हालांकि दोनों ही दी दल ऊपरी असम की 47 सीटों के मतदान के बाद खुद की स्थिति मजबूत होने का दावा कर रहे हैं, लेकिन मतदाता का मौन और तीनों चरण में मतदान की रफ्तार पर बहुत कुछ निर्भर करेगा।
दूसरे चरण में 13 जिलों की 39 सीटों के लिए गुरुवार को वोट पड़ चुके। यह चरण बीजेपी और कांग्रेस के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि यहीं से पिछले चुनाव में कांग्रेस की लगातार डेढ़ दशक से जमी सरकार की विदाई का रास्ता खुला था, लेकिन इस बार कांग्रेस चुनावपूर्व गठबंधन से ही मुस्लिम और गैर भाजपाई वोटों का बंटवारा रोकने की कोशिश में लगी है।
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Assam Assembly Elections 2021: ‘गमोसा’ के सार्वजनिक अपमान वाले वीडियो को लेकर पीएम ने कही बड़ी बात, देखिए क्या कहा बीजेपी ने हालांकि प्रदेश के 32 में से 11 जिलों में असर रखने वाले मुस्लिम मतों और कांग्रेस गठबंधन के दूसरे सबसे बड़े दल ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) का डर दिखाकर धार्मिक ध्रुवीकरण की कोशिश की है, लेकिन मुस्लिम मतों का बंटवारा नहीं होने से उसे काफी मेहनत करनी पड़ रही है।
ऐसे में बीजेपी ने डबल इंजन की सरकार का सहारा लिया है। प्रदेश की सर्वानंद सोनोवाल के कार्यकाल में हुए कामकाज का ब्यौरा देते हुए भाजपा नेता इस बात पर भी जोर देते हैं कि यदि असम में भाजपा को बहुमत मिलता है तो केंद्र में भी उसकी सरकार होने से फायदा मिलेगा।
कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष रिपुन बोरा कहते हैं कि भाजपा पांच साल भी डबल इंजन की सरकार चलाती रही, लेकिन प्रदेश में एक भी मेगा प्रोजेक्ट आया हो तो बताए। इधर सीएए का मुद्दा भी अंडर करंट सुलगा रहा है। कांग्रेस व गठबंधन में शामिल एआईयूडीएफ मुस्लिम मत एकमुश्त हासिल करने के लिए तो खुलकर सीएए के खिलाफ आ चुकी है, लेकिन भाजपा ने ऊपरी आसाम के मतदान तक तो इस मामले पर चुप्पी ही साधे रखी।
ऊपरी आसाम में तो इस मुद्दे पर भाजपा को ज्यादा जोर नहीं आया, लेकिन बराक वैली व मध्य आसाम में उसे सीएए का अंडर करंट डरा रहा है। इसका कारण इस इलाके के गैर बांग्लाभाषी व बांग्लाभाषी लोगों के संभावित बंटवारे को माना जा रहा है।
सीएए के खिलाफ उग्र आंदोलन करने वाले असम जातीय परिषद व राइजर दल का यूनाइटेड रीजनल फ्रंट का तीसरे मोर्चे के रूप में चुनाव लड़ना दोनों दलों के लिए परेशानी का सबब बना है।
सियासी पंडित मानते हैं कि ये समीकरण भले ही प्रभावी प्रदर्शन न कर पाएं, लेकिन कांग्रेस-भाजपा दोनों के वोट काट सकता है। बोड़ोलैंड इलाके के दो प्रतिद्वन्द्वी दलों बोड़ो पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) और यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (यूपीपीएल) की प्रतिद्वन्द्विता से उभरे हालात भी चुनाव को रोचक बना रहे हैं।
भाजपा सरकार में शामिल रहा बीपीएफ इस बार कांग्रेस महाजोत का हिस्सा है। ऐसे में बोड़ो व मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में एक अलग ही युति नजर आ रही है। यह भी पढ़ेँः
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कुल मिलाकर नए समीकरण कांग्रेस-भाजपा दोनों को सहमाए हुए हैं। दावे भले ही कुछ भी किए जाएं, लेकिन दोनों दलों के लिए करो या मरो की स्थिति बनी हुई है। बीजेपी को भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के नाम का फायदा मिल रहा है, लेकिन आठ दलों वाला महाजोत उसके लिए चुनौती बन रहा है। फिर स्थानीय लोगों के दो दलों का तीसरा मोर्चा भी परेशानी का सबब बना हुआ है।
वरिष्ठ पत्रकार अनिरबन राय बताते हैं कि इस बार के चुनाव नतीजे वाकई चौंकाने वाले होंगे।
पिछले चुनाव में कांग्रेस को 30.9 व बीजेपी को 29.5 प्रतिशत वोट मिले थे, लेकिन वोट शेयरिंग में महज 1.4 फीसदी का अंतर होने के बावजूद बीजेपी को 60 और कांग्रेस को 26 सीट ही मिली।
इससे जाहिर है कि कांग्रेस को एआईयूडीएफ के साथ वोटों के बंटवारे का नुकसान हुआ। इस बार दोनों महाजोत का हिस्सा हैं तो बीजेपी को पसीना आ रहा है। वे कहते हैं कि कांग्रेस के सामने नेतृत्व का संकट है तो बीजेपी को स्पष्ट बहुमत न मिलने की स्थिति में नेतृत्व पर खींचतान का सामना करना पड़ सकता है।