सिबगतुल्लाह अंसारी यूपी की सियासत के मंजे हुए खिलाड़ी हैं। उनका, समाजवादी पार्टी से पुराना रिश्ता है। सिबगतुल्लाह अंसारी ने अपना राजनीतिक सफर समाजवादी पार्टी से ही शुरू किया, जब 20117 में वो समाजवादी पार्टी के टिकट पर पहली बार विधायक बने। लेकिन पांच साल बाद 2012 में अंसारी परिवार ने अपनी पार्टी कौमी एकता दल का गठन किया और सिबगतुल्लाह अंसारी कौमी एकता दल के टिकट पर गाजीपुर के मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट से जीत हासिल की। इसके बाद 2017 में सिबगतुल्लाह अंसारी बसपा के साथ हो लिए। बसपा के टिकट पर मैदान में भी उतरे पर इस बार उन्हें करारी हार झेलनी पड़ी। फिर पंचायत चुनाव के दौरान ही अंसारी भाइयों ने बसपा से किनारा कर पुनः समाजवादी पार्टी में आ गए। समाजवादी पार्टी ने 2022 के विधानसभा चुनाव में गाजीपुर के मुहम्मदाबाद से सिबगतुल्ला अंसारी को टिकट भी दे दिया। इतना ही नहीं समाजवादी पार्टी के टिकट पर उन्होंने पर्चा भी दाखिल कर दिया।
लेकिन इसी बीच सिबगतुल्लाह अंसारी के बेटे मन्नू अंसारी ने भी चुनाव लड़ने का मन बनाया। इसकी खबर समाजवादी पार्टी मुख्यालय तक पहुंची। इस बार के विधानसभा चुनाव में एक-एक सीट पर फूंक-फूंक कर प्रत्याशी उतार रहे समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने सिबगतुल्ला अंसारी का टिकट काट कर मन्नू अंसारी को टिकट दे दिया। गत गुरुवार को मन्नू ने जब पर्चा दाखिल किया तो उनके साथ समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता अंबिका चौधरी भी मौजूद रहे। अंबिका ने तब मीडिया के सवालों के जवाब में कहा कि ये नई युवा समाजवादी पार्टी है।
लेकिन जब शुक्रवार को नामांकन पत्रो की जांच के बाद सिबगतुल्लाह अंसारी का पर्चा खारिज हुआ तो वो रो पड़े। अब इसे खुशी के आंसू तो कहा नहीं जाएगा, क्योंकि यहां तो सियासत ने अपना रंग दिखाया और बेटे ने ही बाप का तख्ता पलट दिया।
उधर समाजवादी पार्टी के इस फैसले पर राजनीतिक पंडितों का कहना है कि टिकट बदलने और काटने का फैसला अखिलेश ने सोची समझी रणनीति के तहत किया है। वो इस चुनाव में धुव्रीकरण की राजनीति से अलग लड़ाई चाहते हैं। साथ ही उन्होंने अन्य पार्टियों के उम्मीदवारों के समीकरण के हिसाब से नाप तौल कर अपने उम्मीदवार अंतिम समय में बदला हैं ताकि उन्हें ज्यादा से ज्यादा फायदा मिल सके।