1.काशी में होने वाली राक्षसी पूजा के पीछे रामायण का वह भाग है जब माता सीता का रावण ने हरण किया था। जब माता सीता अशोक वाटिका में थी तब इसी राक्षसी ने उनकी सेवा की थी। उन्हे भोजन बनाने से लेकर हर कार्य में यह राक्षसी सेवा करती थी।
2.माता सीता ने ही उस राक्षसी को कलयुग में देवी के रूप में पूजे जाने का आशिर्वाद दिया था। उस राक्षसी का नाम त्रिजटा था जो अशोक वाटिका में माता सीता की रक्षा करती थीं।
3.माता सीता को परेशान किए जाने पर उन्हे भोजन ना देकर भूखा रखे जाने पर त्रिजटा ही उन्हे भोजन करती थी। वह उनके लिए स्वयं भोजन तैयार करती थीं। 4.हनुमान जी द्वारा लंका दहन की खबर और हनुमान जी को माता सीता के पास ले जाने का काम भी त्रिजटा ने ही किया था।
सुहाग की रक्षा के लिए त्रिजटा को चढ़ाते हैं मूली और बेंगन 5.इस मंदिर में त्रिजटा को मूली और बेंगन चढ़ाने का आशिर्वाद भी माता सीता ने ही दिया था। जब माता सीता अशोक वाटिका में आखिरी दिन थीं और त्रिजटा को उनके जाने का समाचार मिला इसे सुनकर त्रिजटा रोने लगी और स्वयं भी साथ चलने की और मुक्ति पाने की जिद करने लगी।
6.उस समय त्रिजटा माता सीता के लिए मूली और बेंगन की सब्जी बनाने वाली इसे देखकर माता ने उसे आशिर्वाद दिया कि तुम कलियुग में देवी के समान पूजी जाओगी और तुम्हारे भक्त तुम्हे मूली और बेंगन का भोग चढ़ाएंगे।
7.माता सीता ने मुक्ति पाने के लिए त्रिजटा को काशी जाकर भगवान शिव की पूजा कर उनसे मुक्ति का वरदान मांगने क कहा। उसी समय से त्रिजटा ने काशी में अपना स्थान लिया। 8.माता सीता के आशिर्वाद के फलस्वरूप ही लोग यहां आकर त्रिजटा को बेंगन और मूली चढ़ाते हैं और अपने परिवार व सुहाग की रक्षा का आशिर्वाद मांगते हैं।
9.काशी के साक्षी विनायक मंदिर में ही त्रिजटा का वह मंदिर है जहां त्रिजटा उस दिन से निवास करती हैं और माता सीता की आज्ञा के अनुसार भक्तों को आशिर्वाद देती हैं। 10.हर साल यहां काफी संख्या में सुहागन महिलाएं आती है और त्रिजटा की पूजा करके परिवार व सुहाग की सलामती का आशिर्वाद प्राप्त करती हैं।