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एडटेक से प्रादेशिक भाषा सीखना हुआ संभव

पिछले एक दशक में भारत की शिक्षा प्रौद्योगिकी (एडटेक) परिदृश्य में बहुत बड़ा परिवर्तन हुआ है, जो कि आंशिक रूप से कोविड-19 महामारी के कारण डिजिटल शिक्षण को अपनाने को प्रेरित कर रहा है। परिवर्तन की इस लहर के बीच देशभर में एडटेक प्लेटफार्मों में स्थानीय और प्रादेशिक भाषाओं के एकीकरण पर जोर दिया जा रहा है, जो विभिन्न भाषाई समुदायों के लिए महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत देता है। भारत एक बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक राष्ट्र है, इस वजह से अधिगम को बड़े पैमाने पर संभव बनाने के लिए, इसे प्रादेशिक संस्कृति में प्रासंगिक बनाया गया है और भाषाएं सर्वोपरि हो गई हैं।

बैंगलोरApr 29, 2024 / 07:11 pm

Yogesh Sharma

ईआई शिक्षा विशेषज्ञ गायत्री वैद्य से खास मुलाकात

बेंगलूरु. पिछले एक दशक में भारत की शिक्षा प्रौद्योगिकी (एडटेक) परिदृश्य में बहुत बड़ा परिवर्तन हुआ है, जो कि आंशिक रूप से कोविड-19 महामारी के कारण डिजिटल शिक्षण को अपनाने को प्रेरित कर रहा है। परिवर्तन की इस लहर के बीच देशभर में एडटेक प्लेटफार्मों में स्थानीय और प्रादेशिक भाषाओं के एकीकरण पर जोर दिया जा रहा है, जो विभिन्न भाषाई समुदायों के लिए महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत देता है। भारत एक बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक राष्ट्र है, इस वजह से अधिगम को बड़े पैमाने पर संभव बनाने के लिए, इसे प्रादेशिक संस्कृति में प्रासंगिक बनाया गया है और भाषाएं सर्वोपरि हो गई हैं।ईआई (एजुकेशनल इंटेलीजेंस) शिक्षा की एसोसिएट उपाध्यक्ष गायत्री वैद्य ने बेंगलूरु प्रवास के दौरान ‘पत्रिका’ को बताया कि वर्तमान में एडटेक में स्थानीय या प्रादेशिक भाषा सामग्री की आवश्यकता बढ़ रही है, जो कि इस तथ्य से प्रेरित है कि बड़ी संख्या में प्रादेशिक अधिगम सामग्री के उपयोगकर्ता सरकारी स्कूलों के विद्यार्थी हैं। इनमें से कई विद्यार्थी पहली पीढ़ी के शिक्षार्थी हैं या फिर ऐसे परिवारों से हैं जहां शिक्षा में माता-पिता की भागीदारी बहुत सीमित है। उनकी शैक्षिक यात्रा अक्सर सीधे कक्षा 1 में शुरू होती है। प्रीस्कूल में करवाई जाने वाली मूलभूत गतिविधियों से उनका कोई वास्ता नहीं हो पाता है, जो कि शैक्षिक विकास का मंच तैयार करने के लिए महत्वपूर्ण होती है।
एजुकेशन इनीशिएटिव (एडटेक) करीब साढ़े चार लाख से अधिक बच्चों को प्रतिवर्ष इसकी शिक्षा दे रहा है। कर्नाटक में अभी शुरुआती दौर में है। फिर भी यहां करीब 12 हजार बच्चे इस शिक्षा से जुड़ चुके हैं। वैद्य ने कहा कि यूनेस्को ने सीखने के प्रतिफल को बढ़ाने में मातृभाषा के महत्व पर प्रकाश डाला और कहा कि यह समावेशन और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कारक है। अध्ययन भी इस बात पर जोर देते हैं कि अपनी पहली भाषा में शिक्षा प्राप्त करने से शैक्षणिक प्रदर्शन बेहतर होता है और आत्मविश्वास बढ़ता है, जिससे न केवल अंग्रेजी बोलने वाले बल्कि सभी विद्यार्थियों को लाभ होता है। इन सिद्धांतों के अनुरूप, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के दिशानिर्देशों में स्थानीय भाषाओं का समर्थन किया गया है, जिसका लक्ष्य शिक्षा में समानता, पहुंच और समावेशिता को बढ़ावा देना है। शिक्षा एक माध्यम है जिससे सभी को समान अवसर प्राप्त हो सकते हैं। शिक्षा में बाधाओं को तोडऩे और विविध पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों के लिए नए क्षितिज खोलने की परिवर्तनकारी शक्ति होती है। इस आवश्यकता को स्वीकार करते हुए,जरूरी है कि सामग्री न केवल सरल हो, बल्कि मनोरम एवम आकर्षक भी हो, जिसमें दृश्य-श्रव्य तत्वों को शामिल किया जाए और मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मक अवधारणाओं पर जोर दिया जाए, ताकि बच्चे के संपूर्ण विकास के लिए भाषाई, सांस्कृतिक, संज्ञानात्मक और सामाजिक अनुभवों को शामिल किया जा सके। उन्होंने माना कि प्रादेशिक सामग्री की आवश्यकता निर्विवाद है, विशेष रूप से गणित और विज्ञान जैसे तकनीकी विषयों में क्षेत्र के अनुरूप सामग्री की भी उतनी ही तत्काल आवश्यकता है। भाषाओं के विपरीत, इन विषयों में सार्वभौमिक सामग्री होती है, लेकिन भाषा-आधारित विषयों में भाषाई विशेषताओं के अनुरूप प्रासंगिकता की आवश्यकता होती है। एडटेक कार्यक्रम की सफलता विभिन्न क्षेत्रों के विशिष्ट कौशल और साझा की गई शोध की मात्रा और विस्तृत विश्लेषण पर निर्भर करती है, जिसके परिणामस्वरूप महत्वपूर्ण कौशलों की पहचान की जा सकती है, जो कि प्रादेशिक भाषाओं में सामग्री का एक समान उपसमूह बनाते हैं।
भारत का एडटेक क्षेत्र जैसे-जैसे विकसित हो रहा है, प्रादेशिक भाषाओं और सीखने की पद्धतिओं का एकीकरण सर्वोपरि हो गया है। आने वाले वर्षों में स्थानीय भाषा-सामग्री-संचालित शिक्षा में बहुत वृद्धि होगी, जिसमें शैक्षणिक संस्थान और प्रगतिशील एडटेक प्लेटफॉर्म प्रमुख भूमिका निभाएंगे। गायत्री वैद्य ने कहा कि शिक्षा के माध्यम के रूप में स्थानीय भाषाओं का उपयोग करने के लाभ निर्विवाद हैं। सीखने के प्रतिफल में सुधार के अलावा, यह सामाजिक एकजुटता को बढ़ावा देता है और छात्रों का आत्मविश्वास बढ़ाता है। आगे देखते हुए, इस पथ में अधिक प्रादेशिक भाषाओं में सामग्री बनाना और विद्यार्थियों से सक्रिय रूप से प्रतिक्रिया प्राप्त करना शामिल है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि शिक्षा वास्तव में भाषाई और सांस्कृतिक विभाजन से परे है।

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