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UP Assembly Election 2022: क्या आपको मालूम है आपके एक वोट की कीमत कितनी है ?

UP Assembly Election 2022: सीएमएस की रिपोर्ट ने दावा किया गया कि 2019 में हुए लोकसभा और विधानसभा चुनावों में 55 से 60 हजार करोड़ रुपए खर्च किए गए।

Nov 20, 2021 / 03:08 pm

Nitish Pandey

UP Assembly Election 2022: चुनाव आते ही चुनावों पर होने वाले खर्च पर भी चर्चा शुरू हो जाती है। लेकिन कभी आपने सोंचा कि आपके एक वोट की कीमत क्या है। यानी राजनीतिक दल आपका एक वोट पाने के लिए कितना खर्च करते हैं। सबसे पहले आपका ये समझना जरुरी है कि चुनावों में सिर्फ राजनीतिक दल ही खर्चा नहीं करते, चुनाव आयोग भी हर चुनाव में भारी भरकम रकम खर्च करता है।
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प्रति वोटर कितना खर्च करता है चुनाव आयोग ?

1952 से लेकर 2014 तक के लोकसभा चुनावों की बात की जाए तो 1952 में चुनाव आयोग ने प्रति वोटर 87 पैसे खर्च किए थे। 1977 में ये खर्च पहली बार एक रुपए से ज्यादा हो गया, उस वक्त चुनाव आयोग ने प्रति वोटर 1.19 पैसे खर्च किए थे। 2014 का चुनाव आते-आते चुनाव आयोग ने 3870 करोड़ रुपए खर्च किए। अगर कुल वोटरों की संख्या के साथ इसे मांपा जाए तो प्रति वोटर 69.98 रुपए खर्च किए।
2019 में आयोग ने खर्च किए करीब 5000 करोड़

ऐसा अनुमान है कि साल 2019 की लोकसभा चुनाव में ये खर्च लगभग 5000 करोड़ रुपए के करीब था। खैर ये तो सिर्फ लोकसभा चुनाव के आकड़ें हैं। जरा सोंचिए, अगर विधानसभा चुनावों में होने वाला खर्च भी इसमे जोड़ दिया जाए तो आंकड़ा कई गुना हो जाएगा।
2017 UP विधानसभा चुनाव में खर्च हुए 5500 करोड़

अब बात करते हैं उत्तर प्रदेश की, क्योंकि उत्तर प्रदेश में कुछ ही महीनों बाद विधानसभा का चुनाव होने वाला है। 2017 में हुए विधानसभा पर भी सीएमएस ने एक रिपोर्ट जारी की थी। इस रिपोर्ट में ये दावा किया गया था कि उत्तर प्रदेश में 2017 में विधानसभा चुनाव के दौरान 5500 करोड़ रुपए खर्च हुए।
अथॉरिटीज ने जब्त किए गए थे 200 करोड़

सीएमएस द्वारा किए गए सर्वे में दावा किया गया था कि लगभग एक तीहाई वोटरों ने ये माना कि उन्हें वोट के बदले कैश या फिर शराब का ऑफर दिया गया। 2017 के चुनाव में 200 करोड़ रुपए अथॉरिटीज ने जब्त किए गए थे। अगर अथॉरिटीज की माने तो इससे 4 से 5 गुना कैश चुनाव में घूमा है जो पकड़ में नहीं आया। यानी लगभग 1000 करोड़ रुपए का इस्तेमाल वोटरों में बांटने के लिए किया गया।
एक वोट पर खर्च हुए 750 रुपए

सीएमएस द्वारा दावा किया गया नोटबंदी के बाद चुनाव में होने वाले खर्च में काफी हद तक बढ्ढ़ोंत्तरी हुई है। इस रिपोर्ट की आधार पर अगर हम बात करें तो 2017 में उत्तर प्रदेश में एक वोट के लिए 750 रुपए खर्च किए गए। लेकिन आप इसे विडंबना ही कहेंगे, कि 2019 में सिर्फ चुनाव पर पार्टियों ने जितना पैसा खर्च किया उतने में हमारे एजुकेशन वजट का 60 प्रतिशत निकल जाता। अब इस जानकारी बे बाद आप समझ ही गए होंगे की आपका एक वोट पाने के लिए चुनाव में पार्टियां कितना पैसा खर्च करती हैं।
चुनाव प्रचार में प्रत्याशी कितना कर सकते हैं खर्च ?

