जैन इंटर कॉलेज करहल के प्रधानाचार्य यदुवीर नारायण सिंह कहते हैं हम लोगों के लिए इससे बड़ी बात क्या हो सकती है कि अखिलेश यहां से चुनाव लड़ रहे हैं। बात जीत की नहीं है, बल्कि जीत के अंतर की है। 55 साल की रामप्यारी बाई कहती हैं कि अखिलेश हमारे नेता हैं। हम किसी बाहर वाले को घर में कैसे घुसने दें। अच्छा-होगा या खराब काम तो मेरा बेटा ही आएगा। क्षेत्रीय मुद्दों को लेकर शिवनारायण कहते हैं समस्याएं तो उस सरकार में भी थीं।
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दूसरी बार अखिलेश के सामने होंगे बघेल समाजवादी पार्टी से राजनीतिक सफर शुरू करने वाले एसपी सिंह बघेल पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को दूसरी बार टक्कर दे रहे हैं। इससे पहले 2009 में फिरोजाबाद संसदीय सीट से वे अखिलेश के खिलाफ मैदान में उतरे थे। उस बार भी जीत का सेहरा अखिलेश के सिर बधा था। बाद में अखिलेश ने यह सीट छोड़ दी थी। बघेल 1998 से 2009 तक सपा की सीट से जलेसर सांसद थे। ऐसा है 7 सीटों का सियासी समीकरण समाजवादी पार्टी के गढ़ मैनपुरी की 4 और कन्नौज की 3 सीटों का सियासी गणित उलझा हुआ है। करहल को छोड़कर किसी भी सीट पर मतदाता कुछ बोलने को तैयार नहीं। न मुद्दों पर बात करते हैं और न सियासत पर। इशारों ही इशारों में सियासी तस्वीर जरूर बुनते हैं। उनके हिसाब से देखें तो मैनपुरी की करहल के अलावा अन्य सीटों पर भी विरोधी पार्टियों के पास कोई हल नहीं है। इधर, कन्नौज की तिर्वा सीट पर सपा का बोलबाला है। बाकी 2 सीटों पर संघर्ष है।
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कन्नौज में खाकी बनाम खादी वीआरएस लेकर कनौज सदर से भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ रहे पुलिस कमिश्नर असीम अरुण सपा के किले को भेदने में लगे है। 3 बार के सपा विधायक अनिल दोहरे को खुली चुनौती दे रहे हैं। यहां से सांसद रहे अखिलेश की प्रतिष्ठा भी दांव पर है। हालांकि जनता अभी मौन है। अरुण के पिता भी आईपीएस थे। अरुण पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सुरक्षा में भी शामिल थे। पिछले चुनावों का हाल सपा के गढ़ मैनपुरी और कन्नौज में बहुजन समाजवादी और कांग्रेस पार्टी का सूपड़ा साफ रहा। बीजेपी को कुछ सीटों से संतोष करना पड़ा। 2007 के चुनाव में सपा को 05 और भाजपा को 1 सीट मिली। 2012 के चुनाव में सभी 7 सीटें समाजवादी के खाते में गईं। 2017 में मोदी लहर का हल्का प्रभाव रहा और भाजपा 03 सीट पर काबिज हुई। जबकि, सपा 4 सीट पर।
बसपा बिगाड़ रही खेल कभी सूबे पर राज करने वाली बसपा इस बार सभी दलों का खेल बिगाड़ रही है। वरिष्ठ राजनीति विशेषज्ञ प्रदीप सिंह यादव की मानें तो बसपा सुप्रीमो मायावती साइलेंट की भूमिका में हैं। ऐसे में बसपा का वोटर कंफ्यूज है। यादव की मानें तो बसपा के दो प्रकार मतदाता हैं। एक कट्टर बसपा का, दूसरा गरीब दलित। दूसरा वाला मतदाता मुफ्त राशन, पीएम आवास का ऋण चुकाने भाजपा का रुख कर रहा है। इसका नुकसान सपा या अन्य पार्टियों को होगा। मसलन, कन्नौज की छिबरामऊ सीट यादव और ब्राह्मण बाहुल्य है। लेकिन, मुस्लिम मतदाता निर्णायक होते हैं। बसपा ने यहां से मुस्लिम प्रत्याशी उतारा है, जो सपा का वोट कटेगा। इसका फायदा भाजपा को होगा। वहीं तिर्वा सीट पर भाजपा ने वर्मा प्रत्याशी उतारा तो बसपा ने भी वर्मा को ही मैदान में ला दिया। इसका लाभ सपा को मिलेगा। बसपा ने यही चाल ज्यादातर सीटों पर चली है।
भाजपा को जीत दिलाने वाले ने अखिलेश के लिए त्याग दी सीट करहल में भाजपा को 2002 में पहली बार जीत दिलाने वाले सोभरण सिंह ने अपने नेता अखिलेश के लिए सीट त्याग दी। दरअसल, 2007 के चुनाव में सोभरण सिंह सपा से लड़े और जीते। जीत का सिलसिला 2017 तक जारी रहा। लेकिन, इस बार अखिलेश ने यहाँ से लड़ने की इच्छा जताई तो उन्होंने सीट कुर्बान कर दी।
यहां कभी नहीं जीती बसपा करहल एक ऐसी विधानसभा सीट हैं जहां बसपा कभी नहीं जीती। कांग्रेस को दो बार 1951 और 1980 में जीत मिली। इस सीट पर सपा का खाता 1993 में बम्बूराम यादव की जीत से खुला था। 96, 2007, 12 और 17 में भी सपा विधायक बना। यहां स्वतंत्र दल की जीत में हैट्रिक लग चुकी है। इसके प्रत्याशी ने 1962, 67 और 69 में जीत दर्ज की। 1974 और 77 में मुलायम के राजनीतिक गुरु रहे नाथू सिंह जीते। इसके अलावा प्रजा सोशलिस्ट, जनता दल, जनता पार्टी, लोकदल, भारतीय क्रांति दल ने एक एक बार जीत का सेहरा बांधा।