हालांकि इस बीच सभी दलों ने अपनी-अपनी जीत के दावे भी किए हैं। वहीं इस चुनाव में कई बड़े चेहरे रहे जिन्होंने सबका ध्यान खींचा। इनमें सबसे बड़ा नाम रहा सीएम इन वेटिंग के तौर पर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ( Himanta Biswa Sarma ) का। हिमंत ना सिर्फ अपने बयानों बल्कि अगले सीएम के तौर पर भी चर्चा में रहे।
यह भी पढ़ेँः Assam Assembly Elections 2021: केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने बीजेपी के दोबारा सत्ता में आने का किया दावा, बताई ये वजह हालांकि बीजेपी ने सर्बानंद सोनोवाल के नाम पर ही चुनाव लड़ा, लेकिन हिमंत बिस्वा का प्रचार भी शीर्ष नेताओं जमकर किया। आइए जानते हैं कौन हैं हिमंत बिस्वा सरमा और राजनीतिक को लेकर क्या है उनकी सोच।
असम सरकार में मंत्री हिमंत बिस्व सरमा राज्य के सबसे कद्दावर नेताओं में जाने जाते हैं। आलम यह है कि मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल से ज्यादा असम में सरमा ही चर्चा में रहते हैं। छात्र जीवन में शुरू हुआ राजनीतिक करियर
हिमंत बिस्वा सरमा राज्य के पहली पीढ़ी के नेताओं में से एक रहे हैं। सरमा का राजनीतिक करियर छात्र जीवन में ही शुरू हो गया था।
हिमंत बिस्वा सरमा राज्य के पहली पीढ़ी के नेताओं में से एक रहे हैं। सरमा का राजनीतिक करियर छात्र जीवन में ही शुरू हो गया था।
जब वे स्कूल में पढ़ाई कर रहे थे, उस दौरान राज्य में अवैध बांग्लादेशियों के खिलाफ ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) के नेतृत्व में असम आंदोलन की शुरुआत हुई थी। वे छात्र राजनीति की तरफ आकर्षित हुए और आसू में शामिल होकर अपनी सक्रियता दिखाना शुरू कर दी।
1996 में लड़ा पहला चुनाव
इस दौरान उन्हें प्रफुल्ल कुमार महंत और भृगु कुमार फुकन के साथ रहने का मौका मिला। हालांकि, उन्हें चुनाव लड़ने का मौका पहली बार 1996 में मिला था। इसके बाद से उन्होंने कांग्रेस से बीजेपी तक में लंबा अनुभव हासिल किया।
इस दौरान उन्हें प्रफुल्ल कुमार महंत और भृगु कुमार फुकन के साथ रहने का मौका मिला। हालांकि, उन्हें चुनाव लड़ने का मौका पहली बार 1996 में मिला था। इसके बाद से उन्होंने कांग्रेस से बीजेपी तक में लंबा अनुभव हासिल किया।
गोगोई सरकार में शुरू हुआ हिमंत का सुनहरा दौर
वैसे तो हिमंत ने लगातार राजनीति में चढ़ाव ही देखा, लेकिन उनके राजनीतिक करियर का सुनहरा दौर गोगोई सरकार में ही शुरू हुआ। वर्ष 2001 में तरुण गोगोई असम के मुख्यमंत्री बने और इसके बाद 2002 में उन्होंने हिमंत को अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया।
वैसे तो हिमंत ने लगातार राजनीति में चढ़ाव ही देखा, लेकिन उनके राजनीतिक करियर का सुनहरा दौर गोगोई सरकार में ही शुरू हुआ। वर्ष 2001 में तरुण गोगोई असम के मुख्यमंत्री बने और इसके बाद 2002 में उन्होंने हिमंत को अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया।
ऐसे मिली बड़ी जिम्मेदारी
