कन्नूर के छोटे से गांव अजिकोड में बड़ा हुआ, माता-पिता शिक्षक थे इसलिए ट्यूशन की जरूरत नहीं पड़ी। मुझे फुटबॉल खेलना और पढऩा अच्छा लगता था खासतौर पर गणित। बाद में यूके की फर्म में इंजीनियर हो गया। छुट्टियों में जब दोस्तों की मदद के लिए मैंने उन्हें कैट की तैयारी करवाई तो खुद भी फॉर्म भरा। आश्चर्य देखिए, मेरे 100 पर्सेंटाइल आए, आईआईएम से फोन आने लगे लेकिन मैंने पढ़ाने को ही जीवन बना लिया।
अपनी ताकत पर कीजिए काम
लोग आपसे कहते हैं कि अपनी कमजोरियों पर कड़ी मेहनत कीजिए, इसके विपरीत मेरा तर्क है कि आपको अपनी ताकत को भी और मजबूत करने पर ध्यान देना चाहिए। मैं स्कूल में मैथ ओलम्पियाड विजेता था क्योंकि मुझे गणित के सवाल हल करने में बहुत मजा आता था। गणित मेरी ताकत थी और मैंने इसे और मजबूत किया।
धन से नहीं मिलती सफलता
किसी व्यवसाय के लिए सबसे जरूरी शर्त धन नहीं होता। सबसे जरूरी होता है अपने काम से प्यार। आप जो भी करते हैं वह आपको पसंद होना चाहिए। मैं पेशे से इंजीनियर हूं, संयोग ने मुझे उद्योगपति बना दिया लेकिन मुझे पढ़ाने-पढऩे से प्यार था। मैंने नौकरी करते हुए अपनी पसंद को उभारा। एक बार जब पढ़ाने का काम जम गया तो नौकरी छोड़ी और सब अपने आप हो गया। दो लाख रुपए से कंपनी डाली।
स्कूली दिनों से हमें सिर्फ जवाब देने की आदत हो गई है, ऐसे धीरे-धीरे हम सवाल उठाना ही भूल गए हैं। बंधे-बंधाए ढर्रे पर चलना या आंख बंद करके अनुसरण करना सही तरीका नहीं है, सही तरीका है अपना रास्ता खुद खोजना। कॅरियर हो या पढ़ाई, सवाल उठाते रहना और हल तक पहुंचने के लिए तयशुदा जवाबों के अलावा खुद अपने जवाब खोजना भी जरूरी है। यही एक तरीका है, जिससे आप किसी कॉन्सेप्ट को क्लियर करते हुए दिमाग के जाले साफ कर सकते हैं।