इतिहास में दर्ज है कि कोलकाता महानगर का जन्म बर्धमान में ही हुआ। जब ईस्ट इंडिया कम्पनी के साथ मुगलों की संधि में तीन गांव सुतानती, गोविन्दपुर तथा कलिकाता उन्हें हस्तांतरित कर दिए गए। चौबीसवें जैन तीर्थंकर भगवान महावीर ने कुछ समय यहां बिताया इसलिए इस ऐतिहासिक और पौराणिक जिले का नाम बर्धमान रखा गया।
तीन साल पहले बर्धमान को विभाजित कर पूर्व और पश्चिम बर्धमान दो जिले बनाए गए। पूर्वी बर्धमान की 8 सीटों पर 17 अप्रेल को पांचवें चरण के चुनाव होंगे, इनमें खंदाघोष, बर्धमान दक्षिण, रैना, जमालपुर, मंतेश्वर, कलना, मेमारी, और बर्धमान उत्तर विधानसभाएं हैं। शेष 8 सीटों पर 22 अप्रेल को छटे चरण में मतदान होगा। टीएमसी के एक दशक के राज को छोड़ दें तो यहां अब तक वाममोर्चा बहुत मजबूत रहा है। भाजपा के कद्दावर नेता एसएस अहलूवालिया बर्धमान-दुर्गापुर लोकसभा सीट से सांसद हैं। वह मोदी सरकार और नरसिम्हाराव सरकार में भी मंत्री रहे हैं।
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प्रतिष्ठा की लड़ाई मानकर भाजपा स्टार प्रचारकों की ताबड़तोड़ रैलियां कर पूरी ताकत झोंक रही है। सोमवार को मोदी ने यहां जनसभा की। ममता बनर्जी भी पीछे नहीं हैं। अकेले दम रोडशो और सभाएं कर रही हैं। रविवार को भी बर्धमान में उनका रोडशो था। रोजगार और शांति पहली दरकार
हावड़ा से बर्धमान की पैसेंजर ट्रेन में बैठने के बाद आसपास बैठे यात्रियों से चुनाव पर चर्चा छेड़ दी ताकि चुनावी माहौल के जमीनी हालात मालूम किए जा सकें। बातचीत में महसूस किया कि आमजन के मन में ममता सरकार को लेकर जबरदस्त आक्रोश भरा हुआ है। यह चर्चा पूरे इलाके का परिदृश्य साफ कर देती है। लोगों को सिर्फ तीन चीजों की दरकार है, रोजगार, शांति और बेहतरीन शिक्षा। पूर्णेंदू कुमार सेन और मनोज कुमार का दर्द यह है कि ये तीनों बातें बंगाल से गायब हैं। एक सरकारी कर्मचारी ने अपना अनुभव शेयर किया कि उनके परिवार का सदस्य भाजपा का समर्थन कर रहा है, अब वह कर्मचारी जबरदस्त प्रताड़ना और धमकियां झेल रहा है। एक कर्मचारी ने बताया जंगीपाड़ा के एक बूथ पर उसके सामने टीएमसी कार्यकर्ताओं ने ही सारे वोट डाल दिए। ये है बंगाल के लोकतंत्र की तस्वीर।
हावड़ा से बर्धमान की पैसेंजर ट्रेन में बैठने के बाद आसपास बैठे यात्रियों से चुनाव पर चर्चा छेड़ दी ताकि चुनावी माहौल के जमीनी हालात मालूम किए जा सकें। बातचीत में महसूस किया कि आमजन के मन में ममता सरकार को लेकर जबरदस्त आक्रोश भरा हुआ है। यह चर्चा पूरे इलाके का परिदृश्य साफ कर देती है। लोगों को सिर्फ तीन चीजों की दरकार है, रोजगार, शांति और बेहतरीन शिक्षा। पूर्णेंदू कुमार सेन और मनोज कुमार का दर्द यह है कि ये तीनों बातें बंगाल से गायब हैं। एक सरकारी कर्मचारी ने अपना अनुभव शेयर किया कि उनके परिवार का सदस्य भाजपा का समर्थन कर रहा है, अब वह कर्मचारी जबरदस्त प्रताड़ना और धमकियां झेल रहा है। एक कर्मचारी ने बताया जंगीपाड़ा के एक बूथ पर उसके सामने टीएमसी कार्यकर्ताओं ने ही सारे वोट डाल दिए। ये है बंगाल के लोकतंत्र की तस्वीर।
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दो घटनाओं ने हिला दिया ऐसे बीसियों उदाहरण हर जगह हैं। डर के चलते लोग खुलकर अपनी बात नहीं कहते लेकिन सावधानी से आसपास देखकर साफ-साफ ‘संकेत’ देते हैं कि अब ‘छुटकारा’ मिलना चाहिए। हालात की भयावहता का अंदाजा इससे लगा सकते हैं कुछ ही दिन पहले बम विस्फोट की दो घटनाओं ने क्षेत्र का हिला दिया और एक बच्चे की जान चली गई। करीब तीन महीने पहले एक भाजपा कार्यकर्ता की हत्या कर दी गई। सरकार के सामानान्तर सिस्टम
