शिक्षा

झुग्गी में पली बढ़ी इस लड़की ने विकलांगता को जीत कर IAS बनने का किया सपना पूरा

Motivational Story

Dec 30, 2018 / 04:34 pm

Deovrat Singh

Motivational Story

motivational story : राजस्थान की रहने वाली उम्मुल खेर का परिवार गरीब और अशिक्षित था जो गुजर बसर के लिए दिल्ली चला आया था। जब उम्मुल 5 साल की थी तब परिवार दिल्ली आया तो हजरत निजामुदीन के पास बारापुला में झुग्गी बस्ती के निकट रहने लगे। यहाँ घर को झुग्गी न कहकर झुग्गी का रूप मान सकते हो जो बल्ली-फट्टों से बना हुआ था जिसमें चटाइयां लगी हुई थी, जिसमें फर्श भी कच्चा था। घर की छत तारपोलिन की थी जिसके कारण बारिश के दिनों में जगह -जगह बाल्टियां रखनी पड़ती थी। घर के पीछे ही नाला था जो अत्यधिक बहाव के चलते घर में पानी घुस जाता है। बचपन बहुत ही विकट परिस्थितियों में बिता था। 2001 में वो झुग्गियां भी टूट गई जिससे एकबार तो बेघर की तरह हो गए। ऐसे समय बारापुला से त्रिलोकपुरी में एक सस्ता घर लेकर रहने लगे। उम्मुल के पापा रेलवे जंक्शन के किनारे सामान बेचा करते थे जो घर बदलने पर वो भी छूट गया। उन परिस्थितियों में उम्मुल ने त्रिलोकपुरी में ही बच्चों को पढ़ाना शुरू किया, उस वक्त खुद भी 7वीं कक्षा में थी। एक बच्चे की फीस 50 रूपए महीना हुआ करती थी जिसमें 2 घंटे रोजाना भी पढ़ाना पड़ता था। बच्चों को पढ़ाकर बमुश्किल कमरे का किराया और खाने का पैसा इकट्ठा किया जाता था।
Education News संघर्ष भरी जिंदगी
जब उम्मुल 8वीं कक्षा में पढ़ना चाहती थी तो घरवालों ने पढ़ाने से इन्कार कर दिया। क्योंकि समाज और परिवेश का हवाला देकर घरवाले यही कहते थे की 8वीं तक पढ़ना भी बहुत है। घरवालों का कहना था की तुम्हारे पैर ख़राब है तो सिलाई का विकल्प ठीक रहेगा। उम्मुल के साथ कुछ ऐसा भी था कि उनकी खुद की रियल माँ नहीं थी और सौतेली माँ की हमदर्दी उनके साथ नहीं थी। उम्मुल ने बताया कि घरवालों के द्वारा साफ़ इन्कार किए जाने और राजस्थान भेजे जाने की बात पर वह खुद घर से दूर किराये का कमरा लेकर रहने लगी। यहाँ उम्मुल सुबह स्कूल जाती और फिर स्कूल से आकर बच्चों को पढ़ाती। 10वीं से ही एक चेरिटेबल ट्रस्ट की तरफ से स्कालरशिप मिल गई। 12वीं तक की पढ़ाई छात्रवृति के जरिए पूरी हो गई। जब 12वीं कक्षा में टॉप किया तो हिम्मत मिल गई और दिल्ली यूनिवर्सिटी में आवेदन किया और स्नातक की पढाई पूरी की। लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए प्रैक्टिकल सब्जेक्ट सबसे बड़ी बाधा बन गया, क्योंकि प्रैक्टिकल के लिए शाम को रुकना होता है और अगर शाम को रुकना हुआ तो बच्चों को पढ़ाना बंद करना पड़ता। स्नातकोत्तर के लिए JNU में अलग विषय के साथ आवेदन किया और प्रवेश के साथ पढ़ाई शुरू कर दी। JNU में आने के बाद मुझे पढ़ाई को लेकर सभी सहूलियतें (सुविधाएँ) मिल गई जो पढ़ाई में बाधा बन रही थी।
UPSC पास करना बचपन का सपना
बचपन में सुने हुए बड़े दिग्गजों के नाम पर खुद को भी उन्ही की तरह बनाने को लेकर एक जूनून भी बन गया। लेकिन पारिवारिक परिस्थिति के सामने थोड़ा कठिन सा हो गया। JNU आने के बाद खुद को रिलैक्स महसूस किया। 2015 में उम्मुल एक साल के लिए जापान रहकर फिर से आई तो लगा की यह सही समय है। उम्मुल ने पीएचडी में दाखिला लेने के साथ ही जनवरी 2016 में आईएएस के लिए तैयारी शुरू की और अपने पहले ही प्रयास में सिविल सर्विस की परीक्षा 420वीं रैंक पास की।

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