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UP assembly elections 2022: पूर्वाचल के पिछड़ों के दिलों पर है किसका राज, तय करेगा छठवां व सातवा चरण

UP assembly elections 2022 का सूर्य अब धीरे-धीरे अस्तांचल की ओर है। छठवें चरण के लिए तीन मार्च को मतदान होना है। इसके लिए मंगवार की शाम प्रचार का शोर थम जाएगा। उसके बाद बचेगा सातवां और अंतिम चरण का मतदान जो सात मार्च को होना है। विधानसभा चुनाव के इन दो चरणों के लिए ही बीजेपी और समाजवादी पार्टी ने तमाम छोटे-छोटे दलों से गठबंधन किया है। कई जातीय क्षत्रपों को अपनी पार्टी में शामिल किया है। अब ये चरण ही तय करेंगे कि पिछड़ों और दलितों का कौन है सर्वमान्य नेता…

Mar 01, 2022 / 04:18 pm

Ajay Chaturvedi

यूपी विधानसभा चुनाव 2022

वाराणसी. UP assembly elections 2022 के अंतिम दो चरण में होने वाले मतदान पर प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश की निगाह है। ये दो चरण सभी के लिए कुछ ज्यादा ही महत्वपूर्ण हैं। वजह इन दो चरण में ही जातीय क्षत्रपों की भरमार है। ये क्षत्रप ही हैं बीजेपी और समाजवादी पार्टी के खेवनहार। इन क्षत्रपों में से कुछ ऐेसे चेहरे हैं जो तकरीबन हर चुनाव में पाला बदलते हैं। ये वो सियासी सूरमा हैं जिन्हें उनकी जातियों से जुड़े वोटबैंक का नेता माना जाता है। ऐेसे में ये दो चरण ही तय करेंगे कि पूर्वांचल की किस बिरादरी के लोगों के दिलों पर कौन क्षेत्रीय क्षत्रप राज करता है। तो जानते हैं इनके बारे में…
अब इन दो अंतिम चरणों में 19 जिलों की 111 विधानसभा सीटों पर मतदान होना है। इन सीटों को फतह करने के लिए समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, बीजेपी और कांग्रेस जातीय बिसात पर अपनी-अपनी सियासी मोहरे खड़े कर चुके हैं। अब ये देखना रोचक होगा कि इन मोहरों में से कौन कितना प्रभावशाली है। ये मुकाबला ठीक टी-20 का होने जा रहा है। इन अंतिम स्लॉग चरण में इन सभी सियासी सूरमाओं की असल परीक्षा है।
कहते हैं कि दिल्ली की सत्ता पर काबिज होना है तो यूपी और यूपी के सिंहासन पर आरूढ़ होना है तो पूर्वांचल जीतना जरूरी है। इसी सोच के साथ सभी दलों ने अपने-अपने मोहरे सजाए हैं। अब इम्तिहान है पीएम नरेंद्र मोदी, सीएम योगी आदित्यनाथ की। इम्तिहान है ओमप्रकाश राजभर, अनुप्रिया पटेल, संजय निषाद, दारा सिंह चौहान, स्वामी प्रसाद मौर्य का। दरअसल पिछड़ी जातियों पर आधारित ये दल भले ही अपने दम पर कोई करिश्मा न कर सकें, लेकिन बड़ी पार्टियों के साथ मिल कर किसी भी दल का सियासी खेल बनाने और बिगाड़ने का दमखम तो है ही इनके पास। रखते हैं। ऐसे में सपा और बीजेपी ने इन जातियों के बीच आधार रखने वाले दलों के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरी हैं।
वैसे भी यूपी की सियासत पिछड़ों-दलितों के इर्द-गिर्द घूम रही है। माना जा रहा है कि प्रदेश में तकरीबन 50 फीसद पिछडे, अति पिछड़े और दलित वोट बैंक जिस भी पार्टी के साथ घूमेंगे सत्ता की कुंजी उसी के हाथ होगी। यहां बता दें कि 2017 के विधानसभा और 2014 व 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को पिछड़ा वर्ग का अच्छा समर्थन मिला था जिसके चलते ही. वो केंद्र और प्रदेश की सत्ता पर प्रचंड बहुमत से काबिज हुई। लिहाजा बीजेपी और समाजवादी पार्टी ने इन पिछड़ों को साधने का पक्का इंतजाम किया है।
ओमप्रकाश राजभर का कड़ा इम्तिहान
सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने 2017 चुनाव में बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और 4 सीटें जीतने में कामयाब रहे। लेकिन, अबकी राजभर ने बीजेपी का दामन छोड़कर समाजवादी पार्टी से गठबंधन कर लिया है। ऐसे में ओमप्रकाश के कंधों पर समाजवादी पार्टी की नैया पार लगाने की बड़ी जिम्मेदारी तो है ही, साथ ही उन 18 सीटों पर भी निगाह होगी जिनपर इन्होंने अपने प्रत्याशी खड़े किए हैं। इन 18 सीटो में से ज्यादातर पूर्वांचल में ही हैं। हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ओमप्रकाश राजभर को पूर्वांचल में निषाद पार्टी और अपना दल (एस) से कड़ी टक्कर मिलनी तय है। वैसे ओमप्रकाश की सियासत के केंद्र में महज राजभर नहीं बल्कि बिंद, कुम्हार, प्रजापति, कुशवाहा, कोइरी भी हैं।
राजभरों का नेता कौन, ओमप्रकाश या अनिल राजभर

