वैसे तो असम में लगभग 25 लाख हिंदी भाषी लोग हैं, लेकिन इनमें ज्यादा संख्या राजस्थान और हरियाणा के साथ बिहार व छत्तीसगढ़ के लोगों की है। राजस्थान से सैकड़ों साल पहले यहां आकर कारोबार जमाने वाले मारवाड़ी राजनीति में कम संख्या के बावजूद अहमियत रखते हैं।
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Assam Assembly Elections 2021 नरेंद्र तोमर का राहुल गांधी पर तंज, 2 मई तक दिन में देख सकते हैं जीत के सपने इस बार तो समूची चुनावी रणनीति ही राजस्थानी नेताओं के इर्द-गिर्द रही है।
ऐसे काम कर रहा राजस्थानी फैक्टर
एआईसीसी के महासचिव भंवर जितेंद्रसिंह ने बतौर असम प्रभारी कांग्रेस की चुनावी बागडोर संभाल रखी है। जितेंद्र व छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कुछ प्रभावी राजस्थानियों की मदद से कांग्रेस महाजोत (गठबंधन) बनाने में अहम भूमिका निभाई।
चुनाव की हर गतिविधि पर कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता जोधपुर मूल के गौरव वल्लभ नजर रखे रहे हैं। गहलोत ने भी डाला असर
महाजोत प्रत्याशियों के समर्थन में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पीसीसी चीफ गोविंद डोटासरा व वरिष्ठ मंत्री बीडी कल्ला ने भी दो दिन असम का दौरा कर भाजपा का वोट बैंक माने जाने वाले प्रवासी राजस्थानियों में सैंध लगाने की कोशिश की।
भाजपा की ओर से राजस्थान का कोई बड़ा नेता तो नहीं आया, लेकिन यहां के कई प्रवासी प्रचार अभियान में जुटे रहे। अनूपसिंह राजपुरोहित, दिनेश भीलवाड़िया व बनवारीलाल अग्रवाल भाजपा के प्रचार में लगे रहे। वैसे इस बार राजस्थान के चुरू जिले के मूल निवासी अशोक सिंघी धुबड़ी के बिलासीपाड़ा तो अशोक सिंघल तेजपुर के ढेकियाजूली विधानसभा क्षेत्र से चुनाव भी लड़ रहे हैं।
तय हो जाएगा, असम में किसकी सरकार
दिसपुर। असम में मंगलवार को तीसरे व अंतिम चरण के मतदान के साथ ही जनता का यह फैसला ईवीएम में कैद हो जाएगा कि 126 सदस्यीय विधानसभा का सरताज कौन बनेगा।
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Assam Assembly Elections 2021: ईवीएम बवाल के बाद एक और गड़बड़ी, 90 वोटर वाले बूथ पर पड़े 171 वोट तीसरे चरण में लोअर असम के 12 जिलों की 40 सीटों के लिए वोट पड़ रहे हैं। यही चरण सत्ताधारी भाजपा के नेतृत्व वाले मैत्रीजोत (मित्र गठबंधन) और कांग्रेस की अगुवाली वाले 8 पार्टियों के महाजोत (महागठबंधन) के लिए अहम साबित होगा।
भाजपा हर तरह से सत्ता बचाने की जुगत में है तो कांग्रेस गैर भाजपाई दलों का मतविभाजन रोककर खोई सत्ता पाने की कोशिश कर रही है। बीजेपी-कांग्रेस का 50-50 असर
40 सीटों में दोनों ही गठबंधनों का फिफ्टी-फिफ्टी असर है। पिछले चुनाव में अल्पसंख्यक मतों के बंटवारे के कारण अलग अलग लड़े कांग्रेस व एआईयूडीएफ को खासा नुकसान हुआ था। इस बार दोनों के एक ही नांव में सवार हो जाने से भाजपा को पसीना बहाना पड़ रहा है।
अपर असम में पहले चरण में हुए 47 सीटों के चुनाव में भाजपा को उम्मीद है, लेकिन उसे इस बार महाजोत के अलावा सीएए के विरोध में बने दो नए क्षेत्रीय दलों असम जातीय परिषद व राइजर पार्टी की चुनौती भी झेलनी पड़ रही है तो दूसरे चरण की 39 सीटों में से बराक वैली की 15 सीटों पर भी सबकी नजर है।
राजनीतिक पंडित हालांकि मुकाबला कांटे का मान रहे हैं, लेकिन कह रहे हैं कि पहले चरण में पिछली बार की 37 सीटें भाजपा बरकरार नहीं रख पाई तो उसकी राह मुश्किल हो सकती है।