प्रश्न (1) – घड़ी उल्टे हाथ में ही क्यों बांधते हैं?
घड़ी बांधते वक्त आपके मन में यह खयाल जरूर आया होगा कि हमेशा बाएं हाथ की कलाई पर घड़ी को क्यों बांधा जाता है? पुराने जमाने में घडिय़ां हाथों में नहीं जेब में हुआ करती थीं। आपने भी पुराने जमाने की चेन वाली घडिय़ां देखी होंगी, जिन्हें जेब में रखा जाता था। जेब से निकालकर समय देखा जाता था। माना जाता है कि कुछ लोग इस चेन वाली घड़ी को हाथ में पहनने लगे और हाथ में घड़ी बांधने का चलन शुरू हुआ। बाएं हाथ में घड़ी बांधने की मुख्य वजह अधिकतर लोगों का दाएं हाथ से काम करना है। जब दायां हाथ काम में व्यस्त होता है तो बाएं हाथ में इसी दौरान समय देखना बेहद आसान होता है और दाएं हाथ से काम भी चलता रहता है। बाएं हाथ में घड़ी बांधना इतना कॉमन है कि घडिय़ां भी इसी हिसाब से बनाई जाने लगीं।
प्रश्न (2) – गाय चारा हरा खाती है पर दूध सफेद क्यों देती है?
दूध को सफेदी कैसीन नामक प्रोटीन से मिलती है। यह प्रोटीन कैल्शियम के साथ दूध को सफेद रंग देने का काम भी करता है। दूध में मौजूद वसा भी सफेद रंग का होता है। यही कारण है कि दूध में जितनी ज्यादा मात्रा में वसा या चिकनाई होती है, वह उतना ही ज्यादा सफेद होता है जबकि कम वसा या क्रीम वाला दूध हल्का मटमैला दिखाई देता है। वसा की अधिकता के कारण ही भैंस का दूध गाय के दूध से अधिक सफेद होता है। इसके अलावा एक कारण और भी है, जो दूध को सफेद दिखाता है। कारण कुछ चीजें प्रकाश का पूरी तरह से अवशोषण नहीं कर पाती हैं। वे प्रकाश को जैसे का तैसा लौटा देती हैं। ऐसा ही कैसीन के अणु भी करते हैं। वे पूरा प्रकाश लौटा देते हैं और देखने में दूध का रंग सफेद लगता है।
प्रश्न (3) – खटाई डालने से दूध क्यों फटता है?
दूध में जल, वसा, कार्बोहाइड्रेड तथा अकार्बनिक लवण होते हैं। कैसीन नामक फास्फो प्रोटीन भी उपस्थित होता है। जब कोई अम्ल या खटाई दूध में मिलाई जाती है तो यह वसा तथा कैसीन आपस में मिलकर थक्का बना लेते है। यह पात्र की तली में बैठ जाते हैं तथा जल, कार्बोहाइड्रेट व लवण ऊपर तैरते रहते हैं इसे दूध का फटना कहते हैं।
प्रश्न (4) – रेगिस्तान में मरीचिका बनने का क्या कारण है?
इस भ्रम को रेगिस्तान की मरीचिका या मृगतृष्णा कहते हैं। मरुस्थल की रेतीली भूमि गर्मी के कारण अधिक गर्म हो जाती है जिसके कारण धरती के पास हवा की गर्म परतें विरल हो जाती हैं किन्तु ऊपर की परतें ठंडी होने से वे अपेक्षाकृत सघन होती हैं। ऐसे में किसी वस्तु या पेड़ की चोटी से आने वाली प्रकाश की किरणें हवा की विभिन्न परतों से अपवर्तित होकर अभिलंब से दूर हटती जाती हैं परिणामत: इन किरणों का पूर्ण आंतरिक परावर्तन हो जाता है और मरीचिका बनती है।