अधिकतर पीपीपी उद्यम एनपीए में तब्दील
उन्होंने कहा कि बड़ी संख्या में पीपीपी उद्यम अब गैर निष्पादित आस्तियों (एनपीए) में बदल चुके हैं। निजी क्षेत्र के लिए काफी जोखिम है। परियोजनाओं से संबंधित जोखिम है, भूमि अधिग्रहण काफी महंगा हो चुका है और निवेश से जीडीपी अनुपात कम हुआ है। कुमार ने कहा, ”मोदी सरकार की मंशा और ध्यान पूरी तरह स्पष्ट है कि निजी क्षेत्र के उपक्रम को भी जगह मिलनी चाहिए। उसे प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए जिससे वह अर्थव्यवस्था में अपनी भूमिका निभा सके। सरकार की ऐसी कोई मंशा नहीं है कि वह खुद देश में वृद्धि का प्रमुख ‘इंजन’ बने और यह संभव भी नहीं है।”
आर्थिक तेजी बढ़ाने पर जोर
उन्होंने कहा कि दूसरे कार्यकाल में मोदी सरकार तेज वृद्धि पर ध्यान दे रही है। सात प्रतिशत से अधिक की वृद्धि पर। भारत ने आठ प्रतिशत की वृद्धि भी हासिल की है। यह निजी क्षेत्र और निजी उपक्रमों की अगुवाई में हासिल हुई है। कुमार ने कहा, ”अगले पांच साल के दौरान भारत एक बड़े बदलाव की दिशा में होगा। यदि यह सफल होता है, जैसा कि यह सरकार चाहती है, तो आपको एक दशक से अधिक तक ऊंची वृद्धि देखने को मिलेगी। यह वृद्धि समावेशी और सतत होगी।” कुमार ने इस बात पर जोर दिया कि कुछ सुधारों मसलन नोटबंदी आदि से अर्थव्यवस्था को अधिक व्यवस्थित किया जा सका है। यह पहले से अधिक व्यवस्थित है।
बजट में निजी क्षेत्र पर सरकार का जोर
उन्होंने कहा कि निजी क्षेत्र को अधिक जगह देने की जरूरत है। यही वजह है कि इसी महीने पेश बजट में विनिवेश, संपत्ति मौद्रिकरण के लिए ऊंचा लक्ष्य रखा गया है और रेलवे में निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित किया गया है। कुमार ने कहा कि नीति आयोग का विचार है कि देश में अभी और साहसी सुधारों के लिए जगह है। जल्द ही बीमा क्षेत्र को अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के लिए खोल दिया जाएगा। नागर विमानन और मीडिया जैसे क्षेत्रो में भी अधिक विदेशी निवेश की अनुमति देने की चर्चा चल रही है।
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