गोगोई सरकार में शुरुआती दौर में तो हिमंत को बड़े विभाग नहीं मिले। उन्हें कृषि और योजना एवं विकास विभाग में राज्य मंत्री बनाया गया था। लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने अपने कामों से अपनी जगह बनाना शुरू कर दी।
कुछ ही वर्षों में उन्हें बड़ी जिम्मेदारी वाले विभाग भी मिल गए। गोगोई सरकार में उन्हें वित्त, शिक्षा-स्वास्थ्य जैसे कई बड़े विभागों की जिम्मेदारी मिल गई।
गोगोई सरकार में शुरुआती दौर में तो हिमंत को बड़े विभाग नहीं मिले। उन्हें कृषि और योजना एवं विकास विभाग में राज्य मंत्री बनाया गया था। लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने अपने कामों से अपनी जगह बनाना शुरू कर दी।
कुछ ही वर्षों में उन्हें बड़ी जिम्मेदारी वाले विभाग भी मिल गए। गोगोई सरकार में उन्हें वित्त, शिक्षा-स्वास्थ्य जैसे कई बड़े विभागों की जिम्मेदारी मिल गई।
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हिमंत ने अपना कद हमेशा बड़ा ही रखा। सोनोवाल सरकार में जहां उन्हें दूसरे नंबर पर गिना जाता है, वहीं इससे पहले गोगोई सरकार में भी हिमंत बिस्वा सरमा की हैसियत नंबर दो पर ही रही।
हिमंत ने अपना कद हमेशा बड़ा ही रखा। सोनोवाल सरकार में जहां उन्हें दूसरे नंबर पर गिना जाता है, वहीं इससे पहले गोगोई सरकार में भी हिमंत बिस्वा सरमा की हैसियत नंबर दो पर ही रही।
अब तक दबी रही सीएम बनने की चाह
अपने बढ़ते कद के बीच हिमंत की चाह भी बढ़ने लगी। सरमा असम के मुख्यमंत्री बनने का सपना देखने लगे तो वर्ष 2011 के विधानसभा चुनाव में गोगोई परिवार ने उन्हें किनारा करना शुरू कर दिया।
अपने बढ़ते कद के बीच हिमंत की चाह भी बढ़ने लगी। सरमा असम के मुख्यमंत्री बनने का सपना देखने लगे तो वर्ष 2011 के विधानसभा चुनाव में गोगोई परिवार ने उन्हें किनारा करना शुरू कर दिया।
गोगोई परिवार के मनमुटाव का असर यह रहा कि हिमंत बिस्वा सरमा की नजदीकियां बीजेपी से बढ़ने लगीं और उन्होंने आखिरकार बीजेपी का ही दामन थाम लिया। बेटे को राजनीति से रखना चाहते हैं दूर
हिमंत बिस्वा सरमा ने भले ही राजनीति में लगातार आगे बढ़े हों, लेकिन वे नहीं चाहते हैं उनका बेटा राजनीति में कदम रखे और अपना करियर बनाए।
हिमंत बिस्वा सरमा ने भले ही राजनीति में लगातार आगे बढ़े हों, लेकिन वे नहीं चाहते हैं उनका बेटा राजनीति में कदम रखे और अपना करियर बनाए।
सरमा का मानना है कि उनका बेटा नंदिल अभी 18 साल का है। यह बेहतर होगा कि वह राजनीति से जितना हो सके दूर रहे। युवा पीढ़ी में नहीं चुनौती झेलने की ताकत
सरमा के मुताबिक, अपने बेटे को इस दुनिया में कदम नहीं रखवाना चाहता हूं, जिस तरह की चुनौतियां मैंने झेली हैं, मुझे नहीं लगता कि मौजूदा पीढ़ी ऐसी चुनौतियां झेल सकती है। उन्होंने कहा कि उनका बेटा अगले कुछ महीनों में लॉ यूनिवर्सिटी जॉइन करेगा।
सरमा के मुताबिक, अपने बेटे को इस दुनिया में कदम नहीं रखवाना चाहता हूं, जिस तरह की चुनौतियां मैंने झेली हैं, मुझे नहीं लगता कि मौजूदा पीढ़ी ऐसी चुनौतियां झेल सकती है। उन्होंने कहा कि उनका बेटा अगले कुछ महीनों में लॉ यूनिवर्सिटी जॉइन करेगा।