चर्चा में सामने आया कि भ्रष्टाचार बड़ी समस्या है। राजनीतिक संरक्षण में पनप रहे सिंडिकेट ने सरकार की साख पर बट्टा लगाया है। स्वपन बोस पूछते हैं, पति-पत्नी के झगड़े, पारिवारिक विवाद, ऑफिस के मसले भी टीएमसी कार्यकर्ता निपटाएंगे और इसके लिए वसूली करेंगे तो सरकार, पुलिस और कोर्ट क्यों हैं? यहां टीएमसी का सरकार के समानान्तर सिस्टम चला रहा है। आतंक इस कदर है कि लोग मुंह खोलने से भी घबराते हैं। कमोबेश यही स्थिति पूरे प्रदेश की है। इस क्षेत्र में खेती और बागवानी अधिक होती है, लेकिन लोगों को उद्योग भी चाहिए ताकि काम मिल सके। रोजगार का हर तरफ इंतजार है।
चर्चा में सामने आया कि भ्रष्टाचार बड़ी समस्या है। राजनीतिक संरक्षण में पनप रहे सिंडिकेट ने सरकार की साख पर बट्टा लगाया है। स्वपन बोस पूछते हैं, पति-पत्नी के झगड़े, पारिवारिक विवाद, ऑफिस के मसले भी टीएमसी कार्यकर्ता निपटाएंगे और इसके लिए वसूली करेंगे तो सरकार, पुलिस और कोर्ट क्यों हैं? यहां टीएमसी का सरकार के समानान्तर सिस्टम चला रहा है। आतंक इस कदर है कि लोग मुंह खोलने से भी घबराते हैं। कमोबेश यही स्थिति पूरे प्रदेश की है। इस क्षेत्र में खेती और बागवानी अधिक होती है, लेकिन लोगों को उद्योग भी चाहिए ताकि काम मिल सके। रोजगार का हर तरफ इंतजार है।
भाजपा को जनभावनाओं का फायदा
संगठन के लिहाज से भाजपा जिले में कमजोर बताई जाती है लेकिन सरकार विरोधी भावनाओं का उसे बहुत फायदा मिल रहा है। वाम-कांग्रेस और सेक्यूलर फ्रंट के गठबंधन में कांग्रेस का तो वजूद ही नहीं दिखता लेकिन वाममोर्चा कई जगह टक्कर देता दिखता है। भाजपा के चुनाव में प्रमुख प्रतिद्वंदी के रूप में उभरने से ध्रुवीकरण, तुष्टिकरण, हिन्दुत्व आदि मुद्दे लोगों की जुबान पर हैं। बर्धमान जिले की आठों विधानसभा क्षेत्रों में बिहार, झारखंड के हिन्दी भाषी, हिन्दू बंगाली अच्छी संख्या में हैं। मुस्लिम आबादी भी अच्छी खासी है। हजदा आदिवासी भी बड़ी संख्या में हैं, जो मेहतनकश हैं और खेती- मजदूरी करते हैं। किसानों पर अपनी पकड़ बनाने के लिए कुछ समय पहले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने ‘एक मुट्ठी चावल संग्रह’ अभियान की शुरूआत पूर्व बर्धमान से ही की थी।
वाम का कई सीटों पर दबदबा
मनीष तिवाड़ी बताते हैं, ज्योति बसु के दौर में पहले तीन या चार कार्यकाल तक तो अच्छा काम हुआ। बाद में बसु और बुद्धदेव भट्टाचार्य सरकार से नाराजगी ऐसी बढ़ी कि ममता को जिताकर उनसे पीछा छुड़ा लिया। वाममोर्चा के समय शुरू हुई अवैध वसूली ममता राज में संस्थागत रूप ले चुकी है। एक दशक पहले अधिकतम सीटों पर वाममोर्चा का असर रहा, कई पर अब भी दबदबा है। लोग मानते हैं, अब जोर नहीं चलेगा क्योंकि वाममोर्चा कमजोर हो गया है।
संगठन के लिहाज से भाजपा जिले में कमजोर बताई जाती है लेकिन सरकार विरोधी भावनाओं का उसे बहुत फायदा मिल रहा है। वाम-कांग्रेस और सेक्यूलर फ्रंट के गठबंधन में कांग्रेस का तो वजूद ही नहीं दिखता लेकिन वाममोर्चा कई जगह टक्कर देता दिखता है। भाजपा के चुनाव में प्रमुख प्रतिद्वंदी के रूप में उभरने से ध्रुवीकरण, तुष्टिकरण, हिन्दुत्व आदि मुद्दे लोगों की जुबान पर हैं। बर्धमान जिले की आठों विधानसभा क्षेत्रों में बिहार, झारखंड के हिन्दी भाषी, हिन्दू बंगाली अच्छी संख्या में हैं। मुस्लिम आबादी भी अच्छी खासी है। हजदा आदिवासी भी बड़ी संख्या में हैं, जो मेहतनकश हैं और खेती- मजदूरी करते हैं। किसानों पर अपनी पकड़ बनाने के लिए कुछ समय पहले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने ‘एक मुट्ठी चावल संग्रह’ अभियान की शुरूआत पूर्व बर्धमान से ही की थी।
वाम का कई सीटों पर दबदबा
मनीष तिवाड़ी बताते हैं, ज्योति बसु के दौर में पहले तीन या चार कार्यकाल तक तो अच्छा काम हुआ। बाद में बसु और बुद्धदेव भट्टाचार्य सरकार से नाराजगी ऐसी बढ़ी कि ममता को जिताकर उनसे पीछा छुड़ा लिया। वाममोर्चा के समय शुरू हुई अवैध वसूली ममता राज में संस्थागत रूप ले चुकी है। एक दशक पहले अधिकतम सीटों पर वाममोर्चा का असर रहा, कई पर अब भी दबदबा है। लोग मानते हैं, अब जोर नहीं चलेगा क्योंकि वाममोर्चा कमजोर हो गया है।