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उत्तर प्रदेश का छोटा सा जिला इटावा जिसे बीहड़ों का बार्डर भी कहा जाता है। जहां से शुरू होता है बागियों, बीहड़ों, डाकुओं क्षेत्र। ऐसे जिले की एक तहसील सैफई जहां 22 नवंबर 1939 को मुलायम सिंह (Mulayam Singh Yadav) का जन्म एक यादव परिवार में हुआ। वहीं से राजनीति की शुरुआत करने वाले नेता जी ने इस शास्त्र को शस्त्र बना लिया और राजनीति के शास्त्र में मास्टर की डिग्री हासिल की।
उत्तर प्रदेश का छोटा सा जिला इटावा जिसे बीहड़ों का बार्डर भी कहा जाता है। जहां से शुरू होता है बागियों, बीहड़ों, डाकुओं क्षेत्र। ऐसे जिले की एक तहसील सैफई जहां 22 नवंबर 1939 को मुलायम सिंह (Mulayam Singh Yadav) का जन्म एक यादव परिवार में हुआ। वहीं से राजनीति की शुरुआत करने वाले नेता जी ने इस शास्त्र को शस्त्र बना लिया और राजनीति के शास्त्र में मास्टर की डिग्री हासिल की।
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साल 1967 तक मुलायम सिंह यादव बतौर शिक्षक ही लोगों के बीच प्रचलित थे। लेकिन शिक्षकों की आवाज़ उठाने के साथ ही वो युवाओं के इतने फेमस हो गए की पूरे जिले में जब भी कोई कार्यक्रम होता तो उन्हें भाषण के लिए बुलाया जानें लगा। इसी के साथ साल 1967 में लोहिया के संपर्क से प्रभावित होने वाले मुलायम सिंह यादव ने पहली जसवंत नगर से चुनाव संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से लड़ा था।
साल 1967 तक मुलायम सिंह यादव बतौर शिक्षक ही लोगों के बीच प्रचलित थे। लेकिन शिक्षकों की आवाज़ उठाने के साथ ही वो युवाओं के इतने फेमस हो गए की पूरे जिले में जब भी कोई कार्यक्रम होता तो उन्हें भाषण के लिए बुलाया जानें लगा। इसी के साथ साल 1967 में लोहिया के संपर्क से प्रभावित होने वाले मुलायम सिंह यादव ने पहली जसवंत नगर से चुनाव संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से लड़ा था।
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पाँच भाइयों में सबसे छोटी बहन,
अपने पाँच भाई-बहनों हैं। पांचों में सबसे बड़े भाई रतन सिंह यादव उसके बाद मुलायम सिंह यादव फिर अभय राम सिंह यादव, शिवपाल सिंह यादव, राजपाल सिंह हैं। सबसे छोटी इनकी बहन कमला देवी रहीं। प्रोफेसर रामगोपाल यादव इनके चचेरे भाई हैं। पिता सुधर सिंह उन्हें पहलवान बनाना चाहते थे लेकिन जब पहलवानी के राजनीतिक गुरु चौधरी नत्थू सिंह ने ही उन्हे राजनीति में उतारने की घोषणा कर दी तो खुद पिता जी ने भी कभी रोका नहीं। मैनपुरी कुश्ती-प्रतियोगिता में मुलायम सिंह का चरखा दांव नत्थुसिंह को इतना पसंद आया कि, पहलवानी गुरु और तत्कालीन जसवंतनगर सीट से विधायक नत्थुसिंघ ने अपनी सीट उन्हें सौंप दी।
पाँच भाइयों में सबसे छोटी बहन,
अपने पाँच भाई-बहनों हैं। पांचों में सबसे बड़े भाई रतन सिंह यादव उसके बाद मुलायम सिंह यादव फिर अभय राम सिंह यादव, शिवपाल सिंह यादव, राजपाल सिंह हैं। सबसे छोटी इनकी बहन कमला देवी रहीं। प्रोफेसर रामगोपाल यादव इनके चचेरे भाई हैं। पिता सुधर सिंह उन्हें पहलवान बनाना चाहते थे लेकिन जब पहलवानी के राजनीतिक गुरु चौधरी नत्थू सिंह ने ही उन्हे राजनीति में उतारने की घोषणा कर दी तो खुद पिता जी ने भी कभी रोका नहीं। मैनपुरी कुश्ती-प्रतियोगिता में मुलायम सिंह का चरखा दांव नत्थुसिंह को इतना पसंद आया कि, पहलवानी गुरु और तत्कालीन जसवंतनगर सीट से विधायक नत्थुसिंघ ने अपनी सीट उन्हें सौंप दी।
यह भी पढ़े : आखिर बीएसपी सुप्रीमो मायावती को क्यों कहा जाता है यूपी की परफेक्ट वीमेन पॉलिटिशन चौधरी चरण सिंह को पार्टी का विलय करने पर मजबूर, राजनीतिक गुरू राम मनोहर लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से 1967 में विधायक बनकर विधानसभा पहुंचे। लेकिन जैसे ही 1968 में राम मनोहर लोहिया का निधन हुआ। विवादों के बीच ही पार्टी छोडकर मुलायम सिंह यादव ने चौधरी चरण सिंह से हाथ मिला लिया।
चौधरी चरण सिंह के साथ कंधे से कंधा मिलाने का वादा करते हुए भारतीय क्रांति दल में शामिल होने वाले नेताजी। 5 सालों में ही इतने मुलायम हो गए कि चौधरी चरण सिंह को बीच चुनावों में छोडकर 1974 में भारतीय लोकदल में शामिल हो हुए। जिससे मजबूर होकर चौधरी चरण सिंह को भी क्रांति दल का विलय करना पड़ा। फिर जब इंदिरा गांधी के विरोध में सारे दल एक होने लगे तो मुलायम सिंह यादव इमरजेंसी में छूटकर आए और जनता पार्टी में शामिल हो गए। ये वही जनता पार्टी थी जिसके प्रमुख संस्थापकों में एक नाना साहब थे। 1977 में वो पहली बार यूपी सरकार में सहकारिता मंत्री बने. इसी समय में उन्होंने सहकारी (कॉपरेटिव) संस्थानों में अनुसूचित जाति के लिए सीटें आरक्षित करवाई थीं. इससे मुलायम सिंह यादव पिछड़ी जातियों के बीच काफी लोकप्रिय हो गए थे.
