निर्भया के अपराधियों को फांसी देने के लिए नहीं है जल्लाद, तिहाड़ जेल की जानें हकीकत 1.कई बार घटना जो दिख रही होती है, वैसी नहीं होती। उदाहरण के तौर पर कुछ केस दुर्घटना के आते हैं। मगर हकीकत में वो कत्ल होता है। जिसमें शव को गाड़ी के आगे डाल दिया जाता है। जिससे ये एक्सीडेंट लगे। मगर फॉरेंसिक जांच में मामले का पता चलता है। ऐसे में उस घटना की जड़ तक पहुंचने के लिए पुलिस क्राइम सीन रीकंस्ट्रक्शन करती है। जिसमें वही हालात बनाए जाते हैं जो घटना के वक्त थे।
2.क्राइम सीन रीकंस्ट्रक्शन का सिद्धांत, क्या हुआ, कहां हुआ, कैसे हुआ, कब हुआ, किसने किया और क्यों किया पर आधारित होता है। इस प्रक्रिया में उपलब्ध भौतिक साक्ष्यों के आधार पर अपराध स्थल पर यह तय किया जाता है कि घटना कैसे हुई।
3.इस दौरान अपराध स्थल की वैज्ञानिक जांच की जाती है, साक्ष्यों की व्याख्या की जाती है, केस से जुड़ी सूचनाओं की लिस्ट बनाई जाती है और इसके बाद तर्कों के आधार पर एक थ्योरी बनाई जाती है।
4.क्राइम सीन रीकंस्ट्रक्शन की शुरुआत पीड़ित से होती है। इसमें उसके बयान को नोट किया जाता है। उसके बताए हुए अहम बातों को नोट करके उसे घटनास्थल पर नाटक करते समय एप्लाई किया जाता है।
5.अगर पीड़ित की मौत हो जाती है तो उसके करीबी लोगों या घटना स्थल पर मौजूद लोगों के बयान के आधार पर तैयार नोट से घटना स्थल का जायजा लिया जाता है और दोबारा उन्हीं चीजों को दोहराया जाता है।
6.अगर हिंसक अपराध होता है तो क्राइम सीन रीकंस्ट्रक्शन में खून के धब्बे और इसकी जगह बहुत मायने रखते हैं। पुलिस नाटक के दौरान वैसे ही हालात बनाती है जिससे खूना के छींटे उसी तरह गिरें। इसमें दिशाओं का भी ध्यान रखा जाता है।
7.क्राइम सीन रीकंस्ट्रक्शन में पैरों के निशान भी काफी अहम होते हैं। अगर कोई संदिग्ध कहता है कि वह वहां मौजूद नहीं था। मगर नाटक के वक्त अगर उसके पैरों के निशान वहां मेल खा जाता है तो वह दोषी साबित होगा।
9.रेप केस के क्राइम सीन रीकंस्ट्रक्शन के दौरान कई बार आरोपियों को घटनास्थल पर ले जाकर उन्हें उसी तरह एक्ट करने को कहा जाता है, जैसा उन्होंने घटना के दौरान किया था। 10.क्राइम सीन रीकंस्ट्रक्शन के दौरान कई बार उसी समय का चुनाव किया जाता है जब घटना हुई हो। इससे महौल का असर पड़ता है।