अर्थव्‍यवस्‍था

अगर दो दिनों में नहीं मिला ‘विक्रम’ तो भारत के हाथों के निकल जाएगा ब्रह्मांड का सबसे बड़ा खजाना

विक्रम लैंडर के मिलने के उम्मीदों की 21 सितंबर है आखिरी तारीख
चांद पर बहुमूल्य हीलियम की खोज के लिए पृथ्वी से चांद पर चंद्रयान 2

Sep 19, 2019 / 12:31 pm

Saurabh Sharma

नई दिल्ली। भारत समेत पूरी दुनिया को 21 सितंबर का इंतजार है। इसरों ने पूरी दुनिया को उम्मीद बांधी हैं कि चंद्रयान 2 लैंडर विक्रम की खोज हो जाएगी। अब सवाल ये है कि अगर 21 को विक्रम नहीं मिलता है तो फिर क्या होगा? क्या भारत को नुकसान होगा या फायदा? आज हम आपको यही बताते जा रहे हैं। वास्तव में चंद्रयान 2 के विक्रम लैंडर के ना मिलने से भारत के हाथों से ब्रह्मांड का सबसे बड़ा खजाना निकल जाएगा। जिसकी भरपाई कभी नहीं हो पाएगी। अगर भारत को वो खजाना मिल जाता है तो वो दुनिया का सबसे अमीर और शक्तिशाली देश बन जाएगा। अब सबकुछ विक्रम के मिलने पर टिका है। आइए आपको भी बताते हैं कि आखिर वो कौन सा खजाना है, जिसे विक्रम को तलाश करना था।

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चंद्रयान 2 करेगा हीलियम की खोज
भारत का चंदयान 2 मिशन वैसे तो कई मायनों में ऐतिहासिक है। उसमें से सबसे महत्वूपर्ण है हीलियम-3 की खोज। यही वो खजाना है जिसे विक्रम लैंडर को खोजना है। जानकारों की मानें तो हीलियम 3 कई ऊर्जा की जरूरतों को पूरी कर सकता है। हीलियम 3 की खोज के लिए भारत के चंद्रयान 2 के व्रिक्रम लैंडर को चांद के साउथ पोल के बीच में सॉफ्ट लैंड करना था। जो नहीं हो सका। अभी तक विक्रम का भी कुछ पता नहीं है। इसरो ने भी 21 सितंबर की आखिरी तारीख दी है। अगर नहीं मिला या संपर्क नहीं हो सका तो तमाम उम्मीदें धराशाई हो जाएंगी। आपको बता दें कि चांद पर मौजूद हीलियम पर नजरें सिर्फ अमरीका, रूस, जापान की नहीं बल्कि चीन की भी टिकी हुई है। जानकारों की मानें तो इसी हीलियम के लिए भविष्य में वल्र्ड वॉर-3 भी हो सकता है।

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चीन का चांग ई 4 पहले से ही कर रहा है खोज
चीन पहले से चांद के निचले हिस्से में अपना स्पेसक्राफ्ट लांच कर चुका है। चीन से इसकी लॉन्चिंग 8 दिसंबर को शियांग सैटलाइट लॉन्च सेंटर से की थी। यह लो फ्रिक्वेंसी रेडियो एस्ट्रोनॉमिकल ऑब्जर्वेशन की मदद से चांद के पिछले हिस्से की सतह की संरचना और मौजूद खनिजों के बारे में पता लगाएगा। खासकर हीलियम 3 का। चीन के यहां पर पहुंचने के बाद भारत यहां पहुंचने का प्रयास कर रहा था। जिसकी वजह से चीन भी टेंशन में आ गया था।

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क्या है हीलियम 3?
हीलियम 3 सामान्य हीलियम का आइसोटोप है। सामान्य हीलियम में दो प्रोटॉन दो इलेक्ट्रान और दो न्यूट्रॉन होते हैं। वहीं हीलियम 3 में सामान्य हीलियम की तुलना में एक न्यूट्रॉन कम होता है। यानी 2 इलेक्ट्रान, 2 प्रोटॉन और एक न्यूट्रॉन। भूमण्डल में हीलियम 3 लगभग 0.000137 फीसदी की मात्रा में प्राकृतिक रूप से पाई जाती है। अमूमन यह चांद पर ही पाई जाती है। ऐसा माना जाता है की सूर्य की हवाएं जब चन्द्रमा की जमीन से टकराती हैं तो इसमें हीलियम 3 चन्द्रमा की मिट्टी में कैद हो जाती है।

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चांद से पृथ्वी पर हीलियम लाने का खर्च
जानकारों की मानें तो हीलियम-3 गैस के एक टन का उत्पादन और पृथ्वी तक लाने का खर्च तीन अरब डालर हो सकता है। चांद से हीलियम-3 लाने के लिए रॉकेट्स, उपग्रहों आदि के विकास में 20 अरब डालर के निवेश का आकलन है। जानकारों के अनुसार चांद पर इतना हीलियम-3 है कि आने वाले दस हजार साल तक पृथ्वी पर ऊर्जा कभी कमी नहीं होगी।

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इतनी है एक टन हीलियम 3 की कीमत
अब अगर किसी देश के पास हीलियम 3 आ जाए तो वो दुनिया का सबसे अमीर देश भी हो सकता है। एक टन हीलियम-3 की कीमत करीब 5 अरब डॉलर के करीब बताई जा रही है। चांद से ढाई लाख टन हीलियम 3 लाई जा सकती है। जिसकी कीमत अनुमान लाखों करोड़ डॉलर है।

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आखिर पृथ्वी पर क्यों नहीं पाई जाती हीलियम?
भूमण्डल में प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली हीलियम 3 अधिकतर पृथ्वी में यूरेनियम और थोरियम के अल्फा डीके से सामान्य हीलियम में बदल जाती है। पृथ्वी पर बहुत ही सशक्त चुंबकीय क्षेत्र हैं, जो की सूरज की हवाओं द्वारा हीलियम 3 पृथ्वी पर नहीं आने देती। इसे कृतिम रूप से बनाने के लिए ट्रिटियम हाइड्रोजन का एक रेडियोधर्मी आइसोटोप है और आमतौर पर परमाणु रिएक्टर में न्यूट्रॉन के साथ लिथियम 6 पर बमबारी कर बनाया जाता है। जितनी भी हीलियम 3 बनती है सब लगभग इसी तरीके से बनती है। अगर हम दो हीलियम 3 के परमाणुओं को न्यूक्लियर फ्यूजऩ से सामान्य हीलियम में बदल दें तो इसमें बहुत ऊर्जा पैदा होती है।

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