ट में तबादला किए जाने से पूर्व अपने फैसले में जस्टिस एमवी मुरलीधरन ने कहा कि संविधान भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है। यह अधिकार चुनाव के मामले में मतदान से संबंधित है क्योंकि मतदाता वोट डालकर अपने विचार व्यक्त करता है।

मतदाता का अधिकार मौलिक और बुनियादी

उन्होंने कहा कि सांसद या विधायक के लिए चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार के आपराधिक अतीत सहित सारी जानकारी करने का मतदाता का अधिकार लोकतंत्र के अस्तित्व के लिए कहीं अधिक मौलिक और बुनियादी है। कोर्ट ने 2022 में हुए राज्य विधानसभा चुनाव के दौरान मणिपुर के एंड्रो सीट से भाजपा विधायक थौनाओजम श्यामकुमार की याचिका को खारिज करते हुए ये टिप्पणियां कीं।

मौलिक अधिकार क्या है?

भारत के संविधान में मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्य का विस्तार से उल्लेख किया गया है। संविधान में मौलिक अधिकार का विस्तार से वर्णन किया गया है। मौलिक अधिकार वे अधिकार होते है जो भारत के संविधान द्वारा यहां निवास करने वाले नागरिकों को दिए गए हैं। इन अधिकारों को नागरिकों के नातिक, धार्मिक और भौतिक विकास के लिए महत्वपूर्ण होते है। भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों का वर्णन संविधान के भाग III में अनुच्छेद 12 से 35 के बीच किया गया है।

मौलिक अधिकार क्या-क्या हैं?

संविधान निर्माण के समय सात मौलिक अधिकारों को अनुच्छेद 12 से 35 के बीच वर्णित किया गया था। वर्ष 1978 में 44वें संविधान संशोधन के बाद इनकी संख्या घटाकर 6 कर दी गई। 44वें संविधान संशोधन के तहत ‘संपत्ति के अधिकार’ को खत्म कर दिया गया।
1. समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18)
2. स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22)
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24)
4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28)
5. सांस्कृतिक एवं शैक्षिक अधिकार (अनुच्छेद 29-30)
6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32)

1. समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 – 18)

समानता का अधिकार भारतीय संविधान के महत्वपूर्ण मौलिक अधिकारों में से एक है जो धर्म, लिंग, जाति, नस्ल या जन्म स्थान की परवाह किए बिना सभी के लिए समान अधिकारों की गारंटी देता है। यह सरकार में समान रोजगार के अवसर सुनिश्चित करता है और जाति, धर्म आदि के आधार पर रोजगार के मामलों में राज्य द्वारा भेदभाव के खिलाफ बीमा करता है। इस अधिकार में उपाधियों के साथ-साथ अस्पृश्यता का उन्मूलन भी शामिल है।

2. स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 – 22)

स्वतंत्रता किसी भी लोकतांत्रिक समाज द्वारा पोषित सबसे महत्वपूर्ण आदर्शों में से एक है। भारतीय संविधान नागरिकों को स्वतंत्रता की गारंटी देता है। स्वतंत्रता के अधिकार में कई अधिकार शामिल हैं जैसे…
— अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
— अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
— बिना हथियार के एकत्र होने की स्वतंत्रता
— संघ की स्वतंत्रता
— किसी भी पेशे को अपनाने की स्वतंत्रता
— देश के किसी भी हिस्से में रहने की आजादी

इनमें से कुछ अधिकार राज्य सुरक्षा, सार्वजनिक नैतिकता और शालीनता और विदेशी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों की कुछ शर्तों के अधीन हैं। इसका मतलब यह है कि राज्य को उन पर उचित प्रतिबंध लगाने का अधिकार है।

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3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 – 24)

इस अधिकार का तात्पर्य मानव तस्करी, बेगार और अन्य प्रकार के जबरन श्रम पर रोक लगाना है। इसका तात्पर्य कारखानों आदि में बच्चों के रोजगार पर प्रतिबंध लगाना भी है। संविधान खतरनाक परिस्थितियों में 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के रोजगार पर प्रतिबंध लगाता है।

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4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 – 28)

यह भारतीय राजनीति की धर्मनिरपेक्ष प्रकृति को इंगित करता है। वहां सभी धर्मों को समान सम्मान दिया जाता है. इसमें विवेक, व्यवसाय, आचरण और धर्म के प्रचार-प्रसार की स्वतंत्रता है। राज्य का कोई आधिकारिक धर्म नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति को स्वतंत्र रूप से अपने विश्वास का पालन करने, और धार्मिक और धर्मार्थ संस्थानों की स्थापना और रखरखाव करने का अधिकार है।

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5. सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार (अनुच्छेद 29 – 30)

ये अधिकार धार्मिक, सांस्कृतिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को उनकी विरासत और संस्कृति को संरक्षित करने की सुविधा प्रदान करके उनके अधिकारों की रक्षा करते हैं। शैक्षिक अधिकार बिना किसी भेदभाव के सभी के लिए शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए हैं।

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6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार (32-35)

यदि नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है तो संविधान उपचार की गारंटी देता है। सरकार किसी के अधिकारों का उल्लंघन या उन पर अंकुश नहीं लगा सकती है। जब इन अधिकारों का उल्लंघन होता है तो पीड़ित पक्ष अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है। नागरिक सीधे सर्वोच्च न्यायालय की शरण ले सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए रिट जारी कर सकता है।

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