प्रश्न (1) – रेपो रेट क्या होता है?
रेपो रेट रिजर्व बैंक और अन्य बैंकों के बीच धनराशि के आदान-प्रदान पर दिए जाने वाले ब्याज की दर है। रिजर्व बैंक जब धनराशि देता है, वह दर रेपो और जब वह दूसरे बैंकों से लेता है तब रिवर्स रेपो दर कहलाती है। बाजार में मुद्रा की स्थिति को संतुलित बनाए रखने के लिए अक्सर रिजर्व बैंक और अन्य बैंकों के बीच यह आदान-प्रदान होता है।
प्रश्न (2) – स्विस बैंकों की क्या खास बात है?
मध्य युग से ही स्विस बैंक सूचनाओं को गोपनीय रखने के लिए प्रसिद्ध हैं। सन 1934 में इसके लिए यहां की संसद ने विशेष कानून भी बनाया। स्विट्जरलैंड पूरी तरह तटस्थ देश है। उसकी साख के कारण बैंकिंग कारोबार यहां अच्छा है। शुरुआत में बैंकिंग के बाबत स्विस कानून बनाते वक्त गोपनीयता पर जोर नहीं था, पर उन दिनों नाजी जर्मनी यहूदियों के बारे में जानकारियां लेकर उन्हें प्रताडि़त करते थे। इसी गोपनीयता के कारण दुनियाभर का काला पैसा भी यहां के बैंकों में जमा होने लगा है। अब वहां भी नियमों में बदलाव हो रहा है और काले धन की जानकारी वहां का बैंकिंग उद्योग देने को तैयार है।
प्रश्न (3) – आंगनबाड़ी क्या है?
आंगनबाड़ी भारत में मातृ-शिशु स्वास्थ्य से जुडा एक सरकारी कार्यक्रम है। इसमें नवजात से लेकर छह साल तक के बच्चों की स्वास्थ्य-रक्षा के कार्य किए जाते हैं। यह कार्यक्रम 1975 में शुरू किया था। यह कार्यक्रम गांवों में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता की मदद से चलाया जाता है। कार्यकर्ताओं को चार महीने की ट्रेनिंग दी जाती है। अनुमान है कि देश में इस समय दस लाख से ज्यादा आंगनबाड़ी कार्यकर्ता काम कर रहीं हैं।
प्रश्न (4) – चवन्नी किसे कहते हैं?
एक गणना पद्धति के अंतर्गत संख्याएं चार-आठ और सोलह में गिनी जाती थीं। हमारे देश में 1957 में दाशमिक पद्धति यानी सौ की पद्धति लागू हुई। तब रुपए में सौ पैसे और किलो में हजार ग्राम का चलन शुरू हुआ। उसके पहले रुपया सोलह आने का होता था। चौथाई रुपया चार आने का था। चार आने को बोलचाल की भाषा में चवन्नी कहते थे। चूंकि रुपए के मुकाबले चवन्नी छोटी होती थी, इसलिए क्षुद्रता के लिए मुहावरा बन गया, ‘चवन्नी छाप।’
प्रश्न (5) – भारत के सेंसर बोर्ड की स्थापना कब हुई?
केंन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड भारत सरकार की एक नियामक संस्था है। इसका कार्य फिल्मों, टीवी कार्यक्रमों तथा उनकी प्रचार सामग्री की समीक्षा करना है। देश के सिनेमाटोग्राफिक एक्ट 1952 के तहत यह संस्था काम करती है और फिल्मों के सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए प्रमाण पत्र देती है।