इस बारे में पूछे गए सवाल पर बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीएसए) हरिवंश कुमार सिंह ने सफाई देते हुए कहा कि जिले में 1764 स्कूल में 4500 हजार शिक्षक और 1700 शिक्षामित्र हैं और अधिकतर स्कूलों का औचक निरीक्षण किया जाता है। प्राथमिकता यही रहती है कि सभी विद्यालयों को समय से खोला जाए। इसमें किसी तरह की अनियमितता पाई जाने पर चेतावनी से लेकर नियमों के तहत कठोर से कठोर कार्रवाई शिक्षकों के खिलाफ की जाती है। बीएसए ने बताया कि शिक्षकों की कमी के कारण कभी कभी ऐसी समस्याएं आ जाती हैं। यदि कभी किसी स्कूल में स्टाफ की कमी और उपलब्ध स्टाफ के किन्हीं कारणों से विद्यालय नहीं आ पाने की स्थिति बनती है तो जल्द से जल्द उक्त विद्यालय में अध्यापक की व्यवस्था कराई जाती है और स्कूल खोला जाता है। बदलते परिवेश में ज्ञान और नई तकनीक में पिछड़े शिक्षकों को अपडेट करने के लिए विभाग द्वारा पूरे साल भर विभिन्न तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाते हैं।
45 स्कूल इंग्लिश मीडियम
उन्होंने बताया कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन इसके साथ साथ संसाधन और अध्यापकों की कम संख्या के चलते कई कमियां रह जाती हैं जिन्हें लगातार कम करने का प्रयास किया जा रहा है। इन्ही प्रयासों के चलते जिले में 45 स्कूलों को इंग्लिश मीडियम कर दिया गया है। अध्यापकों के लिए हाल ही इंग्लिश स्पीकिंग की प्रशिक्षण कार्यशाला का भी आयोजन किया गया था। इस तरह की कार्यशालाओं का आयोजन पूरे साल अलग अलग विषयों पर किया जाता है।
साफ करने का काम रसोइया का ही है
बीएसए ने कहा, हम जिन बच्चों को शिक्षा मुहैया कराते हैं वह काफी गरीब परिवारों से आते हैं। साथ ही उनके परिवारों में भी कोई व्यक्ति पढ़ा लिखा मिलना भी मुश्किल होता है और ऐसे बच्चों को परिवार से शिक्षा में किसी तरह की मदद नहीं मिल पाती है। इन बच्चों को हम अपने उपलब्ध संसाधनों और सीमित दायरे के बीच अधिक से अधिक गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा मुहैया कराने का हर संभव प्रयास करते हैं। हमारे कई शिक्षक तो अपने वेतन से बच्चों को ड्रेस, किताबें और दूसरे जरूरी सामान मुहैया कराते हैं। स्कूलों में मिड डे मील के बाद बच्चों से बर्तन साफ कराए जाने के सवाल के जवाब में बीएसए ने कहा कि मिड डे मील जिन बर्तनों मे बनाया जाता है उन्हें साफ करने का काम रसोइया का ही है और जहां तक खाने के बर्तन साफ करने का प्रश्न है तो इस बारे में स्पष्ट तौर पर कोई निर्देश नहीं हैं कि यह काम रसोइया का है लेकिन फिर भी अध्यापकों को यह निर्देश दिए गए हैं कि छोटे बच्चे तो किसी कीमत पर भी बर्तन साफ न करें और इस काम के लिए कैसे ही रसोइया को ही तैयार किया जाए। हां, बड़े बच्चे खाने के बाद अपने खाने के बर्तन धो कर रख सकते हैं।
होती है कड़ी कार्रवाई
उन्होंने यह भी बताया कि इस बारे में उन्होंने मिडडे मील अथॉरिटी को भी लिखा है और जल्द ही बर्तन साफ करने की इस समस्या का भी कोई न कोई समाधान निकाल लिया जाएगा। स्कूलों में साफ सफाई के सवाल पर पूछे गए सवाल के जवाब में सिंह ने बताया कि यह जिम्मेदारी पंचायत राज विभाग के सफाई कर्मचारी की है। कई स्कूलों में शिक्षक ग्राम प्रधानों के साथ मिलकर इस मामले में बेहद प्रभावी तरीके से काम कर रहे हैं। बच्चों का काम साफ सफाई का नहीं है और कहीं ऐसा अगर किया जाता है तो प्रधानाचार्य सहित पूरे स्टाफ के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होती है।
बीएसए ने माना कि समाज के जिस गरीब और पिछड़े तबके को उनका विभाग शिक्षित करने का काम कर रहा है वह यह काम अपने उपलब्ध संसाधनों के दायरे में रहकर ही कर सकता है और ऐसे में कई स्तरों पर कमियां रह जाना स्वभाविक है, लेकिन ऐसा नहीं है कि इन कमियों में सुधार या स्थिति में बदलाव के लिए प्रयास किए नहीं जा रहे हैं। इन्हीं प्रयासों को फल है कि काफी बदलाव आया है लेकिन अभी काफी कुछ किया जाना बाकी है।