कहने को भले ही सुभासपा 20 साल पुरानी पार्टी हो चुकी है पर इसने पहली बार 2017 में ही अपने रुतबे का एहसास कराया। तब सुभासपा ने 8 सीटों पर चुनाव लड़ा जिसमें से चार पर जीत दर्ज की। इन आठों सीटों पर सुभासपा को 34.14 फीसद वोट मिले थे। ऐेसे में अबकी राजभर पर सभी की निगाह है। अबकी तो वाराणसी से ओमप्रकाश के बेटे अरविंद भी शिवपुर सीट से बीजेपी के राजभर चेहरा अनिल राजभर के मुकाबिल मैदान में हैं।
डॉ सोनेलाल के कुनबे में वर्चस्व की जंग

डॉ सोनेलाल का कुनबा अलग-अलग धड़ों में बंट चुका है। ऐसे में ये चुनाव इन दो धड़ों में से एक की श्रेष्ठता साबित करने वाला भी होगा। देखना है कि कुर्मी वोट बैंक पर ज्यादा प्रभाव सोनेलाल की पत्नी कृष्णा पटेल व बेटी पल्लवी पटेल के पक्ष में है या अनुप्रिया पटेल के। कृष्णा पटेल जहां समाजवादी पार्टी के साथ हैं तो अनुप्रिया का धड़ा बीजेपी संग। वैसे 2012 में वाराणसी की रोहनिया सीट से पहली बार चुनाव जीत कर परचम लहराने वाली अनुप्रिया अनुप्रिया अब तक 2012, 2014, 2017 और 2019 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में अपनी मां पर भारी पड़ी हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में अनुप्रिया गुट 11 सीटों पर चुनाव लड़ी थी जिसमें से 39.21 फीसद वोट शेयर के साथ 9 प्रत्याशी विजयी हुए थे। अबकी बार अपना दल (एस) ने 17 सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं। ऐसे में अब अनुप्रिया पर अपनी पार्टी के उम्मीदवारों के साथ ही बीजेपी के उम्मीदवारों को जिताने का दबाव है।
कृष्णा पटेल से कुछ ज्यादा उम्मीदें

उधर कृष्णा पटेल और उनकी छोटी बहन पल्लवी पटेल समाजवादी पार्टी संग मिलकर चुनावी मैदान में है, जहां उन्हें खुद को साबित करने की चुनौती तो है ही, साथ में समाजवादी पार्टी को लाभ पहुंचाने की भी बड़ी जिम्मेदारी है। कृष्णा और पल्लवी दोनों का चुनाव हो चुका है। अब सपा के लिए उम्मीदवारों के लिए पूर्वांचल में चुनावी प्रचार की कमान संभाल ली है. ऐसे में देखना होगा कि कुर्मी वोटर किसके साथ जाता है और कौन उनका सर्वमान्य नेता कहलाता है।
स्वामी प्रसाद और दारा सिंह पर सबकी नजर

स्वामी प्रसाद और दारा सिंह चौहान पिछड़ों के कद्दावर नेता मान जाते हैं। ऐसे में इन दो चरणों में इनकी चौधराहट परखी जानी है। स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान बीजेपी छोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल हुए है। 2017 के चुनाव में बसपा से बीजेपी में आए थे और अपने-अपने समुदाय के वोट को बीजेपी के पाले में लाए थे, लेकिन इस बार पाला बदलकर समाजवादी पार्टी की साइकिल पर सवार हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य कुशीनगर के फाजिलनगर सीट सीटे से प्रत्याशी हैं तो दारा सिंह चौहान घोसी सीट से। ऐसे में इस चुनाव में खुद के साथ अपने जातीय के वोटों को भी सपा में ट्रांसफर कराने की चुनौती है।
लिटमस टेस्ट तो संजय निषाद का भी होना है

लिटमस टेस्ट तो निषाद पार्टी का भी होना है। डॉ संजय निषाद को यह साबित करना होगा कि पूर्वांचल में उनकी पकड़ भी मजबूत है। उन्हें किसी से कमतर नहीं आंका जा सकता। बता दें कि निषाद पार्टी पहली बार बीजेपी के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरी है और 16 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं। डॉ संजय के कंधों पर पिछड़ों पर अपने प्रभाव को साबित करने की बड़ी जिम्मेदारी है। वैसे डॉ संजय का दावा है कि 403 में से 160 सीटों पर निषाद समाज का प्रभाव है, जिनमें से ज्यादातर पूर्वांचल में हैं। वो तो यहां तक कहते है कि कोई भी दल उनके सहयोग के बिना चुनाव नहीं जीत सकता। अब इस दावे के इम्तिहान की घड़ी आन पड़ी है।
नोनिया जाति के सरदार संजय का बड़ा इम्तिहान

नोनियो के सरदार के रूप में जाने जाने वाले संजय चौहान का भी बड़ा इम्तिहान है। पूर्वांचल के मऊ, गाजीपुर बलिया, देवरिया, कुशीनगर, आजमगढ़, महराजगंज, चंदौली, बहराइच और जौनपुर के अधिकतर विधानसभा क्षेत्रों में नोनिया बिरादरी अच्छी खासी तादाद में है। पूर्वांचल की सियासत में भले ही डेढ़ फीसदी वोट हो, लेकिन मऊ और गाजीपुर की सीटों पर बड़ी ताकत रखते हैं। नोनिया समाज के नेता डॉ संजय चौहान ने जनवादी पार्टी बना रखी है, जो समाजवादी पार्टी संग गठबंधन में है। ऐसे में संजय चौहान की परीक्षा अगले दो चरणों के चुनाव में होनी है।

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