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चौधरी अजित सिंह को उन्हीं की पार्टी में दे दी चुनौती
1979 में जनता पार्टी से खुद को अलग करते हुए चौधरी चरण सिंह के साथ लोकदल पार्टी बनाई। 1987 में चौधरी चरण सिंह की मृत्यु के बाद अजित सिंह से उनका टकराव हुआ। वो पहली बार था जब मुलायम सिंह यादव खुद किसी पार्टी की अगुवाई कर रहे थे. 1989 में ही उन्होंने अपने समर्थक विधायकों के साथ वीपी सिंह के जनता दल शामिल हुए। 1989 में लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव भी हुए तो दिसंबर महीने में मुलायम सिंह यादव पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए.
चौधरी अजित सिंह को उन्हीं की पार्टी में दे दी चुनौती
1979 में जनता पार्टी से खुद को अलग करते हुए चौधरी चरण सिंह के साथ लोकदल पार्टी बनाई। 1987 में चौधरी चरण सिंह की मृत्यु के बाद अजित सिंह से उनका टकराव हुआ। वो पहली बार था जब मुलायम सिंह यादव खुद किसी पार्टी की अगुवाई कर रहे थे. 1989 में ही उन्होंने अपने समर्थक विधायकों के साथ वीपी सिंह के जनता दल शामिल हुए। 1989 में लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव भी हुए तो दिसंबर महीने में मुलायम सिंह यादव पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए.
चंद्रशेखर को छोड़ा अकेले, फिर भी रक्षामंत्री बनें
साल 1990 में ही वीपी सिंह का साथ छोड़कर चंद्रशेखर के साथ समाजवादी जनता पार्टी की नींव डाली. लेकिन ये साथ भी चल न सका और 1992 में खुद समाजवादी पार्टी बनाई। 1993 में कांशीराम के बसपा के साथ मिलकर यूपी में सरकार बनाई। दूसरी बार मुख्यमंत्री बने. लेकिन ये साथ भी 1995 में छूट गया। 1996 में प्रधानमंत्री पद की दौड़ में शामिल मुलायम सिंह यादव का विरोध लालू यादव ने किया। जिससे 1996 से 1998 तक देश के रक्षामंत्री बनकर संतोष करना पड़ा।
साल 1990 में ही वीपी सिंह का साथ छोड़कर चंद्रशेखर के साथ समाजवादी जनता पार्टी की नींव डाली. लेकिन ये साथ भी चल न सका और 1992 में खुद समाजवादी पार्टी बनाई। 1993 में कांशीराम के बसपा के साथ मिलकर यूपी में सरकार बनाई। दूसरी बार मुख्यमंत्री बने. लेकिन ये साथ भी 1995 में छूट गया। 1996 में प्रधानमंत्री पद की दौड़ में शामिल मुलायम सिंह यादव का विरोध लालू यादव ने किया। जिससे 1996 से 1998 तक देश के रक्षामंत्री बनकर संतोष करना पड़ा।
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साल 2002 में भाजपा से बसपा के अलग होने पर कई महीनों तक राष्ट्रपति शासन लगा रहा। उसके बाद जब चुनाव हुआ तो चरखा दांव से मशहूर मुलायम सिंह यादव ने 196 सीट पर रही भाजपा को मध्यावधि चुनाव में 96 पर लाकर रखा। वहीं तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह खुद भी उपचुनाव में हार गए। मुलायम सिंह यादव ने अपनी छोटी कद काठी के बड़े दिमाग से भाजपा और बसपा के विधायकों को तोड़कर मिलाने में भी सफल रहे। जिसमें कांग्रेस, आरएलडी, निर्दलीय के साथ बसपा विधायकों को तोड़कर 29 अगस्त 2003 मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बनें। जिसके बाद से 2017 विधानसभा चुनावों तक 14 साल भाजपा को प्रदेश में सत्ता का वनवास झेलना पड़ा।
साल 2002 में भाजपा से बसपा के अलग होने पर कई महीनों तक राष्ट्रपति शासन लगा रहा। उसके बाद जब चुनाव हुआ तो चरखा दांव से मशहूर मुलायम सिंह यादव ने 196 सीट पर रही भाजपा को मध्यावधि चुनाव में 96 पर लाकर रखा। वहीं तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह खुद भी उपचुनाव में हार गए। मुलायम सिंह यादव ने अपनी छोटी कद काठी के बड़े दिमाग से भाजपा और बसपा के विधायकों को तोड़कर मिलाने में भी सफल रहे। जिसमें कांग्रेस, आरएलडी, निर्दलीय के साथ बसपा विधायकों को तोड़कर 29 अगस्त 2003 मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बनें। जिसके बाद से 2017 विधानसभा चुनावों तक 14 साल भाजपा को प्रदेश में सत्ता का वनवास झेलना पड़ा।