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CG Election 2023 : भाजपा का चुनाव प्रचार आज से पकड़ेगा जोर, राजनांदगांव से अमित शाह आज करेंगे शुरुआत इसमें से करीब 5 लाख 78 हजार हेक्टेयर में रबी में चना, मटर, मसूर, तिवरा की फसल ली जाती है। वहीं खरीफ में करीब 1 लाख 39 हजार हेक्टेयर में अरहर, मूंग, उड़द और दूसरे दलहनी फसलों की खेती होती है। वर्ष 2019 में करीब इतने ही रकबे में खेती से ६ लाख ७१ हजार मिटरिक टन से ज्यादा दलहनों की पैदावार हुई थी। इसमें 3 लाख ८५ हजार मिटरिक टन अकेले चने की पैदावार थी। वहीं 1 लाख २८ हजार मिटरिक टन तिवरा और ७८ हजार मिटरिक टन अरहर की पैदावार हुई थी। जबकि वर्ष 2021 में दलहनों की पैदावार घटकर सिर्फ 5 लाख मिटरिक टन तक पहुंच गया। चने की पैदावार 2 लाख 77 मिटरिक टन, तिवरा 1 लाख 9 हजार मिटरिक टन औरअरहर की पैदावार 62 हजार मिटरिक टन तक सिमट गई।
– खुले बाजार में कृषि लागत के अनुरूप उपज का मूल्य नहीं मिल पाता। दलहन की खेती रबी में सबसे ज्यादा होती है। – ग्लोबल वार्मिंग के चलते तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है।
– इससे फसल की ग्रोथ प्रभावित होती है। – दलहन के लिए ठंड का मौसम बेहतर होता है। – खरीफ में धान की फसल में देरी से दलहनी फसलों के लिए ठंड समय कम मिलता है।
– इससे उत्पादन प्रभावित होता है। – वर्षा आधारित खेती के कारण फसल को पर्याप्त नमी नहीं मिलती। – इससे फसल के ग्रोथ के साथ उत्पादन दोनों प्रभावित होता है। – मौसम में अचानक बदलावों के कारण अधिकतर समय नमी के साथ उमस भरी गर्मी का वातावरण रहता है। इससे कीट-व्याधि का खतरा बढ़ जाता है।
– बेमौसम बारिश के मामले बढ़े हैं। ठंड में बारिश से रबी की फसल तबाह हो जाती है। दलहन की अधिकतर पैदावार रबी में ही होता है। दलहनों का सेेवन इसलिए जरूरी दाल का सेवन करने से शरीर को प्रोटीन मलिता है।
– अच्छी सेहत के लिए प्रोटीन एक जरूरी पोषक तत्व है। दाल के सेवन से शहरी में आयरन की कमी पूरी होती है। इससे शरीर में लंबे समय तक उर्जा बनी रहती है। दाल में डाइट्री फाइबर पाए जाते हैं।
– इससे दाल आसानी से पच जाता है। जिससे अपच अथवा पेट से जुड़ी दूसरी समस्याओं की आशंका नहीं रहती। दाल में फोलेट और मैग्नीशियम होता है। – इसे हार्ट के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद माना जाता है। दाल बैड कोलेस्ट्रॉल को कम करती है। जिससे हार्ट से जुड़ी बीमारयिों का खतरा कम होता है। & फसल के बेहतर प्रबंधन और आधुनिक तकनीक को अपनाकर काफी हद तक दलहनों की पैदावार बढ़ाई जा सकती है।
– शासन स्तर पर लगातार इसके प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन किसानों को भी जागरूक होने की दरकार है। किसानों को ज्यादा से ज्यादा उतेरा फसलों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। – समयबद्ध खेती, पारंपरिक तरीके में थोड़े बदलाव, तकनीकी के इस्तेमाल और बीमारियों पर नियंत्रण से पैदावार में बढ़ोतरी होगी।
– डॉ. विजय जैन वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक कृषि विज्ञान केंद्र पाहंदा