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छत्तीसगढ़ के इस इंजीनियर का रिसर्च अमरीका में प्रकाशित

रॉड लगाने के लिए सीमेंट की जरूरत पड़ती है जबकि टाइटेनियम का बोन स्कॉयफोल्ड नेचुरल तरीके से लगाया जा सकेगा।

रायपुरDec 05, 2024 / 10:13 pm

Tabir Hussain

हड्डियों के टूटने पर उसकी रिकवरी के लिए रॉड का इस्तेमाल किया जाता है। कई बार यह रॉड मुसीबत खड़ी कर देते हैं। ऐसे में एनआईटी रायपुर के एलुमिनाई जयदीप सिंह और आईआईटी गुवाहाटी के प्रोफेसर सौप्टिक चंदा ने एक रिसर्च किया है। जिसमें रॉड का अल्टरनेटिव स्कैफोल्ड टाइटेनियम अलॉय से बनाया गया है। जयदीप का यह रिसर्च अमरीका एक जनरल में पब्लिश हुआ है। बिलासपुर के राजकिशोर नगर निवासी जयदीप ने बॉयो टेक्नोलॉजी में बीटेक एनआईटी से किया और एमटेक आईआईटी गुवाहाटी से किया है। इसके बाद उन्होंने ऑर्थोपेडिक इम्पलांट्स पर रिसर्च कर रहें हैं। आगे वे प्रोफेसर सौप्तिक चंदा के साथ मिलकर न केवल भारत के लिए बल्कि एशिया के लिए ऑर्थोपेडिक इम्पलांट्स टेस्टिंग फैसलिटी तैयार करना चाहते हैं जो अब तक केवल यूएस, यूरोप और चाइना में ही है।
थ्रीडी प्रिंटर से तैयार

मेटल थ्रीडी प्रिंटर से तैयार टाइटेनियम का बोन स्कॉयफोल्ड थ्रीडी प्रिंटिंग तकनीक से तैयार किया गया है। किसी एक स्कॉयफोल्ड बनाने पर यह काफी महंगा साबित होगा लेकिन इसका निर्माण बल्क पर हो तो कीमत परम्परागत तरीके के आसपास होगी। जयदीप ने बताया, प्रधानमंत्री फैलोशिप डॉक्टरल रिसर्च योजना के अंतर्गत यह रिसर्च किया गया है। यह स्टडी भारत में बोन इम्प्लांट की दिशा में कस्टमाइज्ड इम्प्लांट्स का उन्नत कदम है।
ऐसे मिलेगा फायदा

रॉड लगाने के लिए सीमेंट की जरूरत पड़ती है जबकि टाइटेनियम का बोन स्कॉयफोल्ड नेचुरल तरीके से लगाया जा सकेगा। इसका वजन रॉड की अपेक्षा कम है। इसका इस्तेमाल बोन कैंसर, ऑस्टियो पॉरिसिस, लार्ज बोन डिफेक्ट्स जैसे बीमारी से ग्रस्त हड्डियों को रिप्लेस करने में किया जा सकेगा। इसके अलावा डेंटल, हिप रिप्लेसमेंट, शोल्डर रिप्लेसमेंट एवम अन्य इंप्लांट बनाने में किया जा सकता है।
एक्सपर्ट व्यू

बोन इम्प्लांट की फील्ड में यह रिसर्च अच्छा कदम माना जा सकता है। हालांकि टाइटेनियम का यूज पहले से किया जा रहा था लेकिन वह काफी महंगा है। कई बार हमें चकनाचूर हड्डियों की मरम्मत में परेशानी आती है। जिस जगह स्क्रू लगाना होता है वही खराब हो जाता है। कुछ गैप होते हैं जो भर नहीं पाते। ऐसे में यह रिसर्च से फायदा मिल सकेगा। इस रिसर्च से थ्रीडी प्रिंटेड इम्प्लांट्स बनाने में हेल्प मिलेगी।
डॉ. राजेंद्र अहिरे, प्रोफेसर ऑर्थो डिपार्टमेंट मेडिकल कॉलेज रायपुर

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