हाई कोर्ट (Patna High Court) के निर्णय पर सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट गौरव कुमार (Advocate Gaurav Kumar) ने कहा कि हमने बिहार सरकार के इस फैसले को चुनौती दी थी और हमें इस बात की खुशी है कि कोर्ट ने हमारे हक में फैसला सुनाया। उन्होंने कहा राज्य (बिहार) में पहले से ही सामाजिक और आर्थिक आधार पर 50 फीसदी आरक्षण का प्रावधान था। 1992 के इंद्रा साहनी के केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कोई भी राज्य सरकार आरक्षण (Reservation In Bihar) लाना चाहती हो तो वो 50 प्रतिशत के अंदर ही ला सकती है, इसके ऊपर कोई भी राज्य सरकार आरक्षण नहीं ला सकती। ऐसे में सरकार का ये फैसला न सिर्फ अनुच्छेद 14 और 16 के खिलाफ था बल्कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के भी खिलाफ था। यही कारण था कि हमने इसे चुनौती दी। बता दें, जातीय गणना के बाद आरक्षण की सीमा बढ़ाई गई थी।
याचिकाकर्ताओं ने क्या कहा (Patna High Court)
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार सामाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व देने के लिए आरक्षण की व्यवस्था की थी, न कि जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण देने की। 2023 का संशोधित अधिनियम भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। यह कानून सरकारी नौकरियों में नियुक्ति के समान अधिकार का न केवल उल्लंघन करता है, बल्कि भेदभाव से संबंधित मौलिक अधिकार का भी उल्लंघन है।
वर्तमान में किसे कितना आरक्षण मिल रहा है
वर्तमान में भारत में 49.5% आरक्षण है। इसमें से ओबीसी को 27 प्रतिशत, एससी को 15 प्रतिशत और एसटी को 7.5 प्रतिशत आरक्षण मिलता है। इसके अलावा आर्थिक रूप से पिछड़ा सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों को भी 10 प्रतिशत का आरक्षण मिलता है। इस एक आरक्षण को मिलाकर राज्य में आरक्षण का दायरा 50 प्रतिशत के पार चला जाता है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग के लोगों को आरक्षण देने को सही ठहराया। कोर्ट का कहना है कि ये कोटा संविधान के मूल ढांचे को नुकसान नहीं पहुंचाता है।