पंडित सुनील शर्मा के अनुसार कार्तिक महीना हिंदू कैलेंडर में सौभाग्यवती महिलाओं के लिए बहुत ही खास माना जाता है। इस महीने की शुरुआत में सुहाग पर्व यानी करवा चौथ मनाया जाता है, जो इस बार 4 नवंबर को मनाया गया। ये व्रत पति की लंबी उम्र के लिए किया जाता है। इसके 3 दिन बाद अहोई अष्टमी व्रत संतान की अच्छी सेहत और मुसीबतों से बचाने के लिए किया जाता है।
कार्तिक महीने के रविवार को सप्तमी तिथि होने से भानु सप्तमी व्रत भी किया जाता है। इसमें संतान की कामना से सूर्य की पूजा की जाती है। इस बार 8 नवंबर रविवार को सूर्योदय सप्तमी तिथि में होगा और इसके बाद अष्टमी पूरे दिन होने से ये दोनों (भानु सप्तमी का व्रत व अहोई अष्टमी व्रत) व्रत इसी दिन किए जाएंगे।
भगवान सूर्यनारायण की विशेष कृपा पाने के लिए व्रत रखने से दरिद्रता का नाश होने के साथ धन, वैभव, ऐश्वर्य और उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। हिन्दू धर्म ग्रन्थों में भानु सप्तमी का दिन बहुत ही शुभ दिन बताया गया है। वहीं भानु सूर्य सप्तमी के दिन ब्रह्ममुहूर्त में आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ अत्यंत शुभ और चमत्कारिक माना जाता है।
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08 नवंबर 2020, रविवार को भानु सप्तमी का व्रत मनाया जा रहा है। भानु सप्तमी का व्रत सूर्य देव को समर्पित माना जाता है। ज्ञात हो कि सूर्य भगवान को ही भानु के नाम से जाना जाता है। हिंदू धर्म में सूर्य देवता को ऊर्जा, शक्ति इत्यादि का प्रतीक माना गया है।
भानु सप्तमी के दिन महिलाएं सुबह सूरज उगने से पहले ही नहा लेती हैं। फिर तांबे के बर्तन में पानी भरकर तथा उसमें लाल चंदन, अक्षत, लाल रंग के फूल डालकर सूर्य देव को ॐ सूर्याय नमः कहते हुए अर्घ्य देकर पूजा करती हैं। इसके बाद संतान प्राप्ति और संतान की अच्छी सेहत के लिए प्रार्थना की जाती है। इसके साथ ही महिलाएं दिनभर व्रत रखने का संकल्प लेती हैं। इस दिन खाने में नमक का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
सूर्य देव को सभी ग्रहों का राजा माना जाता है। वहीं सूर्यदेव आदि पंच देवों में से एक व कलयुग में एकमात्र दृश्य देव माने जाते हैं। ऐसे में हिंदू मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि, भानु सप्तमी के दिन अगर कोई भी इंसान पूरी श्रद्धा के साथ सूर्य देव की पूजा करता है तो उसके सभी पाप कर्म और उसके जीवन के सभी दुख नष्ट हो जाते हैं और मृत्यु के बाद उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। सूर्य प्रत्यक्ष देवता है, इनकी अर्चना से मनुष्य को सब रोगों से छुटकारा मिलता है। जो नित्य भक्ति और भाव से सूर्यनारायण को अर्ध्य देकर नमस्कार करता है, वह कभी भी अंधा, दरिद्र, दुःखी और शोकग्रस्त नहीं रहता।
कथानुसार, भानु सप्तमी के दिन ही सूर्य भगवान ने अपने प्रकाश से पृथ्वी को प्रकाशवान किया था। रविवार के दिन सप्तमी तिथि के संयोग से ‘भानु सूर्य सप्तमी’ पर्व का सृजन होता है। ग्यारह हजार रश्मियों के साथ तपने वाले सूर्य ‘भग’ रक्तवर्ण है। यह सूर्यनारायण के सातवें विग्रह है और एश्वर्य रूप से पूरी सृष्टि में निवास करते हैं। सम्पूर्ण ऐश्वर्या, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य ये छह भाग कहे जाते हैं।
