2014 में नरेंद्र मोदी ने दिया गुजरात का विकास मॉडल बता दें कि प्रदेशों के विकास मॉडल का प्रयोग 2014 के आम चुनाव में किया गया। तब गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार नरेंद्र मोदी ने वो मुद्दा उछाला और कहा कि केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद पूरे देश में गुजरात का विकास मॉडल लागू किया जाएगा। वो मुद्दा काफी चर्चा में आया और भाजपा ने उस मुद्दे को भुनाया भी कायदे से। लेकिन उसके बाद से विकास का मॉडल महज चर्चा बन कर ही रह गया।
2017-गुजरात का विकास मॉडल व जातीय समीकरण गुजरात के विकास मॉडल पर न केवल 2014 के लोकसभा चुनाव बल्कि 2017 के यूपी विधानसभा चुनावों में भी प्रयोग किया गया। हालांकि तब बीजेपी ने जातीय समीकरण साधने पर भी फोकस किया और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, अपना दल (अनुप्रिया गुट) जातीय क्षत्रपों संग गठबंधन कर प्रचंड बहुमत हासिल किया।
पीएम का ड्रीम प्रोजेक्ट काशी विश्वनाथ धाम 2022 के चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में अपने ड्रीम प्रोजेक्ट श्री काशी विश्वनाथ धाम का लोकार्पण किया। ये श्री काशी विश्वनाथ धाम की चर्चा पूरे देश में हुई। हालांकि अब तो विश्वनाथ धाम का मॉडल सनातन हिंदू जनमानस के बीच काफी लोकप्रिय हो रहा है। इसकी बिक्री भी तेज हो गई है।
भाजपा का काशी का विकास मॉडल प्रधानमंत्री के विश्वनाथ धाम के लोकार्पण के बाद भाजपा ने काशी के विकास मॉडल पर 2022 विधानसभा चुनाव में जाने का ऐलान कर दिया। सिर्फ यूपी ही नहीं बल्कि भाजपा ने उन सभी राज्यों के लिए भी विकास के मॉडल के तौर पर पेश करने की घोषणा की जहां यूपी के साथ विधानसभा चुनाव होने हैं।
कांग्रेस का छत्तीसगढ का विकास मॉडल इसी बीच कांग्रेस ने पीएम के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को भेजा तो उन्होंने रोहनिया की सभा में भाजपा के काशी के विकास मॉडल के मुकाबिल छत्तीसगढ़ के विकास मॉडल को पेश करते हुए कहा कि जीते तो छत्तीसगढ की तर्ज पर यूपी में विकास होगा।
आम आदमी पार्टी का दिल्ली का विकास मॉडल भाजपा के काशी का विकास और कांग्रेस के छत्तीसगढ़ विकास मॉडल के बाद आम आदमी पार्टी ने दिल्ली के विकास का मॉडल पेश किया। बताया कि जीते तो यूपी में शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत व प्राथमिक आवश्यकता को जन-जन तक पहुंचाएंगे। सस्ती बिजली देंगे।
अखिलेश का पुरानी पेंशन बहाली, आईटी हब, रोजगार का ऐलान इन तीनों पार्टियों के विकास मॉडल के स्लोगन के बीच समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश ने सधी पारी खेलते हुए अपने पिछले कार्यकाल के कामकाज को आगे रखा। अखिलेश ने भी सस्ती बिजली, स्वास्थ्य शिक्षा सहित तमाम बुनियादी सुविधाओं का मुद्दा उठाया। इसी बीच उन्होंने 2017 की बीजेपी की रणनीति को ध्यान में रखते हुए जातीय समीकरण साधना शुरू किया। इसके तहत कुछ दिनों तक ‘पाला बादल’ का जोर रहा। हालांकि इस बीच अखिलेश ने पुरानी पेंशन बहाली, युवाओं को रोजगार खास तौर पर आईटी सेक्टर में रोजगार मुहैया कराने का वादा उछाला।
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो वर्तमान परिदृश्य में यूपी विधानसभा चुनाव की सियासी फ़िज़ा में जातीय समीकरण हावी होता नजर आने लगा है। विकास के मुद्दे, आम आदमी के मुद्दे पीछे छूटते गए।