जेम्स बुशनन बने मंदी के पहले शिकार
बात 1857 की है। जब जेम्स बुशनन का राष्ट्रपति का कार्यकाल रहा। उन्होंने 1861 तक अपना कार्यकाल पूरा किया, लेकिन दूसरे कार्यकाल के लिए नहीं चुने गए। इसका रीजन था अमरीकी आर्थिक मंदी। 18 महीनों तक रही इस आर्थिक मंदी के दौरान 5000 से ज्यादा बिजनेस बुरी तरह से प्रभावित रहे। वहीं द ओहियो लाइफ इंश्योरेंस एंड ट्रस्ट कंपनी फेल हो गई थी।
रदरफोर्ड बी हेज भी बने दोबारा राष्ट्रपति
1877 में रदरफोर्ड बी हेज अमरीकी राष्ट्रपति बने थे। वो उसके बाद दोबारा राष्ट्रपति इसलिए नहीं बन सके क्योंकि वो आर्थिक मंदी की शुरुआत में ही राष्ट्रपति बन गए थे। जिसे वो कंट्रोल नहीं कर सके थे। उनका पूरा कार्यकाल आर्थिक मंदी के दौर में गुजरा। अमरीका का सबसे बड़ा बैंक जे कोक एंड कंपनी फेल हो चुका था। लेबर इश्यू की वजह से ग्रेट रेल रोड स्ट्राइक भी हो गई थी। ऐसे में उनके लिए पूरे अमरीका में नेगेटिव नैरेटिव तैयार हुआ। जिसके बाद दोबारा राष्ट्रपति नहीं बन सके।
चार साल की मंदी बनी ग्रोवर क्लेवलेंड बनी घातक
1893 में आई इस मंदी का प्रमुख कारण रीडिंग रेलरोड की विफलता था। यह मंदी चार सालों तक चली। इस दौरान अमरीका की बेरोजगारी दर 12 फीसदी की उंचाई पर पहुंच गई। 500 से ज्यादा बैंक बंद हो गए। इस दौरान अमरीका के राष्ट्रपति ग्रोवर क्लेवलेंड थे। जो इस पूरी मंदी को संभालने में नाकामयाब साबित हुए। जिसके बाद वो दोबारा से अमरीका के राष्ट्रपति नहीं बन सके। यही आर्थिक मंदी उनकी हार का प्रमुख कारण भी बनी।
द ग्रेट डिप्रेशन और हर्बर्ट हूवर
1929 से 1938 तक चली इस महामंदी को दुनिया के लिए द ग्रेट डिप्रेशन भी कहा जाता है। जिसका असर उस दौर के राष्ट्रपति हर्बर्ट हूवर की राजनीति पर भी पड़ा। अमरीकी इतिहास की इस सबसे बड़ी मंदी में बेरोजगारी 25 फीसदी पर आ गई थी। जो 1938 तक 19 फीसदी पर रही। इसका असर नई डील होने, सूखा खत्म और दूसरे विश्व युद्घ के लिए ज्यादा खर्च करने के बाद देखने को मिली। इस ग्रेट डिप्रेशन में हर्बर्ट हूवर दोबारा से राष्ट्रपति नहीं बन सके। उसके बाद फ्रेंकलिन डी रुजवेल्ट अमरीकी राष्ट्रपति बने। अमरीकी इतिहास में सबसे लंबे तक राष्ट्रपति रहे।
आखिरी के 16 महीने पड़े निक्सन के लिए भारी
रिचर्ड निक्सन अमरीकी राष्ट्रपतियों में एक बड़ा नाम जाना जाता है। जी हां, यह वही निक्सन हैं जो 71 के भारत-पाक युद्घ में पाकिस्तान के फेवर में अपनी नेवी को भारत के खिलाफ खड़ा कर दिया था। बात यहां अमरीका की हो रही है। निक्सन कार्यकाल के आखिरी 16 महीने काफी भारी दिखाई दिए। यह 1973 से 1975 तक रही। वास्तव में इस मंदी का सबसे बड़ा जिम्मेदार ऑर्गनाइजेशन ऑफ पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज (ओपेक) को दोषी ठहराया गया। आरोप था कि संगठन ने तेल निर्यात को चौपट कर दिया। वहीं दो अन्य कारकों भी सबसे बड़ा कारण माना गया। राष्ट्रपति निक्सन ने वेतन-मूल्य नियंत्रण की स्थापना की। सोने व्यापार में किए बदलाव की वजह से मुद्रास्फीति में इजाफा हो गया। जिसकी वजह सोने की कीमत बढ़कर 120 डॉलर प्रति औंस हो गई, जबकि डॉलर के मूल्य में गिरावट आई। खास तो ये है कि मंदी खत्म होने के बाद भी बेरोजगारी दर अमरीका में 9 फीसदी आंकी गई थी।
जॉर्ज बुश का सपना भी रह गया था अधूरा
जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने भले ही अमरीकी राष्ट्रपति के तौर पर दो कार्यकाल पूरे किए हो, लेकिन उनके पिता जॉर्ज बुश के लिए यह राह कभी आसान नहीं रही। उनके कार्यकाल के दौरान 9 महीनों की आर्थिक ने उन्हें दोबारा से राष्ट्रपति नहीं बनने दिया। जुलाई 1990 से मार्च 1991 तक अमरीका में आर्थिक मंदी रही। 1989 में सेविंग्स और लोन का काफी क्राइसिस भी देखा गया था। 1990 के चौथी तिमाही में अमरीकी जीडीनी माइनस 3.6 फीसदी पर चली गई थी। वहीं 1991 के पहली तिमाही में जीडीपी माइनस 2 फीसदी थी। जूून 1992 में अमरीका की बेरोजगारी दर 7.8 फीसदी आ गई थी।