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भानु सप्तमी के दिन जो कोई भी इंसान सूर्य देव की पूजा-अर्चना, आदित्य हृदयम और अन्य सूर्य स्त्रोत का पाठ करता है सूर्यदेव उसकी सभी मनोकामनाएं अवश्य ही पूरी करते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं जो कोई भी इंसान इस व्रत कथा को सुनता है उसे भी शुभ फल की प्राप्ति होती है।
भानु सप्तमी के दिन प्रयागराज के संगम में डुबकी लगाने का बेहद महत्व बताया गया है। इस दिन इंसान को सुबह उठकर विधि विधान से सूर्य देव की पूजा करनी चाहिए जिससे उसे मनचाहे फल की प्राप्ति होती है।
जो कोई भी इंसान इस दिन गंगा स्नान करके सूर्य भगवान को जल अर्पित करता है उसकी आयु लंबी होती है और उसे निरोगी काया मिलती है। इसके अलावा उस इंसान को जीवन में धन-धान्य की कभी कोई कमी नहीं होती है। मान्यता है कि इस दिन ब्रह्ममुहूर्त में आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ अत्यंत शुभ और चमत्कारिक माना जाता है। करने के बाद इनमें से किसी एक सूर्य मंत्र का जप करने से सूर्य भगवान प्रसन्न होकर सभी मनोकामनाएं पूर्ण कर देते हैं। मान्यता के अनुसार सूर्य देव को अर्घ्य देने से इंसान की याददाश्त बेहद ही अच्छी होती है और इंसान का मन शांत होता है।
इस दिन तांबे के पात्र में शुद्धजल भरकर उसमें लाल चन्दन, अक्षत, लाल रंग के फूल डाल कर सूर्यनारायण को अर्ध्य देना चाहिए। इस दिन एक समय बिना नमक का भोजन सूर्यास्त के बाद करना चाहिए। पौराणिक ग्रन्थों और शास्त्रों में भानु सप्तमी के दिन जप, यज्ञ, दान आदि करने पर सूर्य ग्रहण की तरह अनंत गुना फल प्राप्त होता है।
सिर्फ इतना ही नहीं, मान्यता है कि दिन ब्रह्ममुहूर्त में आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करने के बाद किसी एक सूर्य मंत्र का जप करने से सूर्य भगवान प्रसन्न होकर सभी मनोकामनाएं पूर्ण कर देते हैं।
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भानु सप्तमी के दिन इन सूर्य मंत्रों का करें जप
ॐ मित्राय नमः।।
ॐ रवये नमः।।
ॐ सूर्याय नमः।।
ॐ भानवे नमः।।
ॐ खगाय नमः।।
ॐ पुष्णे नमः।।
ॐ हिरन्यायगर्भय नमः।।
ॐ मरीचे नमः।।
ॐ सवित्रे नमः
ॐ आर्काया नमः।।
ॐ आदिनाथाय नमः।।
ॐ भास्कराय नमः।।
ॐ श्री सवितसूर्यनारायण नमः।।
भानु सप्तमी व्रत-पूजन विधि
: भानु सप्तमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद सूर्य भगवान की पूजा का संकल्प करना चाहिए।
: इसके बाद तांबे के बर्तन में साफ पानी भरकर उसमें लाल चंदन, अक्षत, लाल रंग का कोई भी फूल डालकर सूर्यदेव को ‘ॐ सूर्याय नमः’ मन्त्र का जाप करते हुए सूर्यदेव को अर्घ्य देना चाहिए। इस दौरान सूर्य देव से हाथ जोड़कर प्रार्थना करनी चाहिए कि वह आप पर और आपके परिवार पर हमेशा कृपा बनाए रखें।
: इसके अलावा इस दिन दान-पुण्य का भी काफी महत्व बताया गया है। जो कोई भी इंसान भानु सप्तमी के दिन पूजा-पाठ के बाद दान पुण्य करता है उसका घर हमेशा धनधान्य से भरा रहता है।
: इस दिन सूर्य देव की पूजा करते समय उनके बीज मंत्र ‘ ऊँ घृणि सूर्याय नम:’ और ‘ ॐ सूर्याय नम:’ का पाठ जरूर करें। इसके अलावा भानु सप्तमी के दिन हो सके तो, भोजन में नमक का इस्तेमाल ना ही करें।
