इस बहुचर्चित प्रकरण पर फैसला सुनाते हुए न्यायाधीश ने कहा कि तपन सरकार विधि पूर्ण अभिरक्षा के अधीन था, जो किसी अन्य अपराध के लिए था और उसे अन्य प्रकरण में दुर्गन्यायालय में होने वाली पेशी में प्रस्तुत करना था। इसके लिए अभिरक्षा में उसे जगदलपुर जेल ने भेजा था। तपन सरकार अन्य आरोपी के सहयोग से प्रेम नगर स्थित अपने जीजा व बहन के घर गया जो कि उसके भागने के प्रयत्न को दर्शित करता है। वहीं पुलिस कर्मी मनबहल व लोकेश लोक सेवक होते हुए भी आरोपी तपन सरकार को प्रतिरोध में रखने के बाद भी न्यायालय की जगह अन्य स्थान पर ले जाकर विधि के प्रतिकूल कार्य किया है।
तपन सरकार को आभाष हो गया था कि उसे महादेव महार हत्याकांड में सजा होने वाली है। इसी वजह से उसने अभिरक्षा में तैनात पुलिस कर्मचारियों को विश्वास में लिया और लालच देकर अपनी योजना में शामिल किया। जांच में खुलासा हुआ था कि तपन सरकार ने फरार होने जगदलपुर से दुर्ग आते समय योजना बना ली थी।
गैंगस्टर को पकडऩे पुलिस ने प्रेम नगर में जाल फैला रखा था। जैसे ही तपन सरकार अपने जीजा के निवास से भागा पुलिस ने उसे पकडऩे घेराबंदी की। इस दौरान तपन सरकार ने मोहन नगर और क्राइम ब्रांच पुलिस को भागने के एवज में 1 लाख रुपए देने का लालच दिया।
मोहन नगर पुलिस ने इस मामले में एक एएसआइ और दो आरक्षक के खिलाफ एफआइआर दर्ज किया था। सुनवाई के दौरान आरक्षक सुखराम कश्यप की मृत्यु हो गई। मृत्यु होने पर न्यायालय ने सुखराम का नाम प्रकरण से पृथक कर दिया था।