परिचर्चा में मध्य एशियाई देशों के साहित्य और भाषा के जानकार प्रो.अख्तर हुसैन, डॉ. अशोक तिवारी, डॉ. खुर्शीद इमाम, प्रो. ख्वाजा मोहम्मद इकरामुदीन, प्रो. रिजवानुर रहमान और डॉ.बलराम शुक्ल ने पुस्तक के प्रत्येक खंड पर अपने विचार बड़ी सजगता से रखे।
लेखिका के अफ्रो-एशियाई देशों के बुद्धजीविओं से गहरे ताल्लुकात रहे हैं। उन्होंने न सिर्फ इन देशों के साहित्य को बहुत गहराई से पढ़ा और उनके समाजों को नजदीक से देखा-जाना है, बल्कि वह वहां की समस्याओं से लगातार टकराती भी रही हैं।
लेखक ओम निश्चल ने कहा, लेखिका ने इस पुस्तक के जरिये साहित्य में ऐसे काम को अंजाम दिया है जो बड़ी संस्थाओं के वश का भी नहीं है। मध्यपूर्व एशियाई व पूर्वी मुल्कों के साहित्य की इस सीरीज को उन्होंने ‘अदब की बाईं पसली’ कहा है, जिसका अर्थ यह है कि जिंदगी और अदब दोनों में स्त्री-पुरुष एक-दूसरे के पूरक हैं।
लेखिका ने इन किताबों की रचना और परिकल्पना के बारे में बताते हुए कहा, “इन किताबों की एक-एक लाइन मेरी रूह से निकली है। जिन देशों में मैं गई, वहां के कला, साहित्य व संस्कृति को 35 वर्षों में लिखा। चाहे वो अनुवाद हो, लेख, कहानी, निबंध या उपन्यास हो.. सब कुछ पाठकों तक इन छह खंडों में पहुंचाने का प्रयास किया है। संकलन के इन खंडों के सभी रचनाकार अपनी भाषा के महत्वपूर्ण रचनाकार हैं और अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हैं”
प्रो.अख्तर हुसैन ने कहा कि संकलित लघु उपन्यासों का लेखिका ने जिस तरह से अनुवाद किया है वो अद्भुत है। परशियन से हिंदी में अनुवाद करना आसान नहीं है। डॉ.अशोक तिवारी ने अफ्रो-एशियाई नाटक एवं बुद्धजीविओं से बातचीत वाले खंड पर अपने विचार रखते हुए कहा कि यह पुस्तक ‘अदब में बाईं पसली’ अपने नाम में ही एक रूपक लिए हुए है। लेखिका ने बड़े धैर्य, गहन शोध और व्यापक तरीके से लिखा है और खुबसूरत शब्दों के चयन से नाटकों के पात्रों को जीवंत किया है। गौहर मुराद का नाटक पशुबाड़ा को पढ़ते हुए आज के भारत की याद आती है।
डॉ. खुर्शीद इमाम अफ्रो-एशियाई कहानियों पर कहा, “इजराइल हिब्रू की कहानियों को हिंदी में लाने का बीड़ा उठाना और भारतीयों के बीच में लाना लेखिका का काबिलेतारीफ काम है। हिब्रू कहानियों को थोड़ी बहुत ही जगह मिली है, मगर मैं चाहता हूं कि इस कारवां को कोई आगे लेके चले और हिब्रू की और कहानियां भारतीयों के सामने आएं।”
प्रो. बलराम शुक्ल ने ‘अफ्रो एशियाई कविताएं’ खंड पर कहा, “मध्यपूर्व की भाषाओं के कवि प्रामाणिक रूप से हमारे सामने आएं यह जरूरी है। गद्यकाव्य की लेखिका होने के बावजूद कविताओं को इन्होंने बड़ी संगीतमय तरीके से लिखा है और इतनी बड़ी कमी की पूर्ति इन छह खंडों के आने से हो पाई है, यह अपने आप में एक उपलब्धि है।”
राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने कहा, “यह पुस्तक प्रकाशित करना राजकमल प्रकाशन ने लिए एक बड़ी चुनौती थी, क्योंकि एशियाई महाद्वीप के देशों के साहित्य का अनुवाद हिंदी में न के बराबर हुआ है और यह प्रयोग हिंदी साहित्य में पहली बार हुआ है।”
अफ्रो-एशियाई कविताओं के पहले खंड में नेपाल, अफगानिस्तान, इथियोपिया, सोमालिया, कुवैत व अन्य, देश, फिलिस्तीन, ईरान, सीरिया, इराक व हिंदुस्तान, पाकिस्तान, ताजिकिस्तान, लेबनान आदि देशों के कवियों की कविताएं शामिल हैं।