यह भी पढ़े : पैराशूट महिला जो बनीं यूपी की मुख्यमंत्री, सख्त निर्णयों के लिए थीं विख्यात मोरारजी देसाई का पत्र लेकर रिक्शे से पहुंचे राजभवन दिलस्चप तत्व यह है कि एक बार रामनरेश यादव अपने काम के सिलसिले में समाजवादी नेता रामनारायण से मिलने गए थे और उनसे मिलते ही राजनारायण की आंखों में चमक आ गई और वो उन्हें जनता पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से मिलाने ले गए। उस समय उत्तर प्रदेश विधानसभा में जनता पार्टी बहुमत में आ चुकी थी। लेकिन जनता पार्टी के नेता इस उधेड़बुन में थे कि उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री किसे बनाया जाए। उसी दिन रामनरेश यादव को चौधरी चरण सिंह और मोरारजी देसाई से मिलवाया गया। इस मुलाकात के बाद तत्काल उन्हें एक पत्र दिया गया था। इसके साथ ही हिदायत दी गई कि पत्र को बिना किसी को बताये उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल को सौपेंगे। पत्र लेकर रामनरेश यादव दिल्ली से लखनऊ आए और एक रिक्शे में बैठकर राजभवन की ओर रवाना हुए।
यह भी पढ़े : यूपी का ऐसा सीएम जो चाय-नाश्ते का पैसा भी भरता था अपनी जेब से आकाशवाणी के पत्रकार की कार में बैठने से इंकार वरिष्ठ पत्रकार और राजनीति के बड़े जानकार बृजेश शुक्ला बताते हैं कि रामनरेश यादव को रास्ते में रवींद्रालय के सामने आकाशवाणी के एक पत्रकार ने उनसे अपनी गाड़ी में बैठने का अनुरोध किया और कहा कि आप रिक्शे से ना चलिए. आप यूपी के मुख्यमंत्री नियुक्ति किए जाने वाले हैं। लेकिन रामनरेश ने कार में बैठने से इंकार कर दिया और रिक्शे से ही राजभवन पहुंचे। राजभवन में राज्यपाल से मिलने के बाद 23 जून 1977 को रामनरेश यादव ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।
यह भी पढ़े : जब मैले-कुचैले धोती-कुर्ता पहन गरीब किसान के वेश में खुद रिपोर्ट दर्ज कराने थाने पहुंचे थे प्रधानमंत्री आजमगढ़ के आंधीपुर गांव में हुआ था जन्म रामनरेश यादव का जन्म एक जुलाई 1928 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के गांव आंधीपुर (अम्बारी) में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। रामनरेश का बचपन खेत-खलिहानों से होकर गुजरा। उनकी माता भागवन्ती देवी धार्मिक गृहिणी थीं और पिता गया प्रसाद महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू और डॉ राममनोहर लोहिया के अनुयायी थे। रामनरेश के पिता प्राइमरी पाठशाला में अध्यापक थे तथा सादगी और ईमानदारी की प्रतिमूर्ति थे। श्री यादव को देशभक्ति, ईमानदारी और सादगी की शिक्षा पिताश्री से विरासत में मिली थी।
यह भी पढ़े : कहानी यूपी के उस सीएम की जो कहता था मैं चोर हूं… यूपी में अन्त्योदय योजना का शुभारंभ मुख्यमंत्रित्व काल में उन्होंने सबसे अधिक ध्यान आर्थिक, शैक्षणिक तथा सामाजिक दृष्टि से पिछड़े लोगों के उत्थान के कार्यों पर दिया तथा गांवों के विकास के लिये समर्पित रहे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आदर्शों के अनुरूप उत्तर प्रदेश में अन्त्योदय योजना का शुभारम्भ किया। रामनरेश यादव ने साल 1977 में आजमगढ़ से छठी लोकसभा का प्रतिनिधित्व किया। वह 23 जून 1977 से 15 फरवरी 1979 तक उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। रामनरेश ने 1977 से 1979 तक निधौली कलां (एटा) का विधानसभा में प्रतिनिधित्व किया तथा 1985 से 1988 तक शिकोहाबाद (फिरोजाबाद) से विधायक रहे। श्री यादव 1988 से 1994 तक (लगभग तीन माह छोड़कर) उत्तरप्रदेश से राज्यसभा सदस्य रहे और 1996 से 2007 तक फूलपुर (आजमगढ़) का विधानसभा में प्रतिनिधित्व किया। रामनरेश यादव ने 8 सितम्बर 2011 को मध्यप्रदेश के राज्यपाल पद की शपथ ग्रहण की और 7 सितम्बर 2016 तक मध्यप्रदेश के राज्यपाल भी रहे। इसके बाद 22नवंबर 2016 को लंबी बीमारी के बाद रामनरेश का लखनऊ में निधन हो गया था।
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आजमगढ़ उपचुनाव में मिली करारी हार के बाद राम नरेश को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। जिसके बाद जनता पार्टी ने डैमेज कंट्रोल करने के लिए बनारसी दास को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया। राम नरेश ने जब मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया तो उसके बाद वो रिक्शे से अपने घर वापस गए। रामनरेश यादव की सरकार में ही मुलायम सिंह पहली बार राज्यमंत्री बने थे।
यह भी पढ़े : यूपी का वह सीएम जो सिर्फ एक दिन के लिए ही बैठा गद्दी पर बेटे नहीं बढ़ा सके पिता की राजनीतिक विरासत रामनरेश यादव ने भारतीय राजनीति में कई मुकाम हासिल किए थे। इनकी सादगी और ईमानदारी की आज भी चर्चा होती है। रामनरेश के 3 पुत्र और 5 पुत्रियां थी। बड़े पुत्र कमलेश ने कभी भी राजनीति में रुचि नहीं ली थी और शैलेश रामनरेश के मध्य प्रदेश का राज्यपाल बनने के बाद उनके साथ ही रहता था। सबसे छोटे बेटे अजय नरेश में राजनीति में जगह बनाने का प्रयास किया, लेकिन वे सफल नहीं हो सके थे।
यह भी पढ़े : आखिर बीएसपी सुप्रीमो मायावती को क्यों कहा जाता है यूपी की परफेक्ट वीमेन पॉलिटिशन व्यापम घोटाले से रामनरेश की छवि को लगा था धक्का रामनरेश के बेटे शैलेश का नाम व्यापम घोटाले में आया था। शैलेश पर तृतीय ग्रेड के 10 अभ्यर्थियों से घूस लेने का आरोप लगा था। इससे मध्य प्रदेश का राज्यपाल रहते हुए रामनरेश यादव की छवि पर भी असर पड़ा था। इस बीच मार्च 2015 में शैलेश की लाश रामनरेश के लखनऊ स्थिति आवास पर मिली थी। शैलेश की मौत को संदिग्ध माना जा रहा था।