सर विश्वेश्वरैया शुरूआती पढ़ाई अपने गांव से ही हुई। स्कूली पढ़ाई के बाद उन्होंने बैंगलोर से बीए की डिग्री हासिल की। बीए करने के बाद इंजीनियरिंग में रूचि होने के कारण उन्होंने पुणे के कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में दाखिला ले लिया। इंजीनियरिंग की पढ़ाई आसान नहीं थी, लेकिन मेहनत और लगन से उन्होंने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। अपनी इंजीनियरिंग के दौरान उन्होंने कई तरह की व्यावहारिक परियोजनाओं में भी भाग लिया। जिसमें उन्होंने उम्मीद से बढ़कर काम किया।
अपनी कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद एम.विश्वेश्वरैया ने बॉम्बे में पीडब्ल्यूडी विभाग में नौकरी शुरू कर दी। इस विभाग में रहते हुए उन्होंने कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं में भाग लिया और उम्मीद से बेहतर काम करके अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया।
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एम. विश्वेश्वरैया ने कई ऐसे काम किए जो देश हित में थे। एम. विश्वेश्वरैया ने सिंधु नदी के अलावा मूसा और इसा नदियों के पानी को भी बांधने के लिए कई योजनाएं बनाईं। जिस कारण से सिंचाई की सुविधा बढ़ी और कृषि उत्पादन में वृद्धि देखि गई। एम. विश्वेश्वरैया के इन्हीं अद्भुत कार्य के लिए उन्हें कर्नाटक का भागीरथ भी कहा जाता है। उनके देश के के लिए असाधारण योगदान के लिए 1955 में विश्वेश्वरैया को भारत रत्न से सम्मानित किया गया। उस समय उनके द्वारा किए गए कई प्रयोगों का इस्तेमाल आज भी इंजीनियरिंग के क्षेत्र में किया जाता है। एम. विश्वेश्वरैया का निधन 14 अप्रैल, 1962 को हुआ था। लेकिन अपने जीवन में उन्होंने कई ऐसे काम किए जिसे आज भी याद किया जाता है।
Engineers Day 2024 : एम. विश्वेश्वरैया को कहा जाता था “कर्नाटक का भागीरथ”
एम. विश्वेश्वरैया ने कई ऐसे काम किए जो देश हित में थे। एम. विश्वेश्वरैया ने सिंधु नदी के अलावा मूसा और इसा नदियों के पानी को भी बांधने के लिए कई योजनाएं बनाईं। जिस कारण से सिंचाई की सुविधा बढ़ी और कृषि उत्पादन में वृद्धि देखि गई। एम. विश्वेश्वरैया के इन्हीं अद्भुत कार्य के लिए उन्हें कर्नाटक का भागीरथ भी कहा जाता है। उनके देश के के लिए असाधारण योगदान के लिए 1955 में विश्वेश्वरैया को भारत रत्न से सम्मानित किया गया। उस समय उनके द्वारा किए गए कई प्रयोगों का इस्तेमाल आज भी इंजीनियरिंग के क्षेत्र में किया जाता है। एम. विश्वेश्वरैया का निधन 14 अप्रैल, 1962 को हुआ था। लेकिन अपने जीवन में उन्होंने कई ऐसे काम किए जिसे आज भी याद किया जाता है।