दस का दम

आज शीतला अष्टमी पर नीम के पेड़ पर जल चढ़ाते समय बोल दें ये एक मंत्र, हमेशा रहेंगे स्वस्थ

शीतला अष्टमी के दिन देवी मां को बासी भोजन का भोग लगाएं
इस दिन नारंगी रंग के वस्त्र पहनकर पूजा करने से शुभ फल प्राप्त होंगे

Mar 28, 2019 / 10:50 am

Soma Roy

आज शीतला अष्टमी पर नीम के पेड़ पर जल चढ़ाते समय बोल दें ये एक मंत्र, हमेशा रहेंगे स्वस्थ

नई दिल्ली। होली के आठवें दिन पड़ने वाली अष्टमी तिथि को शीतला अष्टमी के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन देवी शीतला की पूजा की जाती है। मान्यता है कि देवी मां की आराधना करने से व्यक्ति को किसी प्रकार के शारीरिक एवं अन्य कष्ट नहीं होते हैं। इस बार यह पर्व 28 मार्च यानि आज मनाया जा रहा है। तो क्या है पूजन की सही विधि आइए जानते हैं।
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1.देवी शीतला को ठंडी चीजें पसंद है। इसलिए शीतला अष्टमी के दिन भोर 4 बजे शीतल जल से स्नान करना चाहिए। साथ ही देवी मां की मूर्ति पर भी ठंडा पानी चढ़ाना चाहिए।
2.इस दिन नारंगी रंग के वस्त्र पहनकर पूजा करना शुभ माना जाता है। क्योंकि इसे देवी का प्रिय रंग माना जाता है। शीतला अष्टमी के दिन देवी मां को संतरा एवं खट्टे फल चढ़ाना अच्छा माना जाता है।
3.पंडित दीनानाथ चतुर्वेदी के अनुसार आज के दिन नीम के पेड़ पर जल चढ़ाने एवं ऊं शीतला मात्रै नम: मंत्र का जप करने से व्यक्ति हमेशा स्वस्थ रहता है। उसे चिकन पॉक्स, दाने आदि नहीं होते हैं।
4.शीतला माता की पूजा के लिए दोपहर का समय अच्छा माना जाता है। इसलिए उनकी आराधना दिन में 12 बजे करें।

5.देवी मां को पूजा के समय बासी भोजन का भोग लगाया जाता है। इस दिन उन्हें पुआ, पूरी, दाल-चावल और मिठाई चढ़ाएं।
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6.शीतला माता को सुगंधित पुष्‍प, नीम के पत्‍ते और इत्र चढ़ाना शुभ माना जाता है। क्योंकि देवी मां को सुगंधित चीजें आकर्षित करती हैं, इससे मां की आप पर हमेशा कृपा बनी रहेगी।
7.चूंकि शीतला अष्टमी के दिन चूल्हा नहीं जलता है, इसलिए देवी मां को लगाया जाने वाला भोग व्रत के एक दिन पहले ही बनाकर रख लेना चाहिए।

8.शीतला माता को चावल और देसी घी मिलाकर चढ़ाने से देवी प्रसन्न होती हैं। इससे आपके घर में हमेशा बरक्कत होगी।
9.शीतला अष्टमी पर बासी खाना चढ़ाए जाने का एक वैज्ञानिक कारण भी है। माना जाता है गर्मियों में ठंडा खाना खाने से पाचन क्रिया दुरुस्त रहती है। इससे शरीर का तापमान भी नियंत्रित रहता है।
10.पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार शीतला अष्टमी व्रत की शुरुआत एक बूढ़ी औरत ने की थी। बताया जाता है कि एक बार आग लगने से पूरा गांव जलकर राख हो गया था, लेकिन एक औरत का घर सुरक्षित था। कहा जाता है कि वह बूढ़ी स्त्री कृष्‍ण अष्‍टमी को शीतला माता का व्रत रखती थी। उन पर देवी मां की कृपा थी।
 

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