ताकत से तकनीक तक पांचवे चरण के चुनावी चक्रव्यूह को भेदकर हर कोई मैदान मारना चाहता है। ताकत से तकनीक तक, जाति से लेकर वादे तक हर मोहरा बड़ी सावधानी से बिठाया जा रहा है। शह और मात का खेल खेला जा रहा है। आइए जानते हैं सियासी संग्राम में सजे पांच चक्रव्यूह के बारे में।
पहला चक्रव्यूह पांचवे चरण के आते आते विवादित बयान अपने चरम पर पहुंच गए हैं। बयानों के बाउंसर में मुद्दे गायब हो गए। गर्मी और चर्बी वाले बयान से होता हुआ यह चरण चुनाव चिन्ह के आतंकवादी होने तक पहुंच गया। इस चरण में समस्याओं पर बात हो रही है। इसलिए पहला चक्रव्यूह समाधान का है। इसीलिए बयानवीरों ने अब चक्रव्यूह को तोडऩे के लिए समस्याओं के समाधान की बात करनी शुरू कर दी है। यह अच्छी बात देखने को मिल रही है।
दूसरा चक्रव्यूह हिंदू बनाम मुसलमान का बयान तो काम आया नहीं। पहले और दूसरे चरण में ध्रुवीकरण की बात हुई। हिंदुओं के पलायन का मुद्दा भी जिंदा किया गया। लेकिन इस चरण में दूसरा चक्रव्यूह किसान हैं। गैया चर गयी वोट… जैसे नारे गूंज रहे हैं। शायद इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह कहना पड़ा कि वह 10 मार्च के बाद छुट्टा जानवरों से जुड़ी समस्या के समाधान की ठोस पहल करेंगे। लेकिन किसानों को मनाना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है।
तीसरा चक्रव्यूह बेरोजगारी का मुद्दा तीसरा चक्रव्यूह बन चुका है। प्रयागराज हो फिर अयोध्या अब चुनाव में मुख्य रूप से दो मुद्दे ही सुर्खियों में हैं- पहला आवारा पशु और दूसरा बेरोजगारी। बीजेपी ने जहां राममंदिर और सुशासन की बात कर रही है वही समाजवादी पार्टी किसानों और बेरोजगारों के मुद्दे उठाकर अवध के कोर जिलों में किला फतेह करने की कोशिश में जुटी है।
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चौथा चक्रव्यूह पांचवें चरण का चौथा चक्रव्यूह जातीय गणित है। इस चरण में अयोध्या से लेकर प्रयागराज तक पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियां कई समूहों में बंटी हैं। भाजपा और सपा दोनों के ही सहयोगी दल इस चरण में अपने प्रत्याशियों को मैदान में उतारे हैं। राजभर, कुर्मी-पटेल, गड़रियों और निषादों को साधना बड़ी चुनौती है। 2017 के विधानसभा चुनाव में दस जिलों की 60 में से 50 सीटें जीतने वाली बीजेपी की प्रतिष्ठा यहां दांव पर है। जातियों को साधना मुश्किल का काम है। यह भी पढ़ें