लोकसभा चुनाव में एक प्रत्याशी चुनाव में कितना खर्च कर सकता है इसकी सीमा पहले से तय है। 2020 से पहले एक लोकसभा चुनाम में एक प्रत्याशी को चुनाव प्रचार में 70 लाख रुपए खर्च कर सकता था। 2020 में कोरोना संक्रमण के चलते बढ़ा कर इसे 77 लाख रुपए किया गया। वहीं अगर विधानसभा चुनाव की बात करें तो 2020 के बाद एक प्रत्याशी अपने चुनाव प्रचार में 30.80 लाख रुपए तक खर्च कर सकता है।
देश का सबसे महंगा चुनाव था 2019 लोकसभा

ये तो किसी से छुपा नहीं है कि चुनाव मैदान में प्रत्याशी इससे कई ज्यादा गुना खर्च करता है। 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद एक रिपोर्ट सामने आई। ये रिपोर्ट जारी की सेंटर फॉर स्टडीज यानी सीएमएस ने। इस रिपोर्ट में दावा किया गया था कि 2019 के लोकसभा चुनाव देश का सबसे महंगा चुनाव था। इस चुनाव के बाद नरेंद्र मोदी दुनिया की सबसे बड़ी लोकतंत्र में दोबारा पावर में आए।
बीजेपी ने किया सबसे ज्यादा खर्च

सीएमएस की रिपोर्ट ने दावा किया गया कि 2019 में हुए लोकसभा और विधानसभा चुनावों में 55 से 60 हजार करोड़ रुपए खर्च किए गए। अगर एक लोकसभा क्षेत्र की बात करें तो अंदाजन 100 करोड़ के करीब खर्च हुआ। इस रिपोर्ट में ये भी दावा किया गया था कि कुल खर्च में से आधा खर्च भारतीय जनता पार्टी ने किया था।
2019 में एक वोट की कीमत 700 रुपए रही

1998 के लोकसभा चुनाव में जहां 9000 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। वहीं 2019 आते-आते ये आंकड़ा 55 से 60 हजार करोड़ रुपए तक पुहंच गया। यानी इस रिपोर्ट की माने तो 2019 में हर एक वोटर की वोट लेने के लिए औसतन 700 रुपए खर्च किए गए। यानी आपके एक वोट की कीमत 700 रुपए रही।
कहां खर्च हुआ इतना पैसा ?

अब आके मन में सवाल उठ रहा है कि अगर इतना पैसा खर्च हुआ तो हुआ कहां ? सीएमएस की रिपोर्ट की माने तो 12 से 15 हजार करोड़ रुपए वोटरों पर खर्च किए गए। 5 से 6 हजार करोड़ रुपए लॉजिस्टिक पर खर्च किए गए। 10 से 12 हजार करोड़ रुपए औपचारिक खर्च था। सबसे ज्यादा पैसा विज्ञापनो पर खर्च हुआ जिस पर लगभग 20 से 25 हजार करोड़ रुपए किए गए। यानी जितने भी दल हैं वो अपने खर्च का लगभग 45 प्रतिशत हिस्सा सिर्फ और सिर्फ विज्ञापनों के जरिए वोटरों को लुभाने पर खर्च किए।
जब सीमा तय है तो खर्च हुआ कैसे ?

अब आप सोंच रहे होंगे जब खर्च के लिए एक सीमा तय है तो खर्च हुआ कैसे ? यहां कानून का एक ऐसा पेंच है जिसका फायदा सभी राजनीतिक दल उठाते हैं। प्रत्याशियों के लिए तो खर्च की सीमा तो तय है, लेकिन राजनीतिक दलों के लिए कोई सीमा तय नहीं है। सब इसी की आड़ में पार्टियां हजारों करोड़ लगाकर अपना प्रचार प्रसार करती हैं।
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