2017 में लिखनी शुरू बसपा के अवसान की पटकथा बसपा के अवसान की पटकथा तो 2017 में लिखनी शुरू हो गयी थी जब बसपा से निष्कासित नेताओं ने नेशनल बहुजन एलायंस बनाकर बसपा को खत्म करने का संकल्प लिया था। दिल्ली में दलित-मुसलमान और पिछड़ों के 16 संगठन एकजुट हुए थे। इस एलायंस में शामिल तमाम नेता बसपा से निकलकर विभिन्न पार्टियों में शामिल हो चुके थे। इन्हीं तमाम नेताओं ने ही इस बार अपने-अपने दलों के लिए काम किया और बसपा का वोट छीन लिया।
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क्या माया का जादू खत्म? 1984 से राजनीति में सक्रिय मायावती 1989 में लोकसभा का चुनाव जीतीं थीं। 1995 में मुलायम सिंह की सरकार गिराकर भाजपा के सहयोग से मुख्यमंत्री बनीं। उसके बाद से वे तीन बार और मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। उनके राजनीतिक कॅरियर की सबसे बड़ी उपलब्धि 2007 में अपने दम पर उत्तर प्रदेश में बहुमत जुटाकर मुख्यमंत्री बनना था। 2022 मायावती के लिए सबसे कठिन दौर है। माना जा रहा है यह मायावती के जादू को खत्म होने का दौर है। उनकी राजनीति में आई गिरावट अब स्थाई रूप धारण कर चुकी है। यह भी पढ़ें
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कैडर वोटबैंक नहीं बचा पाई बसपा लोकसभा चुनाव में बसपा ने अपना आधार वोट बैंक बचा लिया था। लेकिन विधानसभा चुनावों में वह कैडर वोटबैंक नहीं बचा पायीं। 1990-91 के बाद से ही बसपा ने अपने वोट बैंक में धीरे-धीरे इज़ाफ़ा किया और 1993 के बाद से लगातार 65-70 विधानसभा सीटें जीतने में वह कामयाब होती रहीं। 1995, 1996 और 2002 में मायावती ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई। 2002 के विधानसभा चुनावों में बहुजन समाज पार्टी का मत प्रतिशत 23.06 तक पहुंचा और 98 सीटों पर उसे जीत हासिल हुई। इसके पहले की अगर बात करें तो 2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा को सबसे ज्यादा 40.43 प्रतिशत वोट मिले थे। तब उसने 403 में से 206 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत पाया था। 2009 के लोकसभा चुनाव में बसपा के 20 सांसद जीते। तब वोट प्रतिशत 13 फीसदी गिरा था और उसे 28.1 फीसदी मत मिले थे। 2012 बसपा का मत प्रतिशत 26 प्रतिशत ही रह गया। 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा एक सीट भी न जीत पायी और उसका मत प्रतिशत 19.77 तक गिर गया। 2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा को 22.24 फीसदी ही वोट मिले और इसका नतीजा यह हुआ कि मायावती की पार्टी 19 सीटों पर सिमट के रह गई। बीजेपी ने लगा ली वोट बैंक में सेंध 21 फीसदी से ज्यादा यूपी में दलित मतदाता हैं। इसमें ज्यादा संख्या पश्चिमी उत्तर प्रदेश में है। दलित वोटों का उपजाति के आधार पर बंटवारा होता है। जाटव, पासी, वाल्मीकि में वोट बंटता है। 55 फीसदी से अधिक वोट जाटव बिरादरी से आते हैं। यह बिरादरी हमेशा से ही मायावती और उनकी पार्टी बसपा के साथ रही है। लेकिन लगता है इस बार जाटवों ने भी बसपा का साथ छोड़ दिया। मायावती का वोट सीधे तौर पर भाजपा को शिफ्ट हुआ। बीजेपी ने मायावती के कोर वोटर माने जाने वाले दलित वोट में भी सेंध लगाई।