जांजगीर-चांपा जिले की बात करें पिछले पांच सालों में यहां ड्राप आउट बच्चों की संख्या 1787 पहुंच चुकी है। विडंबना यह है कि ड्राप आउट बच्चों की संख्या हर साल बढ़ रही है लेकिन इसके बाद भी शिक्षा विभाग के अफसरों ने डाप आउट रोकने के लिए कोई प्रयास ही नहीं किया। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि विभाग ने यह जानने का कभी प्रयास ही नहीं किया कि बच्चों ने किस वजह से स्कूल छोड़ा, पढ़ाई छोडऩे की वजह क्या रही। यह हाल केवल एक जिले का नहीं है, प्रदेश के अधिकतर जिलों में यही हाल रहा। हाल ही में राज्य सरकार ने आरटीई अधिनियम की समीक्षा में पाया कि जितने बच्चे एडमिशन लेते हैं, उतने बच्चे पढ़ाई पूरी ही नहीं करते। डाप आउट बच्चों की बढ़ती संख्या को देखते हुए अब शासन ने डाप आउट रोकने नए नियम बनाए हैं। गरीब बच्चों को भी बड़े प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू किया गया। बच्चे की फीस का भुगतान सरकार करती है। स्कूल के 25 प्रतिशत सीटों पर गरीब बच्चों का एडमिशन होता है। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों को स्तरीय शिक्षा देने के लिए यह नियम बनाया गया। बच्चे 12 वीं तक उस स्कूल में पढ़ सकते हैं, जिसका खर्च सरकार वहन करती है।
फीस मुफ्त पर महंगी किताबों और यूनिफार्म का बोझ
आरटीई के तहत प्रवेशित बच्चों को शासन की ओर से फीस के अलावा किताबें और यूनिफार्म के लिए भी अलग से राशि देने का प्रावधान है। मगर अधिकतर निजी स्कूलों में किताबें और यूनिफार्म नहीं दी जाती। मुफ्त एडमिशन तो हो जाता है पर बड़े स्कूलों में चलने वाली महंगी किताबें, यूनिफार्म का खर्च भी हजारों में होता है। जो गरीब अभिभावक वहन नहीं कर पाते। ड्राप आउट के पीछे यह भी बड़ी वजह है। निजी स्कूल सालभर में कई तरह के आयोजन भी कराते हैंं। इसमें शामिल होने के लिए बच्चों से ही कई तरह से फीस वसूलते हैं। बच्चे शामिल नहीं होते पर प्रबंधन अभिभावकों पर दबाव बनाते हैं।
जिले में मेंटॉर की होगी नियुक्ति : डीईओ
डीईओ अश्वनी भारद्वाज के मुताबिक ड्राप आउट रोकने जिले में जल्द ही मेंटॉर की नियुक्ति होगी। जिला कलेक्टर के द्वारा हाल ही इसकी समीक्षा भी की है और आवश्यक दिशा-निर्देश दिए हैं जिसकी सख्ती से पालन कराएंगे। आरटीई के तहत प्रवेशित बच्चों के साथ गलत व्यवहार या किसी भी तरह की शिकायत मिलेगी तो सख्त कार्रवाई होगी। ड्राप आउट रोकने पूरा प्रयास होगा।