बीजेपी में पिछड़ा वर्ग का चेहरा हैं केशव प्रसाद मौर्य केशव प्रसाद मार्य, बीजेपी-आरएसएस के हिन्दुत्व का मुखर चेहरा रहे हैं। इसी के साथ ही वो पार्टी का गैर यादव ओबीसी चेहरा भी हैं, जिनके द्वारा इस वर्ग को बीजेपी से जोड़ने की कोशिश की जाती है। लम्बे समय तक विश्व हिन्दू परिषद् से जुड़े रहे। लगभग 18 साल तक इन्होने विश्व हिन्दू परिषद के लिए प्रचार किया। बीजेपी में केशव प्रसाद मौर्य का क़द तेजी बढ़ने की वजह ये थी, कि पार्टी में ओबीसी नेता तो कई थे मगर कुशवाहा के मौर्य जाति का कोई नेता नहीं था। मौर्य जाति की एक बहुत बड़ी संख्या उत्तरप्रदेश में बड़ी संख्या होने की वजह से पार्टी इनके चेहरे को आगे बढ़ाने का का काम किया। 2014 से 2017 तक लोकसभा के सांसद रहे 53 वर्षीय केशव प्रसाद मौर्य के मुताबिक वो भी प्रधानमंत्री मोदी की तरह बचपन में चाय बेचा करते थे। इसके अलावा अखबार बेचने का भी काम करते थे। इतना नही नहीं उनके लोकसभा प्रोफ़ाइल में भी इस बात का उल्लेख है – बचपन में चाय बेचने के दौरान समाज सेवा और शिक्षा की प्रेरणा मिली। सिराथू सीट को पहली बार 2012 में केशव प्रसाद मौर्य ने बीजेपी की झोली में डाला था। लेकिन इस बार उनके लिए यहां से मुश्किल खड़ी हो सकती है।
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पल्लवी पटेल की बड़ी बहन हैं अनुप्रिया पटेल पल्लवी पटेल केन्द्र सरकार में मंत्री अनुप्रिया पटेल की छोटी बहन हैं। हालांकि, दोनों बहनें अब अलग-अलग सियासी राह पर हैं। एक जमाने में जब दोनों बहनें एक साथ थीं उस दौरान भी पल्लवी पटेल पार्टी संगठन में सक्रिय हुआ करती थीं। दोनों बहनों में अनबन की शुरुआत 2014 में हुई थी। जब माँ कृष्णा पटेल ने पल्लवी पटेल को पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया तो अनुप्रिया पटेल ने इसका तुरंत विरोध किया। यहीं से अपना दल के सियासी विरासत पर हक की लड़ाई शुरू हुई। आलम ये हो गया कि 2016 में ये विवाद चुनाव आयोग की चौखट पर पहुँच गया। मां कृष्णा पटेल, पल्लवी पटेल का समर्थन कर रही थीं, जिसके चलते पल्लवी पटेल ने पार्टी के काम को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया। पल्लवी पटेल ने 2017 विधानसभा चुनाव में 59 सीटों पर उम्मीदवार भी उतारे लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ। फिलहाल 2022 के चुनाव में पल्लवी पटेल सपा के टिकट पर सिराथू से अपनी किस्मत आज़मा रही हैं। अगर पल्लवी पटेल मुस्लिम और कुर्मी वोटर्स को साध लेती हैं तब वो बीजेपी के लिए दिक्कत पैदा कर सकती हैं। यह भी पढ़ें