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भानु सप्तमी व्रत महत्व
जैसा कि हमनें बताया कि भानु सप्तमी का यह व्रत भगवान सूर्य देव को समर्पित होता है। ऐसे में इस दिन के बारे में लोगों के बीच ऐसी मान्यता है कि जिन लोगों को एकाग्रता और यादाश्त से जुड़ी समस्या होती है, उनको भानु सप्तमी के दिन सूर्य देव को जल अर्पित करना चाहिए। इससे आपको आपकी सभी समस्याओं से छुटकारा अवश्य मिलता है।
भानु सप्तमी के इस पवित्र दिन भगवान सूर्य की पूजा और व्रत का विधान बताया गया है। यह व्रत प्रत्येक सप्तमी (वैक्सिंग चंद्रमा के 7 वें दिन) पर मनाया जाता है जो रविवार को आती है। इस दिन को व्यासवत्मा सप्तमी या सूर्य सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है।
भानु सप्तमी के दिन का सबसे बड़ा महत्व यह है कि इस दिन जो लोग सूर्यदेव की पूजा करते हैं उन्हें धन-धान्य, लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह माना जाता है कि भानु सप्तमी के दिन व्रत रखने से व्यक्ति को अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद मिलता है और सभी प्रकार की बीमारियां दूर रहती हैं।
भानु सप्तमी व्रत कथा
इस दिन के बारे में प्रचलित कथा के अनुसार बताया जाता है कि प्राचीन काल में इंदुमती नाम की एक वैश्या हुआ करती थी। एक बार उसने ऋषि वशिष्ठ से पूछा कि, ‘मुनिराज मैंने आज तक कोई भी धार्मिक काम नहीं किया है लेकिन मेरी इच्छा है कि मैं मृत्यु के बाद मुझे मोक्ष प्राप्त हो। तो यह कैसे प्राप्त हो सकता है?’
इंदुमती की इस बात को सुनकर वशिष्ठ जी ने जवाब दिया कि महिलाओं को मुक्ति, सौभाग्य, और सौंदर्य देने वाला अचला सप्तमी या भानु सप्तमी से बढ़कर कोई व्रत नहीं होता है। इस दिन जो कोई भी स्त्री सच्चे मन से पूजा करती है और व्रत रखती है उसे मनचाहा फल प्राप्त होता है, इसलिए तुमको भी अगर मोक्ष की चाह है तो तुम्हें इस दिन व्रत करना चाहिए और विधि पूर्वक पूजन इत्यादि करना चाहिए, जिससे तुम्हारा कल्याण हो जाएगा।
वशिष्ठ जी की बात सुनकर इंदुमती ने इस व्रत का पालन किया और मृत्यु के पश्चात उसे स्वर्ग की प्राप्ति हुई। स्वर्ग में उन्हें अप्सराओं की नायिका बनाया गया। इसी मान्यता के आधार पर इस व्रत का विशेष महत्व माना जाता है।
अहोई अष्टमी व्रत…
इस बार ये व्रत 8 नवंबर 2020 को किया जाएगा। इस दिन माता पार्वती की विशेष पूजा की जाती है। महिलाएं सूर्योदय से पहले उठकर नहाकर व्रत का संकल्प लेती हैं। इसके बाद पूरे दिन व्रत रखकर शाम को सूर्यास्त के बाद माता की पूजा करती हैं और इसके बाद व्रत पूरा करती हैं। कुछ महिलाएं संतान प्राप्ति और अखंड सुहाग प्राप्ति की कामना से भी ये व्रत करती हैं।
इसे कृष्णा अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। मथुरा के राधा कुंड में इस दिन बहुत सारे लोग स्नान करने आते हैं। ये व्रत खासतौर से यूपी, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश में मनाया जाता है। इस दिन माताएं अपने बेटों के लिए अहोई माता का व्रत रखती हैं। उनकी पूजा करती हैं और अपने बच्चों की लंबी उम्र और अच्छी सेहत के लिए प्रार्थना करती हैं। चंदमा की पूजा से ये व्रत पूरा किया जाता है। बच्चों की कामना रखने वाले लोगों के लिए ये व्रत बहुत खास माना जाता है।